-सीमा धवन, गाजियाबाद
– जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
श्यामल बदरी नभ से क्षण-क्षण जल बरसाए।
रिमझिम -रिमझिम हँसकर अपने पास बुलाए।।
मेघों नें प्रेमिल नीर अपरिमित बरसाया,
पावस का अभिसिंचन धरा वधू को भाया।
ओढ़ चुनरिया सतरंगी नूतन तन पाया,
लाज हया के पुष्पों से झोली भर लाया।।
क्षितिज अटारी पल-पल मनवा भरमाए।
श्यामल बदरी नभ से क्षण-क्षण जल बरसाए ।।
गाये मेघ मल्हार ,झूम- झूम रुत सावन,
उमड़ घुमड़ घन गरजें,लगता है मनभावन।
शिव शंकर भोले का हो पूजन हर आँगन,
महादेव के चरणों में नत मस्तक हर मन।।
बेल पत्र संग धतूरा कर अर्पण मन हर्षाए।
श्यामल बदरी नभ से क्षण-क्षण जल बरसाए ।।
वसुधा की पीर हरे सावन की जलधारा,
पात-पात मस्ती में झूमें ज्यों बंजारा।
हलधर के स्वर्णिम जीवन का एक सहारा,
लहराता खेत फसल से लगता है प्यारा।।
बूंदों की टिप-टिप जीवन का राग सुनाए।
श्यामल बदरी नभ से क्षण-क्षण जल बरसाए।।
बच्चों की टोली मिलकर करती शैतानी,
श्याम वर्ण धाराधर बरसे रुक रुक पानी।
भीग-भीग कर नाचें सलमा ,नूरी ,रानी,
जाति धर्म की घातों से हैं सब अनजानी।।
छप-छप छपाक स्मृतियों की सैर हमें कराए।
श्यामल बदरी नभ से क्षण-क्षण जल बरसाए ।।
माटी की सोंधी सी खुशबू मन को भाती,
मोर नाचते ,कूक-कूक कर कोयल गाती।
अमवा की डाली पर देखो पड़ते झूले,
पेंगें ऊँची भरती बाला तन मन भूले।।
ओट किवाड़ की ले साजन नैन लड़ाए।
श्यामल बदरी नभ से क्षण-क्षण जल बरसाए ।।