सावन पर चंद सवैये।
-अभय कुमार “आनंद” जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 मुक्ताहरा सवैया हुआ तन जेठ यथा सजना,दृग सावन मास झड़े भरमार। बहा सब अंजन नैनन से,पग पायल मौन… Read More »सावन पर चंद सवैये।
-अभय कुमार “आनंद” जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 मुक्ताहरा सवैया हुआ तन जेठ यथा सजना,दृग सावन मास झड़े भरमार। बहा सब अंजन नैनन से,पग पायल मौन… Read More »सावन पर चंद सवैये।
-अनुराधा पांडे नई दिल्ली जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 गंध तुम्हारी फिर ले आई, सुबह-सुबह पुरवाई। चंदन-जैसी महक रही है,मन की फिर अंगनाई। यों तो… Read More »मन की अंगनाई
-अजय प्रताप सिंह राठौर जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 एक डलिया बादल एक अंजुरी धूप दो जून की रोटी एक लोटा जल मां का आंचल बाप… Read More »तब और अब
–अंकुर सिंह जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 जय हो देवों के देव, प्रणाम तुम्हे है महादेव। हाथ में डमरू, कंठ भुजंगा, प्रणाम तुम्हे शिव पार्वती संगा।।… Read More »शिव वंदना
–सपना चन्द्रा जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 मेरे भीतर जो स्पंदित थी एकदिन उस साँस को बाहरी हवा क्या मिली बस हरी होकर दूब सी बढ़ने… Read More »दूब का फूल
–श्रीकांत तैलंग जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 बारिश की पहली बूँद जो घटा बनकर आयी छा गयी खुशियाँ, हरियाली लायी माई ने आँगन में बाहें फैलायी… Read More »बरसात की बूंद
रश्मि ‘लहर’ लखनऊ जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 उनका मौसम नयनों में बदलता सपनों के चीत्कार से सहम जाता उनकी कल्पित मेंहदी का गाढ़ा-सुर्ख रंग… Read More »दंश
यथार्थ गाँधी लखनऊ, उत्तर प्रदेश जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 गाड़ी चलने दो कुछ सामान गिरे तो गिरने दो कुछ गड्ढे आएं आने दो कुछ… Read More »गाड़ी चलने दो
राम मोहन गुप्त ‘अमर’ लखीमपुर खीरी जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 गरज-कौंध, चमक-दमक के चपला नील गगन में बहुत डराती, रह रह घबराती चिंता भरे… Read More »मेघा बरसो हर मन हर्षो
ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी -मधुरस” अमेठी, उत्तर प्रदेश जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 सावनु बरसयि जिया बहु उरझयि सखिया सजनवा आयिनि ना । हमरउ मरदा भयिनि… Read More »सावनु-कजरी
कांता रावत हरिद्वार, उत्तराखंड जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 आकाश में उमड़ते- घुमड़ते बादलों का शोर, और उस पर मेरे अंतर्मन का खुश होना, उन… Read More »बरसात में भीगता अंतर्मन
कुमार राघव बहादुरगढ़ जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 अंतिम पलक झपकती हो जब, मेरे जाने को लेकर प्रणय स्वीकृत कर देती हो, फिर से आने… Read More »अंतिम पलक
मीनाक्षी पीयूष निवास- लखनऊ जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 नभ में बादल भरे-भरे हैं, सावन के मेघ घिरे कजरारे। बरसें बादल रिमझिम-रिमझिम, धरती का पर… Read More »सावन के मेघ घिरे कजरारे
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’ लखनऊ,उत्तर प्रदेश जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 प्रकृति मोहिनी नवल निराली नित नव रूप बदलती है। बासंती फागुनी कभी तो कभी सावनी… Read More »रिमझिम बरसे सावन
गीत प्रो. विश्वम्भर शुक्ल लखनऊ जून जुलाई 2024, वर्ष-1 अंक-3 तुमने रची प्रीति की मेहँदी हमने कोई छंद लिखा , सुधि के सहज प्रसंग मृदुल… Read More »भीज गई मन की तिदुआरी