कहानी
अनिका कंप्यूटर पर नजरें टिकाए, ऑफिस के कामों में बिजी है। लेकिन उसका मन बहुत उदास था। बगल के डेस्क पर ही काम कर रही उसकी सहकर्मी ज्योति ने आखिर पूछ ही लिया- अनिका आज बुझी बुझी सी क्यों लग रही हो? कोई बात है क्या?
अनिका ने कंप्यूटर से ध्यान हटा ज्योति की ओर देखा और बोली – पता नही..ज्योति, मन नही लग रहा है। इस बार घर जाने को बॉस छुट्टी देंगे या नही? कल दीपावली है और कुछ दिन बाद ही छठ पूजा है।
(इतना बोल अनिका काफी उदास हो गई)
ज्योति बोली- देख.. अनिक बॉस का पता नही छुट्टी देंगे या नही। कल दीपावली को भी टिफ़िन टाइम तक ड्यूटी का आर्डर है। फिर भी तुम आज ही बॉस से केबिन में मिलकर छुट्टी के लिए परमिशन लेने की कोशिश कर लो। हो सकता है बॉस एक दो दिन में मान जाएं।
अनिका ने कहाँ- हाँ ज्योति, मैं भी आज ही परमिशन लेने की सोच रही हूँ।
अनिका बिहार की पटना से है जो बैंगलोर के IT कंपनी 4 साल से कार्यरत है। प्राइवेट जॉब में छुट्टियाँ कम मिल पाती है। साल भर में आने वाले अनेकों तीज त्योहार छुट्टी न मिलने पर अनिका को इतना दुख नही होता था। पर छठ पर्व की बात ही अलग थी माँ और रिश्तेदार से जब भी फोन पर बात होती छठ में आने के जिक्र जरूर होता। अनिका माँ से वादा करती की छठ पर्व पर जरूर आएगी। छठ पर्व बिहार की मिट्टी की खुश्बू, परिवारिक एवं सामाजिक सौहार्द, प्रकृति के प्रति प्रेम और आस्था का उत्सव है। बिहार की भूमि से शुरू हुआ छठ पर्व अब पूरे भारतवर्ष औऱ विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुका हैं। छठ पूजा में सूर्य, उषा, जल की पूजा की जाती हैं जो प्रकृति से जुड़ाव एवं प्रेम भावना है। सूर्य प्रकृति की जीवनदायनी है। छठ पर्व के दौरान जिस तरह से शुद्वत्ता और स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है, नदी, तालाब से लेकर सड़कों और मोहल्ले की गलियों तक पूरी तरह से स्वच्छ किया जाता है और इस स्वच्छता अभियान में आम जनता पूरी आस्था से भाग लेती है। इस तरह स्वच्छता के प्रति जागरूकता भी लाती है छठ पूजा। छठ पर्व के दौरान एक सकरात्मक चीज औऱ देखने को मिलेगी वो है ऊंच नीच और असमानता का अभाव। ये असमानता अमीरी गरीबी की हो या स्त्री पुरुष की हो, दोनो तरह की असमानताओं का अंत करता है ये लोक आस्था का पर्व। यह एक ऐसा उत्सव है जिसमें अपनी इच्छा अनुसार स्त्री पुरुष दोनों प्रकृति के प्रति उपासना कर सकते हैं। यह एक ऐसा पर्व है जिनके पास कुछ ना भी हो तो भी अपनी आस्था से उपासना कर सकते है। छठ पर्व के दौरान उदारता, दयालुता और मदद की भावना भी देखने को मिलती हैं।
छठ पर्व में अस्त एवं उदित सूर्य की उपासना प्राचीन वैदिक संस्कृति की झलक दिखाई देती हैं। यह कार्तिक मास में मनाया जाता हैं। कहाँ जाता है बिहार सबसे पहले रामायण काल मे अंग प्रदेश की राजधानी मुंगेर में राम सीता ने 6 दिनों की सूर्य और उषा की उपासना की थी।
महाभारत काल मे एक कथा के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
छठ पर्व अपने प्रियजनों और परिवार के साथ मिलकर मनाना विशेष महत्व है। हर किसी को अपने परिवार से दूर रह रहे सदस्यों का घर लौटने का बेसब्री से इंतज़ार होता है।
अनिका शाम 6 बजे बॉस के केबिन में एक छुट्टी के आवेदन पत्र लेकर पहुँचती हैं।
बॉस आवेदन को पढ़ते है और टाइम पर ड्यूटी जॉइन कर लेने की हिदायत के साथ अनिका की छुट्टी मंजूर कर लेते हैं।
अनिका के चहरे पर सकून की रौनक आ जाती हैं केबिन से निकलते ही अपने घर कॉल कर माँ को बताती है, की वो छठ पूजा में घर आ रही हैं।
घर मे छठ की खुशी दुगनी हो जाती है।
अम्बिका कुशवाहा
पटना (बिहार)