-अरुणेश मिश्र
सीतापुर
जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
शिव के स्वरूप
कितने अनूप
शशिभाल शुभ्र
मां गंगा शिर
कर में त्रिशूल
तन मन स्थिर
उर सहज सरल
कंठस्थ गरल
अंगांग भस्म
व्यक्तित्व विरल
शिव लिए सर्प
किंचित न दर्प
भक्तो के प्रिय
श्रीराम भक्त
शाश्वत विरक्त
शिव जी की जय
रखते अक्षय
फिर कैसा भय ?
फिर नही अनय
शब्दों के अर्पित बेलपत्र
शिवजी के पावन मंदिर में ।
शिवजी का आशिष रहे सदा
आनंद रहे हर घर घर में ।