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घिर आई बदरिया

    डॉ सुषमा त्रिपाठी

    -जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3

    घिर आई बदरिया सावन की। सावन की,मनभावन की।, घिर आई बदरिया सावन की।

    कारे-कारे बदरा जिया डरवावें।

    बिजुरिया तड़पे,हिया तड़पावें।

    मत बात करो तरसावन की।

    घिर आई बदरिया सावन की।

    धरती को चूमे आज बदरवा।

    नयनन से बहि जाय कजरवा।

    झड़ी लागि रही अंसुआवन की।

    घिर आई बदरिया सावन की।

    झर-झर बुंदियाँ झरें पातन से।

    धरती की प्यास बुझी अब घन से।

    सखि! हूक है कजरी गावन की।

    घिर आई बदरिया सावन की।

    धरती अम्बर एक हो रहे।

    मेरे मन विष-बीज बो रहे।

    कोई कहियो रे पिया के आवन की।

    घिर आई बदरिया सावन की।