राम मोहन गुप्त ‘अमर’
लखीमपुर खीरी
जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
गरज-कौंध, चमक-दमक के चपला नील गगन में
बहुत डराती, रह रह घबराती चिंता भरे है मन में.!
बारिश आई, हर मन भाई पर कोलाहल ये कैसा
गरजे बरसें बदरा काले मंजर बवंडर के ही जैसा
हों ना अनहोनी, जन-धन हानि ना ही, वज्रपात
सब ही हैं सताए नौ तपा के जलाए, रुके संताप
काले मेघा बरसो, हर मन हर्षो पर अति ना करना
हुए सब हर्षित पा तपिश से मुक्ति, कुदृष्टि न करना
सबको था कब से इंतजार बरसे गगन से जल धार
अब आए हो राहत लाए हो, मान लेना विनय हमार