-कहानी
-के. सरन
विहंगम, जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
लखनऊ का बलरामपुर अस्पताल….
वार्ड में मरीज सो रहे थे। एक बल्ब डिम सा जल रहा था। स्टाफ रूम में तेज लाइट वाला बल्ब जल रहा था।
डाक्टर और नर्स बैठे बतिया रहे थे।
वार्ड ब्वाय चाय बना रहा था।
15-16 साल का वह लडका किताब हाथ में लिए,
कहीं लाइट के पास बैठने की जगह तलाश रहा था।
थोडी देर बाद डाक्टर बाहर निकले तो वह वार्ड ब्वाय से यह पूछने के लिए आगे बढ़ा कि क्या वह वहाँ बैठकर पढ़ सकता है?
पर वार्डब्वाय की बड़ी-बड़ी मूंछ और रौबीला चेहरा देख
घबराकर स्टाफरूम के बाहर खड़ा हो गया।
वह स्टाफ रूम के बाहर खड़ा अन्दर जाकर पूंछने की हिम्मत बटोर रहा था कि तभी नर्स वापस लौट आई।
लडके को बाहर खड़े देख उसने पूछा -क्या काम है भैया? नर्स को प्यार से बात करते देख लड़के ने हिम्मत जुटाकर पूछा- क्या मै यहाँ बैठकर पढ़ सकता हूँ ।मेरा सुबह पेपर है। वार्ड मे सब सो रहे हैं। लाइट ऑफ है।
मां भर्ती है। उसकी देखरेख के लिए रूका था।
नर्स ने बैठकर पढ़ने को कहा फिर कुछ ही देर बाद पूछने लगी किस चीज का पेपर है?
क्या पढ़ रहे हो ।
वह खुद भी साइन्स की स्टूडेंट रही थी।
जाने क्यों उसका मन हुआ कि वह खाली बैठी है तो उस बच्चे की कुछ मदद ही कर दे।
लडके से किताब लेकर उसने पूछा- क्या नहीं तैयार है? मैं समझा दूंगी ।
लड़का बहुत मासूम और पढ़ने वाला लग रहा था।
नर्स को अपने भाई की याद आ गई ।
नर्स ने चैप्टर वाइज बहुत अच्छे से उसे पूरा कोर्स रिवाइज करा दिया। प्रश्न का उत्तर देने के बारे में भी कुछ टिप्स भी दिए जो अब तक उसे किसी टीचर ने नहीं बताये थे।
पढ़ाते हुए सुबह के 4 बज चुके थे।
नर्स ने कहा अब तुम यहीं बैठकर पढ़ो मैं दूसरे वार्ड जा रही हूँ ।
सोना नही वर्ना सब भूल जाओगे।
सुबह उस लडके का पेपर उम्मीद से बहुत ज्यादा अच्छा हुआ ।
वैसे तो लड़के के बड़े भाई रोज रात में रूकते थे पर कल भाई को किसी काम से बाहर जाना पड़ा था इसलिये वह आया था।
आज वह भाई से खुद इजाजत लेकर रूकने के लिए शाम को ही अस्पताल आ गया था। रात की ड्यूटी पर
नर्स के आते ही, वह भागकर स्टाफ रूम गया और नर्स के पैर छुए तो नर्स ने उसे स्नेह से चिपका लिया। उसने नर्स को बताया कि उसकी टिप्स और गाइडेंस से वह पूरा पेपर एकदम सही करके आया है।
उसके मासूम चेहरे पर खुशी की चमक देखकर नर्स को लगा जैसे सैकड़ों मील दूर गांव में बैठा उसका भाई उसके सामने आकर खड़ा हो गया हो।
नाम क्या है तुम्हारा ?
जी आदित्य …
मेरा नाम नर्मदा है।
एक्जाम तक नर्मदा आदित्य को रात मे रोज 4 बजे तक पढ़ाती रही। बोर्ड परीक्षा मे आदित्य पूरे कालेज मे अव्वल आया।वह पढ़ने मे तेज तो था पर मेरिट में आने की उसने कल्पना भी नहीं की थी। इस बीच वार्ड ब्वाय राम दीन से भी आदित्य का खासा परिचय हो गया था।
कहानी
उपहार
–के. सरन
लखनऊ का बलरामपुर अस्पताल….
वार्ड में मरीज सो रहे थे। एक बल्ब डिम सा जल रहा था। स्टाफ रूम में तेज लाइट वाला बल्ब जल रहा था।
डाक्टर और नर्स बैठे बतिया रहे थे।
वार्ड ब्वाय चाय बना रहा था।
15-16 साल का वह लडका किताब हाथ में लिए,
कहीं लाइट के पास बैठने की जगह तलाश रहा था।
थोडी देर बाद डाक्टर बाहर निकले तो वह वार्ड ब्वाय से यह पूछने के लिए आगे बढ़ा कि क्या वह वहाँ बैठकर पढ़ सकता है?
पर वार्डब्वाय की बड़ी-बड़ी मूंछ और रौबीला चेहरा देख
घबराकर स्टाफरूम के बाहर खड़ा हो गया।
वह स्टाफ रूम के बाहर खड़ा अन्दर जाकर पूंछने की हिम्मत बटोर रहा था कि तभी नर्स वापस लौट आई।
लडके को बाहर खड़े देख उसने पूछा -क्या काम है भैया? नर्स को प्यार से बात करते देख लड़के ने हिम्मत जुटाकर पूछा- क्या मै यहाँ बैठकर पढ़ सकता हूँ ।मेरा सुबह पेपर है। वार्ड मे सब सो रहे हैं। लाइट ऑफ है।
मां भर्ती है। उसकी देखरेख के लिए रूका था।
नर्स ने बैठकर पढ़ने को कहा फिर कुछ ही देर बाद पूछने लगी किस चीज का पेपर है?
क्या पढ़ रहे हो ।
वह खुद भी साइन्स की स्टूडेंट रही थी।
जाने क्यों उसका मन हुआ कि वह खाली बैठी है तो उस बच्चे की कुछ मदद ही कर दे।
लडके से किताब लेकर उसने पूछा- क्या नहीं तैयार है? मैं समझा दूंगी ।
लड़का बहुत मासूम और पढ़ने वाला लग रहा था।
नर्स को अपने भाई की याद आ गई ।
नर्स ने चैप्टर वाइज बहुत अच्छे से उसे पूरा कोर्स रिवाइज करा दिया। प्रश्न का उत्तर देने के बारे में भी कुछ टिप्स भी दिए जो अब तक उसे किसी टीचर ने नहीं बताये थे।
पढ़ाते हुए सुबह के 4 बज चुके थे।
नर्स ने कहा अब तुम यहीं बैठकर पढ़ो मैं दूसरे वार्ड जा रही हूँ ।
सोना नही वर्ना सब भूल जाओगे।
सुबह उस लडके का पेपर उम्मीद से बहुत ज्यादा अच्छा हुआ ।
वैसे तो लड़के के बड़े भाई रोज रात में रूकते थे पर कल भाई को किसी काम से बाहर जाना पड़ा था इसलिये वह आया था।
आज वह भाई से खुद इजाजत लेकर रूकने के लिए शाम को ही अस्पताल आ गया था। रात की ड्यूटी पर
नर्स के आते ही, वह भागकर स्टाफ रूम गया और नर्स के पैर छुए तो नर्स ने उसे स्नेह से चिपका लिया। उसने नर्स को बताया कि उसकी टिप्स और गाइडेंस से वह पूरा पेपर एकदम सही करके आया है।
उसके मासूम चेहरे पर खुशी की चमक देखकर नर्स को लगा जैसे सैकड़ों मील दूर गांव में बैठा उसका भाई उसके सामने आकर खड़ा हो गया हो।
नाम क्या है तुम्हारा ?
जी आदित्य …
मेरा नाम नर्मदा है।
एक्जाम तक नर्मदा आदित्य को रात मे रोज 4 बजे तक पढ़ाती रही। बोर्ड परीक्षा मे आदित्य पूरे कालेज मे अव्वल आया।वह पढ़ने मे तेज तो था पर मेरिट में आने की उसने कल्पना भी नहीं की थी। इस बीच वार्ड ब्वाय राम दीन से भी आदित्य का खासा परिचय हो गया था।
मां के डिस्चार्ज हो जाने के बाद आदित्य का रिजल्ट
आया था। वह नर्मदा के हास्टल गया उसके पैर छुए तब नर्मदा ने रक्षा बन्धन में उसके घर आने को कहा।
रक्षा बंधन के बाद नर्मदा का ट्रांसफर लखनऊ से आगरा हो गया था और फिर उसका नर्मदा से सम्पर्क नहीं रहा।
तबसे अब तक 25 साल बीत चुके थे। आदित्य आज उसी बलरामपुर अस्पताल मे सीनियर सर्जन होकर आया था।
जब आदित्य उस वार्ड मे राउंड पर आया तो उसे
नर्मदा की याद आ गई। उसे नर्मदा के चेहरे की हल्की सी याद थी।
राउंड पर उसके साथ सिस्टर इंचार्ज भी थी। राउंड खतम करके, आदित्य उन्हे साथ लेकर स्टाफ रूम के अन्दर गया।
दिखावे में तो वह स्टाफ रूम चेक करने गया था पर असली मकसद वह जगह देखना था जहाँ वह रात में नर्मदा से पढ़ता था।
वह स्टाफ रूम मे बैठा तो वार्डब्वाय भी सलाम करने आया। वार्ड ब्वाय की शकल मूँछे सब वैसी थी बस रंग सफेद हो गया था।
आदित्य ने उससे पूछा तुम्हारा नाम रामदीन है?
रामदीन के रिटायरमेंट की डेट नजदीक थी।
उसने सोचा बडे साहब आज ही आए हैं । मेरा नाम कैसे जान गए? जरूर किसी ने आते ही शिकायत की है।
रामदीन- कभी इस वार्ड मे एक नर्मदा सिस्टर थी तुम्हें याद है। राम दीन कुछ बोलता इससे पहले सिस्टर इंचार्ज ने आदित्य को हैरत से देखते हुए पूछा- सर आप उनको कैसे जानते हैं?
आप जानती हैं क्या? वो करीब पच्चीस साल पहले यहाँ थीं फिर आगरा ट्रांसफर हो गई थीं अब वो भी सिस्टर
इंचार्ज या मैट्रन होंगी।
सिस्टर इंचार्ज बडी हैरत से आँखे फाड़े देखे जा रही थी
-पर सर आप कैसे जानते हैं उनको?
उन्होंने मुझे इसी स्टाफ रूम मे बैठ कर रात-रात भर पढ़ाया था। उनकी बदौलत मेरा कैरियर बना है। बस यहाँ आकर उनकी याद आ गई ।
सिस्टर इंचार्ज की आंखें डबडबा आईं ।
आज औलाद उस मां को भूल जाती है जो सारा जीवन बेटे पर कुर्बान कर देती है पर आप उसे याद रखे हैं।
मैं ही नर्मदा हूँ ।
आदित्य ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसी स्टाफ रूम में नर्मदा से उसकी भेंट हो जायेगी।
आदित्य कुर्सी से उठा और नर्मदा को अपने साथ आने को कहा।
हेड आफ सर्जरी डिपार्टमेंट के कमरे मे पहुँच कर ,
नर्मदा कुछ समझ पाती उससे पहले ही, आदित्य ने नीचे झुककर नर्मदा के पैर छुए।
नर्मदा ने हाथ पकड़ते हुए कहा- सर ये आप क्या कर रहे हैं।
उपहार देना है उस राखी का जो आपने मुझे बाँधी थी, जब आप मेरे घर आई थीं और उस उपकार का जो आपने बिना किसी स्वार्थ के रात-रात भर मुझे पढ़ाकर किया था। राखी बाँधने के बाद मां के दिए पैसे भी यह कहकर लौटा दिए थे कि आदित्य कमाएगा तो ले लूँगी।
आप को राखी का उपहार देना है।
आज अस्पताल से मेरे साथ घर चलिएगा ।
पहले उपहार फिर दूसरी बात।
नर्मदा को लगा बड़ा आदमी बनने से कुछ नही होता। संस्कार बड़े होने चाहिये।
इससे बडा कोई उपहार नहीं ।
– के. सरन
लखनऊ, उत्तर प्रदेश