प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
वरिष्ठ साहित्यकार, लखनऊ
विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
अद्भुत भारत देश हमारा, हर्ष-पर्व के फेरे ,
चित्रकार घर घर अलबेले मोहक चित्र उकेरे !
द्वारे पर रंगोली रच दी,
वन्दनवार सजाई,
दीवारों पर दृश्य अनूठे,
रच देती है माई।
टिकते तिमिर न कभी घनेरे, प्रतिदिन प्रखर उजेरे !
अद्भुत भारत देश हमारा, हर्ष -पर्व के फेरे !!
आँगन लीपा, चौक बनाया,
भाई दूज मनानी,
बैठी बहन लगाये टीका
करों न आनाकानी।
रक्षा-बंधन प्यार अनोखा आओ बहना टेरे !
अद्भुत भारत देश हमारा हर्ष-पर्व के फेरे !!
त्योहारों की रेल-पेल में,
हरदिन है दीवाली,
होली रंगबिरंगी लाती
चेहरों पर खुशहाली।
सभी ओर से सबको बाँधें नेह-प्रेम के घेरे !
अद्भुत भारत देश हमारा हर्ष -पर्व के फेरे !!
हरदिन पर्व सुहाना होता,
दिवस न कोई खाली,
जब जी आया मिलजुल सबने
हँसकर खुशी मना ली।
सबकी खुशियाँ,सबके गम हैं , ना मेरे ,ना तेरे !
अद्भुत भारत देश हमारा हर्ष -पर्व के फेरे !!
तुलसी, दियना, हलछठ, करवा,
गोवर्धन की पूजा,
माँ का प्यार, दुलार पिता का,
ऐसा देश न दूजा !
छुए बड़ों के पाँव अशीषें उनकी बढ़कर ले रे !
अद्भुत भारत देश हमारा हर्ष-पर्व के फेरे !!