– मेघदूत
विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
गाँव का नाम था पिपलिया और उसके एक कोने में था बुजुर्ग वासुदेव का कच्चा घर। वासुदेव के परिवार में कोई नहीं बचा था। पत्नी को गए दस साल हो गए थे और बेटा-बहू शहर में जाकर बस गए थे, जो कभी-कभार ही गांव आते थे। वासुदेव अपने खेतों में काम करते हुए और गाँव वालों से बातें करते हुए अपना समय बिताते थे।
एक दिन वासुदेव खेत से लौट रहे थे, तो उन्हें गाँव की पगडंडी पर एक बूढ़ी औरत बैठी दिखाई दी। उसके कपड़े फटे-पुराने थे और चेहरा झुर्रियों से भरा था। वासुदेव ने पास जाकर पूछा, “माई, कौन हो तुम और यहाँ इस समय क्या कर रही हो?”
बूढ़ी औरत ने उदास आँखों से देखा और बोली, “बेटा, मैं विधवा हूँ और मेरे बेटे-बहू मुझे छोड़कर चले गए हैं। अब इस बुढ़ापे में कोई सहारा नहीं है।”
वासुदेव का दिल पसीज गया। उन्होंने उसे अपने घर ले जाकर खाना खिलाया और रहने की जगह दी। गाँव वालों को जब इस बारे में पता चला, तो उन्होंने वासुदेव की बहुत तारीफ की। लेकिन कुछ लोग पीछे-पीछे यह भी कहने लगे कि वासुदेव की खुद की हालत ठीक नहीं है, वह किसी और का भार कैसे उठाएगा।
एक रात वासुदेव को सोते-सोते कुछ आवाज़ें सुनाई दीं। वह उठे और देखा कि बूढ़ी औरत नहीं थी। उनकी चिंता बढ़ गई और उन्होंने उसे ढूँढ़ने की कोशिश की। बाहर आकर देखा तो वह औरत आँगन में किसी से बात कर रही थी। वासुदेव ने छुपकर सुनने की कोशिश की, लेकिन वे शब्द स्पष्ट नहीं हो रहे थे।
अगली सुबह, वासुदेव ने उस औरत से पूछा, “माई, रात को तुम किससे बात कर रही थीं?”
बूढ़ी औरत ने सकपकाते हुए कहा, “नहीं बेटा, मैं तो रात भर सो रही थी। शायद तुम्हें कोई सपना आया होगा।”
वासुदेव को शक हुआ, लेकिन उन्होंने बात को टाल दिया। अगले कुछ दिनों में, वासुदेव ने देखा कि घर के कुछ सामान गायब हो रहे हैं। अब उन्हें पक्का यकीन हो गया कि कुछ गड़बड़ है।
एक रात वासुदेव ने ठान लिया कि वह इस रहस्य का पता लगाएंगे। उन्होंने घर में सभी लाइट्स बंद कर दीं और खुद को सोने का नाटक किया। आधी रात को उन्होंने फिर से वही आवाज़ें सुनीं और चुपके से बाहर जाकर देखा। इस बार, उन्होंने देखा कि बूढ़ी औरत गाँव के कुछ असामाजिक तत्वों से मिल रही थी। वे लोग उनके घर का सामान चोरी कर रहे थे और बूढ़ी औरत इसमें उनकी मदद कर रही थी।
वासुदेव ने बिना समय गँवाए गाँव के मुखिया और कुछ और लोगों को बुलाया। सभी ने मिलकर उन चोरों को पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया। बूढ़ी औरत ने अपने अपराध को स्वीकार किया और बताया कि वह वास्तव में एक गैंग की सदस्य थी, जो गाँव के भोले-भाले लोगों को धोखा देकर चोरी करती थी।
गाँव वालों ने वासुदेव की सतर्कता और साहस की सराहना की। उन्होंने गाँव में एक समिति बनाई जो वृद्ध लोगों की मदद करेगी और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखेगी। वासुदेव के जीवन में बुढ़ापा अब एक नई चुनौती और सीख का माध्यम बन गया था।
इस घटना के बाद, गाँव में सबक लिया गया कि सहानुभूति और सहायता के साथ-साथ सतर्कता भी जरूरी है। वासुदेव की कहानी अब गाँव में एक मिसाल बन चुकी थी कि बुढ़ापा केवल एक उम्र का नाम नहीं, बल्कि एक अनुभव और साहस का प्रतीक हो सकता है।