-डॉ. साधना अग्रवाल ‘साधिका’
प्रेम गणित तो है नहीं, जो यूँ ही हल होए।
हल करने की चाह में, रोज साधिका रोए।।
प्रेम रसायन शास्त्र है, कुछ में कुछ मिल जाय।
एक गलत मिश्रण हुआ, धुआँ धुआँ हो जाय।।
खाली बैठे खाइए, पेट घड़ा बन जाय।
उसको कम करने के लिए, श्रम करना पड़ जाय।।
‘मस्तिष्क’ का मतलब है क्या, आज तुम्हें समझायें।
मस्ती और इश्क दोनों ही, एक शब्द में समायें।।
पत्नी बोली पति से, क्या बनाऊँ मैं आज।
बात का बतंगड़ छोड़ के, सब खा लूँगा आज।।
थका हुआ इन्सान है, फोन चला दिन रात।
चार्ज फोन को कर रहा, अपनी न सोचे बात।।
दवाओं के नखरे बहुत, इनकी सुन लो बात।
किसी को खाली पेट लो, कुछ नाश्ते के बाद।।
औरत सीधी है अगर, गाय बुलाया जाए।
आदमी गर सरल हो, गधा ही कहा जाए।।
आशिकी आसां नहीं, महबूबा की मीत।
उसका कुत्ता यदि मरे, दहाड़ रोए मनमीत।।
दिल की बातें यदि सुनो, अच्छी बातें नाय।
जो खुद उल्टी तरफ है, क्या सलाह दे पाय।
प्रेम है निजी मामला, अन्दर अन्दर होय।
टुटने पर बेइज्जती, सार्वजनिक क्यों होय।।
क्या किसी को पता है, मूली की माँ का नाम,
थोड़े इधर भी कान दो, मामूली है नाम।।
इतना रखो इस बदन को, जिसको उठाया जाय।
अर्थी तेरी उठाते समय, कोई गाली ना बरसाय।।
-डॉ. साधना अग्रवाल ‘साधिका’
खुर्जा (बुलंदशहर), उत्तर प्रदेश