–सुधा मिश्रा
सीतापुर
जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3
वर्षा की ऋतु आ गयी, वसुधा हुई निहाल।
तृप्त हुए सब चर -अचर, भरे तलैया ताल।
उमड़- घुमड़ घन आ गए, वन में नाचे मोर,
दादुर् की ढपली बजी, झींगुर की करताल।
छम-छम बूँदे नाचती, कल कल बहता नीर,
कानों में रस घोलता, मौसम करे कमाल।
महक रही है मेदिनी, बहक रहा आकाश,
अंगड़ाई लेकर प्रकृति , चले निराली चाल।
सावन पावन मास है, गूँजे बम – बम नाद,
भक्त काँवड़े ले चले, बजा रहे सब गाल।
गूँज रहे चारो तरफ, कजरी और मल्हार,
बेटी आई मायके , पड़े हिंडोले डाल।