-माणक तुलसीराम गौड़
विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
1
हॅंसते हॅंसते आज ही, माता आई द्वार।
नवरात्रि शुभ पर्व है, माँ का हो सत्कार।।
2
माता की महिमा बड़ी, किसविध करूँ बखान।
शब्द भाव उपजे नहीं, मैं बालक नादान।।
3
कौन जगत में दूसरा, मात तेरे समान।
तूने ही पूरे किए, जो पाले अरमान।।
4
नमन करूँ माँ शारदा, झुक-झुक करूँ प्रणाम।
शुभ पथ पर निश दिन चलूँ, मैं नित आठों याम।।
5
बार-बार वर माँगते, आती माता लाज।
सुत चिंता तुम ही करो, और सुधारो काज।।
6
लाल महावर पाँव में, लाल शोभता चीर।
तेरे लाल पुकारते, हरो हमारी पीर।।
7
माँ का रूप सुहावना, हटे न मेरा ध्यान।
थोड़ी मति सद्गुण नहीं, कैसे करूँ बखान।।
8
जन्मदात्री हो तुम्हीं, तुम ही पालनहार।
हो प्राणों के प्राण तुम, नमन करूँ हर बार।।
9
पीड़ा नाशक मात है, सुख की है भण्डार।
कौन जान तुम्हें सका, माया अपरम्पार।।
10
तेजों में तुम तेज हो, कण-कण तेरा वास।
अनल अनिल नभ भौम में, कहाँ नहीं आवास।।
11
तुम जननी हम बाल हैं, हम ठहरे नादान।
जनम-जनम का साथ हो, ऐसा दो वरदान।।
12
माता के दरबार में, रोज नवाता माथ।
रखना मुझको साथ में, नहीं छोड़ना हाथ।।
13
खड़ग ढाल ले हाथ में, अरि पर करो प्रहार।
इक हाथ शंख पुष्प है, दूजे में तलवार।।
14
जब-जब तुझको भूलता, मन होता बेचैन।
सुमिरन तेरा जब करूँ, तब मन पाता चैन।।
15
‘माणक’ केवल आपका, मत जाना तू भूल।
तेरा ही है आसरा, मैं चरणों की धूल।।