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बरसात की बूंद 

    श्रीकांत तैलंग
     जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3

    बारिश की पहली बूँद जो घटा बनकर आयी

    छा गयी खुशियाँ, हरियाली लायी

    माई ने आँगन में बाहें फैलायी

    बारिस की बुँदे खुशी बनकर आयी

    भीगते आँचल पर पानी की बुँदे

    खुशियों के सावन संग बरसात आयी.

    बारिश की बुँदे खुशी बनकर आयी

    तभी माँ के आँचल पर बारिश जो आयी

    खुशियों के आँसू ने आँखे भिगोयी

    एकटक लगी लगन ने मौसम बदल दिया

    घर के आँगन को बारिश ने भर दिया

    तभी उसको अपने बालक की याद आयी

    दौड़ कर उसे अपने में समा लायी

    बालक की किलकारी पैरों की छप-छप

    उसे अपने बचपन की याद आयी

    उठा लिया गोद में आँचल से ढंक लिया

    बारिश को भूल कर बच्चे को अंक लिया

    सावन को आना था और फिर जाना था

    हर बरस बरसता हैं झूम कर सावन

    कितनों को रुलाता उनका वो सावन

    बच्चे का सुख सावन से अलग है

    बचपन का सावन बीते से अलग है

    माई ने फिर बचपन को याद कर

    बालक को छाँव दी

    अपने आँचल में पनाह दी

    हम भी याद करते हैं बचपन का सावन

    कोई लौटा दे मुझे बचपन का सावन

    श्रीकांत तैलंग

    सेवानिवृत अधिकारी अभियंता

    उत्तर-प्रदेश पॉवर कारपोरेशन, लखनऊ