-लेख
-अलका शर्मा
-जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
“मक्खी बैठी दूध पर, पंख गए लपटाय।*
हाथ मले अरु सिर धुने लालच बुरी बलाय।”
लालच एक प्रकार की आत्मघाती मनोभावना है, जो व्यक्ति को कभी चैन से नहीं सोने देती है और हमेशा व्यक्ति की चाह बढ़ाती रहती है। लालच की वजह से ही मनुष्य अपनी ईमानदारी खो बैठता है। इसी लालच के चक्कर में व्यक्ति अपना ईमान बेच देता है।
लालच का मतलब होता है किसी चीज़ को स्वार्थी रूप से इतना चाहना कि उसे पाने के लिए आप किसी दूसरे की परवाह करना छोड़ दो, और बला का मतलब होता है दुष्ट। इस प्रकार लालच बुरी बला का अर्थ हुआ, लालच सबसे बड़ा दुष्ट है जो आपको और आपके साथ रहने वाले सभी को, साथ ही पूरी दुनिया का नष्ट कर सकता है। इसलिए आपको लालच से दूर रहना चाहिए।मनुष्यों के लिए लालच एक ऐसी दुष्ट चीज़ है जिसके कारण मनुष्य का सामाजिक और नैतिक पतन हो जाता है। दूसरे की वस्तुओं के प्रति आकर्षण और उन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए की जानेवाली साज़िशों के कारण लोग एक-से-एक विपत्तियों में फँसते चले जाते हैं। लालच में फँसकर आदमी एक के बाद एक अपराध करता जाता है और अपने सुखमय जीवन को संकटमय बना लेता है।
लालच की चाह और अभिलाषा रखने वाले लोगों को भविष्य में सफलता नहीं मिलती है। लालच मनुष्य के आत्मविश्वास को कमजोर करता है। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आपको ईमानदारी से काम करना होगा। लालच करने से आप अपने लक्ष्य से भटक जाएंगे और आपका आत्मविश्वास पूरी तरह से टूट जाएगा।
मनुष्य को लालच से दूर रहना है तो उसे अपने मन में एक संकल्प लेना होगा और ठान लेना होगा कि मुझे किसी भी हालत में लालच नहीं करना है। मनुष्य को जितना हो सके, उतना साधारण जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। लालच के चक्कर में मनुष्य को दूरी बना कर रखना अनिवार्य है।कम सुख-सुविधाओं में जीने की इच्छा आपको लालच से दूर रख सकती है क्योंकि अधिक सुख सुविधा के चक्कर में व्यक्ति लालच में पड़ जाता है। लालच की अभिलाषा को दूर करने के लिए व्यक्ति को जो है, उसमें खुश रहना सीखना चाहिए।
मनुष्य को अपने जीवन में लालच करने की बजाय ईमानदारी के साथ काम करना चाहिए। व्यक्ति को अपनी ईमानदारी को सबसे आगे रखते हुए काम करना चाहिए ताकि लालच से दूरी बनी रहे।
लालच ऐसी दलदल है,जिसमें मानव फंसता जाता है,
स्वार्थपरता के चक्कर में ही, जो अपनों को खो देता है
सुख से जीवन जीना है तो,रखिए रिश्ते बहुत संभालकर,
वरना तो इस दुनिया में कोई, फिर अपना नहीं रहता है।।