-शिप्रा श्रीजा
गोला गोकरण नाथ
जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
नीर भरी बदली के जैसी भरी भरी कुछ काली आंखें
बरस गए बरसीं थीं ऐसी प्रेम भरी कुछ खाली आंखें
फूल सरीखीं लाखों बातें
खुशबू उन बातों का मतलब
झट पट सौ बातें कर डालें
जादू जैसा उनका करतब
बिन बोले भी शोर मचातीं मधुशाला की प्याली आंखें
बरस गए बरसीं थीं ऐसी भरी भरी कुछ खाली आंखें
रुनझुन रुनझुन करती आतीं
हरकारा बनकर हैं गाती
कुछ जतलाती कुछ बतलातीं
संदेशा देकर हैं जातीं
पढ़ते- पढ़ते गुम हो जाएं बरखुरदार ख्याली आखें
बरस गए बरसीं थीं ऐसी भरी भरी कुछ खाली आंखें
उत्तर को तरसा करती हैं
प्रश्न नहीं करती हैं लेकिन
हर दिन इंतजार करती हैं
आसमान के तारे गिन गिन
आस लगाए बैठीं है अब पीर फ़कीर सवाली आंखें
बरस गए बरसीं थीं ऐसी भरी भरी कुछ खाली आंखें
दिन-दिन साल महीने बीते
प्रियतम के दर्शन की प्यासी
आशा भी अब हाथ छुड़ाए
पलकों पर भी चढ़ी उदासी
रैन दिवस रोते-रोते अब न हो जाएं रुदाली आंखें
बरस गए बरसीं थीं ऐसी भरी भरी कुछ खाली आंखें
-शिप्रा श्रीजा
गोला गोकरण नाथ