-ऋतु गुप्ता
आज राधा जी की पहली पुण्यतिथि पर पूरा परिवार, घर नाते रिश्तेदार बच्चे सब एकत्रित हैं। चौकी पर रखी श्रीमती राधा सुबोध गर्ग जी की मुस्कुराती हुई फोटो देखकर ऐसा लग रहा है मानो अभी बोल पड़ेंगी। वही राधा जी की तस्वीर के पास उनके पति सुबोध जी बैठे हैं और नीचे की तरफ शून्य में ताक रहे हैं। तभी उनकी बड़ी बहन शारदा जी आती हैं और अपने छोटे भाई सुबोध को गले लगा लेती हैं। शारदा जी सुबोध जी से पूरे दस बर्ष बड़ी है उम्र में।
भाई बहन में भाई बहन जैसा कम मां बेटे जैसा रिश्ता ज्यादा है।
शारदा जी के गले लगाते ही सुबोध जी के दिल में भरी भावनाएं, एहसास आंखों के जरिए झरने लगते हैं। सुबोध जी कहने लगते हैं जीजी मेरी राधा ने कभी मुझसे किसी चीज की कोई मांग नहीं की। हर समय में बस हंसती रहती ,कभी दिल की ना कहीं, मैं भी बाबरा हमेशा समझता रहा कि उसे शायद किसी चीज की आवश्यकता ही नहीं है। उसके दिल की तड़प को मै ना समझ सका जीजी, वह शायद राधा रानी का ही दूसरा रूप थी जो मेरी जिंदगी में आई और हमेशा त्याग और समर्पण रख पूरी जिंदगी मेरा और मेरे परिवार का हर सुख दुख की घड़ी में साथ देती रही।
मैं ही उसे कभी समय ना दे सका। हर समय बस काम की रामधुन में लगा रहा, हमेशा सोचता रहा अब इतना कमाया है, अभी और कमाना है अभी और बढ़ना है और आगे जाना है। कभी यह न सोचा कि जिसके लिए कमाता हूं यदि वह ही ना रही तो इस सबका सुख क्या। और एक दिन ऐसा आया कि राधा सोचते सोचते अपने शरीर में घुन लगा बैठी और डॉक्टरों ने उसे कैंसर बता दिया। जब डॉक्टर ने उसे 6 महीने का समय दिया तो मुझे लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने विवाह के 35 वर्ष तो यूं ही गंवा दिए ,अब उन 6 महीनों में उन 35 वर्ष की भरपाई मै कैसे कर पाऊंगा, कैसे उसे वह प्यार स्नेह दे पाऊंगा, कैसे उसका बीता हुआ समय लौटा पाऊंगा ।
आप भी मुझे कितना समझाती रहीं ,कि भैया थोड़ा घर पर ध्यान दिया कर राधाभाभी के साथ समय बिताया कर पर मैं हर समय हंसकर हर बात टाल दिया करता। उस दिन उसे नन्हा सा ही तो बुखार था जीजी, उसने मुझसे कहा कि आज मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है,बिल्कुल उठा नहीं जाता है जी,दोनों बहुएं भी छोटे बालको के साथ काम पर लगी है, जरा आप आज मेरे पास बैठ जाओ और मुझे डॉक्टर के पास ले चलो। तब मैंने उससे कहा था मौसमी बुखार है राधा फिक्र की कोई जरूरत नहीं है ,तुलसी अदरक की चाय बनवाकर बहू से ले लो शाम तक ठीक हो जाओगी।
जब अगले दिन तक उसका बुखार नहीं उतरा तो मैं और बड़ा बेटा चंद्रकांत उसे लेकर डॉक्टर के यहां गए। उसकी कुछ जांचों से सामने आया कि उसको कैसंर है, और उसके कैंसर की ये आखिरी स्टेज है। अब उसके पास सिर्फ 6 महीने बचे हैं, यह 6 महीने सिर्फ उसके पास नहीं थे, मेरे पास भी सिर्फ 6 महीने थे, उसकी यादों को संजोने के लिए ,उसके साथ बिताए पलों को जीने के लिए, उसको पूरा जीवन का एहसास इन 6 महीनों में कराने के लिए।
उसकी शुरू से बस एक ही इच्छा थी कि जब भी वह इस संसार से जाए तो वह सौभाग्यवती जाए। ठाकुर जी से वो हर समय प्रार्थना करती की, है ठाकुर जी मैं जब भी जाऊं पूरे साज श्रंगार के साथ उनके कंधों पर जाऊं। मुझे क्या पता था कि ठाकुर जी उसकी यह इच्छा इतनी जल्दी पूरी कर देंगे ।वह तो सौभाग्यवती होकर चली गई पर मैं अभागा रह गया।
आज इस पूरे 1 वर्ष में मैंने एहसास किया है कि वह कितना अकेला महसूस करती होगी, उसने मेरा हर दिन हर पल कितना इंतजार किया होगा। काश कि वह मुझसे लड़ती, समय मांगती, अपना हक जताती, पर मै भी अभागा उसके दिल की भी ना सुन सका, उसकी सूनी आंखों को देखकर समझ ना सका। जब मैं आज देखता हूं कि सभी बच्चे अपने-अपने काम में लगे हैं,घर के बड़े बुजुर्ग को तो जैसे सिर्फ रोटी कपड़ा ही तो चाहिए,पर सिर्फ रोटी कपड़ा ही तो सबकुछ नहीं है जीजी, इंसान को रिश्तो में दो-चार बोल प्यार के भी चाहिए , नहीं तो हम इंसान मशीन ही ना बन जायेंगे। पर मैं भी आज ये सब बातें जब समझ सका हूं जब खाने की थाली तो सामने है पर राधा की आंखें नहीं है उसकी बातें नहीं है, जो बीच-बीच में पूछती थी ,नमक लाऊं जी क्या,खाने में स्वाद तो ठीक है ना जी।
मिठाई थोड़ी खाना पर चखना जरूर आपको शुगर है इसलिए ऐसा बोल रही हूं जी। यूं ध्यान रखने वाली पत्नी होकर मां सा ध्यान रखने वाली, चाहें काम से जितनी देर से आया हो पर उसने कभी उफ़ ना की बस कहती अब अपनी सेहत का ध्यान रखा करो जी, इतनी दौड़-धूप अब किसके लिए।अब उसके जाने के बाद तो जैसे ना काम में मन लगता है ना ही घर में जीजी करूं तो क्या करुं कहा से लाऊं उसे जीजी..
मैं मानता हूं कि कभी भी दो लोग इस दुनिया में एक साथ ना आए हैं, ना ही एक साथ जा सकते हैं, पर यूं असमय ही छोड़ कर जाना मुझसे सहन ना होता… जीजी सहन नहीं होता।
शायद उसे पहले से ही ईश्वर ने इशारा कर दिया था कि वह इतनी जल्दी इस दुनिया को छोड़ कर चली जाएगी ,इसलिए उसने दोनों बच्चों की शादी भी जल्दी ही कर ली। दोनों की शादी का सुख और उनके एक-एक बच्चे की दादी बनने का सुख तो वह पा सकी, बस यही एक संतोष मेरे लिए है जीजी, वरन् मैं तो रह रहकर खुद को आज भी दोषी मानता हूं कि मैं जिंदगी भर कमाने में लगा रहा पर असली कमाई तो मेरी गृहस्थी थी, जिसे वह अकेली निभाती रही।
सच कहूं जी आज मुझे महसूस होता है कि यदि मैंने उसे समय दिया होता शायद तो वह अंदर ही अंदर कभी ना घुटती और यूं इस तरह मुझे छोड़कर नहीं चली जाती,मैं उसका पीला पड़ा चेहरा भी ना पढ़ सका जीजी, कभी यह ख्याल ही ना आया कि वह इतनी सुस्त इतनी उदास क्यों है मैं सोचता कि शायद औरत को अच्छा खाना पहनना देना ही सारे सुख हैं।
आज भी उसके वो अंतिम बोल मुझे जीने नहीं देते जीजी ,जब उसने एक दिन मुझसे डबडबाती हुई आंखों से लुढ़कते हुए आंसुओं को पौछतें हुए कहा ,अब मैं बचा हुआ समय आपके साथ जीना चाहती हूं जी, आपके साथ बैठकर एक कप चाय पीना चाहती हूं जी,और यह जो आंगन में हमारे हमारे बाल किलकारी गूंज रही है उसका आनंद अकेले नहीं आता जी, मैं यह सुख आपके साथ बांटना चाहती हूं ,खुश होना चाहती हूं ।आखिर में एक वचन भी आपसे चाहती हूं कि मेरे जाने के बाद भी आप कभी उदास नहीं होंगे, अपना अच्छे से ध्यान रखेंगे ,नहीं तो मैं भगवान के घर भी कहां ही खुश रह पाऊंगी जी।
जाते समय भी उस निर्मोही को मेरा ही दर्द था, मेरी ही चिंता थी। उसके ये शब्द आज भी रह रहकर मुझे दिन रात सुनाई देते हैं दिन तो जैसे तैसे बच्चों में कट जाता है लेकिन रातों को लगता है जैसे राधा कह रही है कि मैं आपके साथ जीना चाहती थी और आप मुझे समय ना दे सके।
तब उनकी बहन शारदा जी ने उनका सिर प्यार से उठाते हुए कहा अरे बावले अब बीते को तो कहां लौटाया जा सकता है, तूने आखिरी समय में उसकी बहुत सेवा की है अब इस अपराध बोध में मत रह सुबोध। अब तो तू राधा की तस्वीर की ओर देख, ऐसा लगता है जैसे वह अभी भी तुझे ही देखती है और कह रही है कि मैं सौभाग्यवती गई हूं यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा सुख है अब आज आप मुझे फिर से एक कुमकुम की बिंदी लाल रंग की लगाकर आखिरी विदा दीजिए।
इतना सुनकर सुबोध जी उठते हैं और कुमकुम की लाल बिंदी अपनी राधा के माथे पर जयूं ही लगाते हैं, उन्हें लगता है जैसे उनकी राधा की आंखें कह रही है ,बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए यही आखिरी श्रृंगार सौभाग्यवती होकर आपके कंधे पर जाना ही मेरे जीवन का सबसे अनमोल उपहार है जी। तभी उनकी राधा की तस्वीर पर चढ़ी लाल गुलाब के फूलों की माला गिर कर सुबोध जी के गले में में आ जाती है तो उन्हे एहसास होता है कि जैसे मेरी राधा मेरे ही ह्रदय में है ,वह उस माला को ह्रदय से लगा लेते हैं ,अब उनका दिल उनसे कहता है कि राधा कहीं नहीं गई यही है उनके हृदय के पास उनके दिल के पास।
–ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर , उत्तर प्रदेश