-अजय प्रताप सिंह राठौर
जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
एक डलिया बादल
एक अंजुरी धूप
दो जून की रोटी
एक लोटा जल
मां का आंचल
बाप का साया
गहरी निंदियां
मन निश्चल
छोटी छोटी ख़ुशिया
हार जीत के पल
लौट के न आया
बीत गया जो पल
दो आने की लाल गेंद
दस पैसे का गुब्बारा
काफ़ी था मन में
करने को हलचल
अब ढेरों पैसा
सुख के साधन पर
मन में कितनी चिंता
दुनिया के ढेरो छल
न उगता सूरज देखे
न डूबता चांद
न बच्चे ख़ुश न बीबी
पैसों की किचकिच हरपल
न आसमान की लाली
न धरती की हरियाली
अब समय कहां जो
देखे अगल बगल
-अजय प्रताप सिंह राठौर
लखीमपुर