-अजय प्रताप सिंह राठौर
लखीमपुर, खीरी
विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
धुंध पसरी आसमां में
हवा कुछ थमी थमी सी है
परिंदों में भी वो चमक नहीं
झुकी आंखों में एक नमी सी है
सब कुछ लगता है ठीक सा,पर
महसूस हो रही एक कमी सी है
दिल डूबा डूबा सा है,और
ख़ून की रवानी जमी जमी सी है
चलो देखें जरा चल के उसे
कहीं ग़ुम न हो गयी हो,
उसकी भी हंसी मेरी हंसी सी