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स्वच्छ जमीन स्वच्छ आसमान

    लेख

    -रत्ना बापुली

    जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3

    खगोलीय दृष्टि से देखा जाए तो हमारा विश्व सौर्य मंडल की गतिविधि एंव आकर्षण से एक दूसरे के साथ बँधा हुआ है, जिसे भूमंडल कहा जाता है। इस भूमंडल में धरती एवं आकाश सभी समाहित हैं।  इसमें मानव जीवन का भी अपना एक महत्व है। स्वच्छता जिसकी आधार शिला है, बिना स्वच्छता के धरती एवं आकाश दोनों इस भूमंडलीय गतिविधि में रोक ला सकते हैं जिसके कारण सृष्टि का संहार अवश्यम्भावी हो सकता है।

    कोरोना काल में धरती की अस्वच्छता का परिणाम हम भुगत चुके हैं। धरती की अस्वच्छता का प्रभाव आकाश पर भी पड़ गया है और आकाश के ओजोन परत में सहस्रों छिद्र हो गये हैं जो कि भूमंडलीय गतिरोध का एक उदाहरण बन सकता है ।

    भूमंडल पर भी समय-समय पर अनेक उल्कापिंडों के टूटने से या हमारे पृथ्वी से भेजे गए राकेट से या हमारे पृथ्वी से भेजे गए रोबोट से पृथ्वी का अनेक कचरा आकाश में इकठ्ठा हो जाता है जो हमारे भूमंडल पर प्रभाव डालता है इसलिए धरती एवं आकाश दोनों की स्वच्छता आवश्यक है।

    पूरा ब्रह्माण्ड एक शरीर की भॉंति हैं और सभी चेतन-अचेतन उसी के अंग हैं। पॉंच तत्वों का समन्वित रूप ही ईश्वर का विशाल रूप है। इसलिए प्रकृति ही हमारा भगवान है जिस प्रकार  मानव  शरीर के एक अंग पर चोट लगने से भंयकर पीड़ा होती है, उसी प्रकार जब बुद्धिमान एवं विवेकी  मनुष्य प्रदूषण करता है तो ईश्वर को कष्ट होता है ।

    ध्वनि द्वारा आकाश का, वनों को उजाड़ कर पृथ्वी का, युद्ध आदि द्वारा जीवन की विनाश लीला से ईश्वर को कितना कष्ट होता है यह समझना आवश्यक है ।

    बड़े-बड़े आविष्कारक अपने नाम के लिए परमाणु बम का निर्माण करते हैं यह सब न तो मानवता की भलाई के लिए है न ही प्रकृति के स्वच्छता के लिए है । किसी भी व्यक्ति के शुद्ध एंव अशुद्ध आचरण से पूरे समाज पर प्रभाव पड़ता है वैसे ही हमारे अस्वच्छता का प्रभाव हमारे भूमंडल पर भी पड़ता है ।

    जमीन को स्वच्छ रखना हमारे वश में है और इसे किस प्रकार स्वच्छ रखा जाए इस पर अनेकों परिचर्चा हो चुकी है एवं बहुत कुछ लिखा भी जा चुका है। पुनः उसे विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है।

    गांधी जी के अनुसार —

    स्वच्छता ही सेवा है, हमारे देश के लिए हमारे जीवन मे स्वच्छता की बहुत जरूरत है। गंदगी हमारे आस-पास के वातावरण और जीवन को प्रभावित करती है। हमें व्यक्तिगत व अपने आस-पास की सफाई अवश्य रखनी चाहिए और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।

    विकास जरूरी है पर विकास के नाम पर जो गंदगी हम समाज को दे रहे हैं वह गलत है। प्राचीन काल में आकाश की शुद्धता के लिए हवन-यज्ञ आदि कराया जाता था आज भी उसी नियम का बहुतायत से प्रयोग होना चाहिए, हमारी धरती यदि स्वच्छ रहेगी तो आकाश स्वतः ही स्वच्छ हो जाएगा।

    स्वच्छता एक अच्छी आदत है जो हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है, स्वच्छता के अन्तर्गत, शरीर की सफाई, घर की सफाई, मोहल्ले की सफाई, समाज की सफाई के साथ साथ रसायनिक तत्वों का कमतर प्रयोग एवं मन की सफाई की भी परम आवश्यकता है। इसी के तहत हमारे प्रधान मंत्री जी द्वारा स्वच्छ भारत अभियान दो अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी के 145वीं जयन्ती पर चलाया गया। इस अभियान के तहत कई योजनाएँ शामिल की गई हैं, जिसमें ग्रामीणों के घरों में शौचालय निर्माण प्रमुख है ।

    स्वच्छता की भावना को हमें अपनी आदत में शामिल करना होगा तभी हम अपनी धरती को स्वच्छ कर पायेंगे।

     यह धरती, यह आकाश, दोनों हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं एक शरीर है तो दूसरा हमारा मन है, बिना तन व मन के सामंजस्य के हम भी एक कचरे के समान हैं, अतः स्वयं को कचरा न बनाएँ, स्वच्छ तन व मन से विश्व को मानव के रहने लायक बनाएं ।

    -रत्ना बापुली,

    लखनऊ

    -ई मेल–Bapulyratna 09@gmail .com