वो नाश्ता
‘फिर से सूखी रोटी और आलू की सब्जी। पिछले तीन महीने से यही खाना खा-खाकर ऊब चुका हूं। मैं नहीं खाऊंगा’ -खाने की थाली को… Read More »वो नाश्ता
‘फिर से सूखी रोटी और आलू की सब्जी। पिछले तीन महीने से यही खाना खा-खाकर ऊब चुका हूं। मैं नहीं खाऊंगा’ -खाने की थाली को… Read More »वो नाश्ता
– डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ‘मृदुल’ उर्मिला अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं। वह कुशाग्र बुद्धि की धनी थीं। अतः पढ़ने लिखने में हमेशा अब्बल… Read More »अपनों का दंश
-डॉ अर्चना श्रीवास्तव मै रोज की तरह कालेज से वापस आ रही थी। अभी कुछ ही दूर बढी थी ,कि मैने देखा,सामने से भारी… Read More »हथकड़ियां
-ऋतु गुप्ता आज राधा जी की पहली पुण्यतिथि पर पूरा परिवार, घर नाते रिश्तेदार बच्चे सब एकत्रित हैं। चौकी पर रखी श्रीमती राधा सुबोध… Read More »आखिरी श्रृंगार
–नन्दलाल मणि त्रिपठी पीताम्बर धर्म राज अपने पहले चरण की पृथ्वी यात्रा पूर्णकरने के उपरांत कैलाश भगवान शिव के सेवार्थ प्रस्तुत हुये और प्रथम चरण की… Read More »मीनाक्षी
-अलंकार रस्तोगी पिछले दो दिनों से बिजली इस कदर आ और जा रही था कि शरीर से अंदर और बाहर जा रही साँसे भी अपनी… Read More »खेल जारी है..!!
–नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गणित ज्योतिष का आधार है चाहे रावण संहिता हो भृगु संहिता हो, भविष्य पुराण हो या बृहद पराशर होरा मुहूर्त चिंतामणि… Read More »अंतरराष्ट्रीय भविष्य
–गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’ जैसा हम सभी जानते हैं कि विशेष अर्थ प्रकट करने वाले वाक्यांश को ही हम सभी ‘मुहावरा’ कहते हैं। हालाँकि… Read More »समयकाल के चलते लोकोक्तियाँ / कहावतें / मुहावरोंमें शब्दों के बदलते स्वरूप
–आकांक्षा यादव मानव जीवन में प्रकाश की महत्ता किसी से छुपी नहीं है। दुनिया के कई देशों में भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकाश-पर्व मनाये जाते हैं।… Read More »देव दीपावली : देवताओं का पर्व
–अंकुर सिंह “कोई दुआ असर नहीं करती, जब तक वो हम पर नजर नहीं करती, हम उसकी खबर रखे या न रखे, वो कभी हमें… Read More »हरदासीपुर- दक्षिणेश्वरी महाकाली
-यतीश चन्द्र शुक्ल सम्पादकीय प्रिय पाठकों, वर्षा की इस ऋतु में जब चारों ओर प्रकृति अपनी अनोखी छटा बिखेर रही है, हमारे हृदयों में राधा… Read More »सम्पादकीय- अगस्त 2024
–डॉ सुषमा त्रिपाठी -जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 घिर आई बदरिया सावन की। सावन की,मनभावन की।, घिर आई बदरिया सावन की। कारे-कारे बदरा जिया डरवावें।… Read More »घिर आई बदरिया
–सुधा मिश्रा सीतापुर जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 वर्षा की ऋतु आ गयी, वसुधा हुई निहाल। तृप्त हुए सब चर -अचर, भरे तलैया ताल। उमड़-… Read More »सावन
-सीमा धवन, गाजियाबाद– जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 श्यामल बदरी नभ से क्षण-क्षण जल बरसाए। रिमझिम -रिमझिम हँसकर अपने पास बुलाए।। मेघों नें प्रेमिल नीर अपरिमित… Read More »श्यामल बदरी
-सविता दास सवि -जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 कहाँ लिखती हूँ अब पन्नों पर दिल की कोई बात बहुत सताती है मुझे पुरानी डायरी की याद… Read More »डायरी