-डॉ. सतीश “बब्बा”
प्रयागराज एक्सप्रेस धड़ल्ले से दौड़ती हुई जा रही थी। हम एयरकंडीशन वर्थ 2 बी की लोवर वर्थ पर आसीन हो गए थे। मैं भी सोने का प्रयास कर रहा था। तभी 56 नंबर के वर्थ वाले से एक और आदमी से गहरी तू तू मैं मैं होने लगी।
कितने कैसे लोग होते हैं वर्थ दूसरे की और खुद उसमें सोने की जिद कर रहे होते हैं। तभी हमारे साथ के साथी सुरेन्द्र दुबे उठे और उससे पूछा, “तुम्हारी सीट कौन सी हैं?”
उसने टिकट दिखाया ऊपर वाली सीट थी। हालांकि मैं हमेशा सुरेन्द्र दुबे को मना किया है कि, हमसे दूसरे के मामले से क्या मतलब! लेकिन उनके लड़ने से नींद में खलल भी पड़ रही थी।
सुरेन्द्र दुबे उसको अपनी सीट दे दिया और खुद उसकी सीट पर आसीन हो गए थे। टिकिट कंडक्टर खड़ा सब देख रहा था, फिर भी वो कुछ बोला नहीं।
हमारे साथ चित्रकूट जिले के ही मऊ तहसील के कुछ सज्जन भी उसी वर्थ में यात्री थे। उनमें एक रिटायर्ड मास्टर थे। जिनसे मेरी कुछ सकारात्मक बातें हुईं। लेकिन एक तगड़ा सा नवजवान एक सज्जन से उलझ गया और वह अपनी अंधभक्ति में डूबा हुआ था; वह एक नेता के पक्ष में उसका गुणगान कर रहा था और एक दूसरे नेता को बुरा-भला कहने लगा था।
मामले की नजाकत और संजीदगी को देखते हुए मैंने सुरेन्द्र दुबे से कहा कि, “दुबे, आज पंद्रह अगस्त 2024 का दिन है और यह क्या हो रहा है किसी तरह से इन्हें शांत करवाया जाए!”
हम और भी कई लोगों ने दिमाग लगाया और किसी तरह से मामला शांत हुआ और फिर माहौल को हंसी खुशी का बनाया गया। हमारे ही जिले के होने के कारण उनसे जल्दी ही परिचय हो गया और हम सभी अपनी अपनी सीट पर सो गए थे।
सुबह चार बजे कि, वही अंधभक्त सज्जन जो मेरी सीट के सामने वाली सीट के ऊपर मध्य वाली सीट पर सोए थे काफी आवाज करके उतरे सो ऐसा लगा मुझे कि शायद आठों सीटों के लोग जाग गए थे फिर भी चुप थे।
आखिर मैंने पूछ ही लिया, “क्या हुआ जी?”
मुझे वह अच्छा लगा, वह मजाकिया अंदाज में था और कहा, “क्या बताऊं, मेरी तो चवन्नी गिर गई है; उसी को ढूंढ रहा था!”
मुझे भी यह अंदाज अच्छा लगा और मैं भी तुरंत ही खेद जताया, “ओह, तब तो बहुत बड़ा नुक्सान हो गया!”
पता नहीं क्या हुआ और सभी हंस पड़े! तभी मास्टर साहब ने कहा, “हम तो केजा वाले थे!” ( केजा कहते हैं, अनाज लेकर दुकानदार के पास जाना और अनाज के बदले सौदा – सामान लेना! )
मुझे भी बचपन याद आया और मैंने कहा, “मैं तो दो आने की पाव भर ( ढाई सौ ग्राम ) जलेबी खाया है चवन्नी का गिरना बहुत ही नुकसान दायक है!”
हम अपने घर से पांच रुपए में चित्रकूट घूमकर वापस आ जाते थे खाना भी खाते और पिक्चर भी श्रृंगार टाकीज कर्वी में देखते थे। माहौल काफी ऊर्जावान और स्फूर्तिवान हंसी खुशी, ठहाकों वाला हो गया था।
इसी हंसी ठिठोली के बीच उज्जैन स्टेशन आ गया जहां हम सभी को महाकाल दर्शन के लिए जाना था और फिर हम सभी अपनी अपनी पसंद से और अपने ढंग से चल पड़े!
इस यात्रा की चवन्नी यादगार बन गई और सदैव याद आएगी यह यात्रा!
हम पाटीदार धर्मशाला में ठहरे थे। हर बार की तरह ही इस बार भी हमने बकायदा अपने कमरे का निरीक्षण किया था
पाटीदार समाज के बारे में जानकारी की मैं अपनी उत्सुकता एक वहीं के उसी धर्मशाला के कर्मचारी से बातचीत करके उत्सुकता मिटाने की कोशिश की।
पाटीदार, कुलमी जो हमारे यहां कुर्मी कहा जाता है, वही होता ही है क्योंकि पाटीदार जमीन के कीड़े होते हैं और फसल आदि उगाने में मेहनत करते हैं। पाटीदार चमड़ी भलाई चली जाए पर दमड़ी खर्च नहीं करते हैं। वो काफी कंजूस प्रकृति के होते हैं। जीवन भर कमाते हैं और खर्च नहीं करते हैं। उस कर्मचारी के अनुसार वह तेल सब्जी में उतना ही डालते हैं जितने में एक बार छन्न की आवाज आ जाए बहुत है।
हम सामान सुरक्षित रखकर शिप्रा स्नान के लिए गए थे। मुझे डर था कि, जुकाम में कहीं और गड़बड़ न हो जाए लेकिन स्कंद पुराण के अनुसार शिप्रा में स्नान करने से बुखार नहीं आता है। इसलिए रामघाट पर ही स्नान बनाया।
हम लोग महाकाल मंदिर में प्रवेश किया और बहुत अच्छी व्यवस्था के बीच चलते चलते आखिर गर्भगृह तक पहुंच गए । वहां अजय यादव नामक एक सिक्योरिटी गार्ड ने रोका और ढाई सौ रुपए की रशीद कटवाने के लिए कहा! वरना अंदर प्रवेश नहीं कर सकते थे। रसीद भी आपको नंदी बाबा के पास तक ही पहुंचा सकती थी। जबकि ऐसा पहले नहीं था। पहले जल चढ़ाया करते थे। अब तो वहीं बाहर से ही दर्शन करके लोगों को जाना पड़ता है।
फिर बाहर आकर हम सभी लोग काफी देर तक साक्षी गोपाल मंदिर के पास अपने परिवार के सदस्यों को वीडियो काल के माध्यम से मंदिर को दिखाते रहे।
जैसा कि हर बार करते हैं बाहर आकर हमने एक होटल में खाना खाया जिसकी मिर्च अभी भी रोमांचित कर रही है।
फिर बस से उज्जैन दर्शन में गढ़ कालिका मंदिर, मंगलनाथ मंदिर जहां माता पृथ्वी के भी दर्शन किए जिसका जिक्र मैं मंगलनाथ यात्रा ब्रतांत में विस्तार से करूंगा। यहां मांगलिक कुंडली वाले पूजा कराकर मांगलिक दोष से मुक्ति पाते हैं।
हम सांदीपनि आश्रम पर गए जहां पर श्री कृष्ण और सुदामा ने शिक्षा ग्रहण किया था। भर्तृहरि गुफा में प्रवेश किया मेरे साथ मेरे सहयात्री सुरेन्द्र दुबे और बबुआ मिश्र थे।
हमलोगों ने महाकाल भैरव मंदिर में प्रवेश किया और सुरेन्द्र दुबे ने शराब खरीदा हम भी शरीक हुए और महाकाल भैरव को शराब पिलाया थोड़ी सी बची हुई शराब के लिए पंडा ने कहा, “घर ले जाना और छोटे बच्चे को दवा के रूप में पिलाया करना!”
फिर शनि मंदिर और बहुत सी जगहों पर घूमते रहे। शाम को कमरे में आकर कुछ देर आराम किया और फिर हरसिद्धि देवी मां के मंदिर में गए जो महाकाल मंदिर के करीब ही स्थिति है।
शाम की आरती होने वाली थी भीड़भाड़ खूब थी हम लोगों ने हरिसिद्ध माता जो राजा विक्रमादित्य की पूजित सिद्ध मां के दर्शन किए और उसी प्रांगण में कर्कोटेश्वर शिवलिंग के दर्शन किए जो स्कंद पुराण के अनुसार उस शिवलिंग के दर्शन करने से सांपों का भय नहीं होता।
मंदिर के सामने ही दो स्तंभ हैं जिनमें जगमग जगमग दीप प्रज्ज्वलित हो रहे थे। सुरेन्द्र दुबे ने फोटो खींचा और वीडियो भी बनाया। फिर दस बजे रात हम वहां से निकल कर कुछ प्रसाद खरीदने के साथ फल लिए और अपने कमरे में आकर फ़ल खाए फिर दर दरबार में बारह बज गए और हम तीनों निद्रा देवी की गिरफ्त में होकर सो गए थे।
मैं यह संस्मरण अपनी रेलगाड़ी की सीट पर बैठे हुए ही लिख रहा था। जो वापस हमें हमारे घर की ओर ले आ रही थी।
कब सो गए और फिर सुबह जगे तो चित्रकूटधाम कर्वी स्टेशन पर पहुंच गए थे। चवन्नी का चक्कर अब भी हमें हंसा रहा था।
डॉ. सतीश “बब्बा”
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