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सावन

    अमिता त्रिवेदी, लखनऊ
     जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3

    मन के उमड़े भाव है सावन,

    प्रिय मिलन का सार है सावन।

    चंचल होते बालमन में,

    बूंदों की बौछार है सावन।

    कागज की कश्ती है सावन,

    बागों में झूले है सावन।

    धरती के आंचल में पनपे,

    हर द्रुम, लता, छटा है सावन।

    उमड़-घुमड़ कर गीत सुनाए,

    काले मेघा आए जाए।

    पी है सावन, प्रीत है सावन,

    विरहिणी का इंतज़ार है सावन।

    राधा और मोहन के मन का,

    रास, प्यार, संसार है सावन।

    हरी-भरी धानी सी चुनर,

    प्रकृति का श्रृंगार है सावन।

    अमिता त्रिवेदी, लखनऊ

    योगा ट्रेनर व क्लासिकल डांसर