-एच. सी. बडोला ‘हरदा’
उत्तराखंड
–जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
अपनों के सूखे जीवन को देख
बादल बहुत दुःखी थे, सोचने लगे
दुःख से निजात दिलाने के बारे में
और बरस पड़े उनके जीवन में
जितना भिगोता, देखा अपने
डूबने से अस्तित्व खोते जाते
यहां तक कि आंसुओं का सैलाब
जीवन घेरे को आकंठ भर देता
अचानक बादल रुके और बोले
अपनों के हित में”गेम” खेलना भी
हित कर नहीं होता अगर गलती से
जीत गये तो अपने तो बचेंगे ही नहीं
ख़ौफ़ और ख़्वाहिश
भीषण गर्मी में तपती वह झोपड़ी
कभी भी ख़ौफ़ में जीने को मज़बूर न थी..
पर जब बरसात हुई तो वह
टपकती बूंदों से ख़ौफ़ज़दा हो गई
देख बगल की इमारतें
जो एसी की आदी थीं
हंँसने लगीं और
मुंह बिचकाकर बोलीं
तू ख़ौफ़ज़दा है तो हो
पर हमारी ख़्वाहिश है भीगना।