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अंतिम पलक

    कुमार राघव

    बहादुरगढ़

    जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3

    अंतिम पलक झपकती हो जब, मेरे जाने को लेकर

    प्रणय स्वीकृत कर देती हो, फिर से आने को लेकर।

    मैं भी तुमसे विरह वेदना, तनिक नहीं सह पाता हूँ

    नाभि छिपी कस्तूरी ख़ातिर, दौड़ मृग सा जाता हूँ

    सुनो तुम्हीं अब पार लगा दो, नैया निज हाथों खेकर

    अंतिम पलक झपकती हो जब…..

    तुम में मैं हूँ मुझ में तुम हो, छिपी किसी से बात नहीं

    आसमान बिन चाँद चकोरी, होती ऐसी रात नहीं

    वृद्धि स्वयं के तेज में कर लो, उजियारा मेरा लेकर

    अंतिम पलक झपकती हो जब……

    मिलन प्रणय की अंतिम पलकें, यूँ ही तुम झपकाते रहना

    किंचित कभी कमी ना आए, हृदय अगन दहकाते रहना

    सदा अगन को सींचेंगे हम, प्राण प्रतिष्ठा सब देकर

    अंतिम पकल झपकती हो जब…..