Skip to content

पुस्तक- सत्य बोध- प्रथम, द्वितीय

    पुस्तक समीक्षा

    पुस्तक- सत्य बोध- प्रथम, द्वितीय

    लेखक, कवि- सर्वोदय संत कानदास सिद्धांति

    समीक्षक- गौतम के. गट्स

    जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3

    जीवन में प्रेम को समझने के लिए शिक्षा से ज्यादा संवेदनशीलता होना बहुत जरूरी है। अगर शिक्षा के ज्ञान रूपी पंख लग जाए तो जीवन ओर बेहतर हो जाता है । किसी कवि ,लेखक, संत इत्यादि के लेखन से पहले अगर उनके जीवन पर प्रकाश डाल दिया जाए तो उसे समझने में आसानी हो जाती है । आज सर्वोदय संत कानदास सिद्धांती जी हमारे बीच नहीं है । लेकिन उनके द्वारा मानव समाज के लिए किए गए कार्य ,सिद्धांत , विचार इत्यादि में आज भी जिंदा है। उनके द्वारा रचित पुस्तक सत्य बोध भाग- प्रथम , द्वितीय और मानव दर्शन दिव्य ज्ञान के अलावा अप्रकाशित ‘तीन्ह खोजा तीन्ह पाहिया ‘ में जिंदा है।

    कबीर साहब ने कहा है कि – “पोथी पढ़कर जग मुआ ,पंडित हुआ ना कोई।

    ढाई आखर प्रेम का ,पढ़े सो पंडित होई ।‌।”

    सिद्धांती जी कबीर साहब से ज्यादा प्रभावित थे । लेकिन अन्य महापुरुष के विचारों और जीवन के बारे में बेखुदी जानते थे । महात्मा गांधीजी , विनोबा जी, स्वामी विवेकानंद ,रविंद्रनाथ टैगोर, रजनीश और ओशो इत्यादि के विचारों को आचरण , व्यवहार में भी धारण किया। आपके बचपन का नाम कान्हा था । फिर युवावस्था आने पर कानाराम हो गया । पहले नाम के पीछे राम लिखना आम बात थी । आज इस तरह के नाम बहुत कम हो गए हैं । आपने पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मकान बनाने ठेकेदारी का काम करने के बाद गुजरात में बड़ौदा के पास बाजवा में काम किया । वहां पर उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटना से उनका पूरा जीवन बदल गया। गांव में अपनी मां को चिट्ठी भेजने के लिए अपने मोहल्ले में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अंग्रेज़ अफसर के पास शाम को गए तो अफसर बोले कि मैं खाना खा लेता हूं । फिर तुम्हारी चिट्ठी लिखता हूं । अभी थोड़े देर बैठना पड़ेगा। तभी अंग्रेज अफसर की नजर उनके कुर्ते के जेब में पेन पर पड़ी तो बोले की कानाराम तुम्हारे पास पेन है। तुम क्यों नहीं लिख लेते। तभी वह बोलते है कि मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं । अंग्रेज अफसर गुस्से में बोलते हैं कि जब तुम पढ़े लिखे नहीं हो तो फिर पेन क्यों रखते हो । वह बोलते हैं कि शौक से रखता हूं। अंग्रेज अफसर बोलते है, ऐसा शौक किस काम की जिसके बारे में जानते नहीं। यह बात उनके दिल पर लगी। तभी कानाराम जी बोलते हैं कि मैं 5 मिनट में वापस आता हूं । अफसर बोलता है,जल्दी आ जाना…नहीं तो मैं खाना खाकर घूमने निकल जाऊंगा । वह वहां से निकल कर बाजार से पाटी और कलम लाते हैं । अपने मोहल्ले से एक बच्चे को बोलते है कि तुम मुझे शाम को एक घंटा रोज पढ़ना । तुम जो भी स्कूल में पढ़ते हो, वह मुझे भी सीखना । मैं तुम्हें रोज का एक आना पैसा दूंगा। इस तरह महीने भर बाद वही चिट्ठी स्वयं लिखकर शाम को अंग्रेज अफसर के पास जाते है ।वह चिट्ठी दिखाते है तो अफसर बहुत खुश होता है और खुशी से इसके लिए एक रूपए देता है। इसके बाद उनका मन ओर आगे पढ़ने का होता है । मुंबई की ओपन स्कूल से दसवीं कि परीक्षा देते है। बहुत से महापुरुषों की पुस्तकें जिसमें उनके विचार और जीवनियों को पढ़ते है। इसके साथ सभी धर्म की और आध्यात्मिक किताबें भी पढ़ते हैं।लेकिन कबीर साहब के विचारों, सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने पर उनके साथी ने सर्वोदय संत कानदास सिद्धांती नाम रखा। यही नाम आगे जाकर प्रसिद्ध दिलाता है। बहुत सी धार्मिक, आध्यात्मिक अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकों का अध्ययन कर आपने  अपने जीवन काल में तीन पुस्तक प्रकाशित कराई। चौथी पुस्तक रह गई जो अब आएगी। आपने जीवन की बुराइयों और कमियों को पुराने नाम के साथ समाप्त कर दिया। किसी के कहने पर राजनीति में एमएलए का चुनाव लड़ा । राजनीति के दांव पेंच नहीं आने के कारण चुनाव हार गए। उन्होंने राजनीति छोड़कर फिर से ज्ञान सेवा में लग गए । जिसमें उन्होंने बहुत ही नाम कमाया। आज हमारे बीच सिध्दांती जी नहीं है परंतु अपनी पुस्तकों में जिंदा हैं । सत्य बोध प्रथम, द्वितीय पुस्तक में अपने जीवन काल में  आसंख्या किताबों का जो अध्ययन किया , उन्ही में से जो सत्य बोध हुआ । उसी अनुभव को विचारों के साथ काव्य, गीत और भजन को सरल भाषा में रचा । जिसको सत्संग में स्वयं के साथ अन्य संतों ने भी अपनी मधुर वाणी से गया ।लेकिन उनको ज्ञान चर्चा करना बहुत अच्छा लगता था । वह अपनी रचना में कहते हैं कि-

     “रोशनी देखो तो महल और कारखानों में हैं।

    पर अंदर देखो तो इंसान के दिलों में हैं।।”

    “यह जीवन है दो बैल का गाड़ा।

    एक जावे आड्डा तो दुसरा टेढ़ा।।”

    “वचन मानें जो वंश हमारा ,

    नहीं तो डुबो संसारा।”

           वह इंसान में ज्ञान रूपी प्रकाश की कमी से जो लोगों के दिलों में अंधेरा होता है ,इसके बारे में चिंतित होते हैं और जीवन की सच्चाई से भी अवगत कराते हैं।

    “धन-धन कहते जग गये, धन गये ना  कोऊ के साथ ।

    सुखरत करके जो गये,धन गये उन्हीं के साथ ।।”

             आज तक का इतिहास रहा है कि व्यक्ति बंद मुट्ठी आता है और खाली हाथ दुनिया से चला जाता है । इस तरह ‘मानव दर्शन दिव्य ज्ञान ‘ पुस्तक भी सत्य ,प्रेम करुणा, अहिंसा ,सद्भावना, आध्यात्मिकता आदि के साथ विचार सागर की यह पुस्तक मानव समाज के लिए अनमोल खजाना है । इन पुस्तकों को अपने जीवन में सभी को एक बार अवश्य पढ़कर उन बातों को अपने आचरण व्यवहार में लाना चाहिए। सर्वोदय संत कानदास सिद्धांती जी को जानने और समझने के लिए इन पुस्तकों का अध्ययन करना बहुत जरूरी हैं। क्योंकि आज भी महापुरुष अपने कार्य,सिद्धांत,विचार और पुस्तकों में जिंदा हैं। 

    समीक्षक – गौतम के. गट्स  

    जोधपुर, राजस्थान

    लेखक, कवि, सोशल वर्कर

    संप्रति- निदेशक, स्माइल वर्ल्ड पीस फाउंडेशन, इंडिया

    अनेकों साझा काव्य संग्रह व लघुकथा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित। आकाशवाणी में रचनाओं का नियमित प्रसारण।