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भीज गई मन की तिदुआरी

    गीत

    प्रो. विश्वम्भर शुक्ल

    लखनऊ

    जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3

    तुमने रची प्रीति की मेहँदी हमने कोई छंद लिखा ,

    सुधि के सहज प्रसंग मृदुल लिख जीवन को सानन्द लिखा!

    भीज गई मन की तिदुआरी,

    सावन की स्वप्निल बौछारें ,

    पलकों ने सहेज कर रख लीं

    हर्ष ,अश्रु की मिश्रित धारें।

    हृदय तृषित जब जब अकुलाया पटल नेह का बन्द लिखा!

    पाती लिखी बादलों को इक

    कह देना सन्देश सखे ,

    कोई पथिक निहार रहा पथ

    बस श्वासें हैं शेष सखे ।

    लगा अपरिचित मुख अपना तो दर्पण को मति-मन्द लिखा!

    शब्द शब्द के अर्थ भिन्न हैं

    और अर्थ के भाव कई ,

    उड़ी हवा में आस मिलन की

    देकर गई अभाव कई ।

    पावस में प्रिय तेरा आना फिर हमने स्वच्छंद लिखा!