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विहंगम अप्रैल मई 2024

प्रकृति

-गरिमा लखनवी विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 प्रकृति कुछ कहना चाहती है मुझसे,हवा की सरसराहट,पक्षियों की चहचहाहट,नदियों का शोर,बारिश का उल्लास वातावरण,मेरे मन को प्रफुल्लित… Read More »प्रकृति

धुंध पसरी आसमां में

-अजय प्रताप सिंह राठौर   लखीमपुर, खीरी विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 धुंध पसरी आसमां मेंहवा कुछ थमी थमी सी है परिंदों में भी वो… Read More »धुंध पसरी आसमां में

वन महोत्सव

-कविन्द्र उपाध्याय विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 इस धरा का ये उत्सव,आओ मनाएं वन महोत्सव,हरियाली को फैलाएं हम सब,खुशहाली को बढ़ाएं हम सब,वृक्षारोपण का ये… Read More »वन महोत्सव

भोर

कुमार राघवबहादुरगढ़ हरियाणा मेकैनिकल इंजीनियरिंग, इतिहास में स्नातकोत्तरहरियाणा सरकार में अध्यापक पद पर कार्यरत विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 जब छा जाएँ काले बादल, और… Read More »भोर

अपराजिता

-एच0 सी0 बडोला “हरदा” विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 रिश्तों को समय से पानी देनाएक प्रचलन नही प्रक्रिया है,जिसे मैने रामदास जैसे व्यक्ति से सीखा… Read More »अपराजिता

पर्यावरण, हमारी प्राथमिकता

द्वारिका प्रसाद रस्तोगी वरिष्ठ साहित्यकार एवं समाजसेवी गोला गोकर्णनाथ, खीरी विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 वृक्ष सदा से दाता होते देते हमको निधि महान इसकी… Read More »पर्यावरण, हमारी प्राथमिकता

अद्भुत भारत देश हमारा

प्रो.विश्वम्भर शुक्ल वरिष्ठ साहित्यकार, लखनऊ विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 अद्भुत भारत देश हमारा, हर्ष-पर्व के फेरे ,चित्रकार घर घर अलबेले मोहक चित्र उकेरे !… Read More »अद्भुत भारत देश हमारा

तृप्ति का आचमन

रमेश पाण्डेय “शिखर शलभ” गीतकार, छोटी काशी गोला , खीरी विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 आज क्यों अनमना गीत है— अनछुई भावना, अनवरत साधना, शब्द… Read More »तृप्ति का आचमन

आँगन की बर्बादी

नन्दी लाल “निरास” वरिष्ठ साहित्यकार, गोला गोकर्ण नाथ विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 मम्मी पापा खेल देखते बचपन की आजादी का। बाबा जलवा देख रहे… Read More »आँगन की बर्बादी

कुछ मुक्तक

-शिप्रा श्रीजागोला गोकर्णनाथ विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 बहुत धूल है फांकी तुमने बहुत शूल हैं झेले जीवन सरस बनाने खातिर पाले बहुत झमेले किया… Read More »कुछ मुक्तक

लालन-पालन

–अनूप सक्सेना  जबलपुर विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 बच्चे होते हैं मनभावन,मन को करते हैं वह पावन।कर्मठ होना हमें सिखाते,संयम का भी पाठ पढ़ाते।। अनुशासित… Read More »लालन-पालन

कहना मानें

सन्त कुमार वाजपेयी ‘सन्त’ वरिष्ठ साहित्यकार, गोला गोकर्णनाथ, खीरी लू ने हाहाकार मचाया। है अपना आतंक जमाया।। दूभर हुआ निकलना घर से। अन्दर बैठे इसके… Read More »कहना मानें

हमने बचपन में देखा था

–लेखा वर्मा, गाज़ियाबाद विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 हमने बचपन में देखा था,प्रकृति का सौम्य रूप,कलकल करती नदियाँ थीं,स्वच्छ जल से भरपूर।बहती थीं मर्यादा मेंउफ़ान… Read More »हमने बचपन में देखा था

दोहे : नवरात्रि पर विशेष

-माणक तुलसीराम गौड़ विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 1 हॅंसते हॅंसते आज ही, माता  आई द्वार। नवरात्रि शुभ पर्व है, माँ का हो सत्कार।।    2… Read More »दोहे : नवरात्रि पर विशेष

मनहरण घनाक्षरी

अभय कुमार आनंद पूर्व सेना अधिकारी, साहित्यकार, लखनऊ विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2 पीले-पीले पुष्प-पट,तन सरसों लिपट,लेता दिखे करवट, हँसता बसंत है।कली हँसे डाल-डाल,अलि करता… Read More »मनहरण घनाक्षरी