सम्पादकीय- श्री अलंकार रस्तोगी
विहंगम, अप्रैल मई 2024, वर्ष-1 अंक- 2
विहंगम मात्र एक पत्रिका ही नहीं है यह साहित्य और समाज के उत्थान के लिए एक क्रान्ति भी है। इस पत्रिका रुपी अनुष्ठान में अपनी रचनात्मक आहुति देने वाले सभी लोगों को साधुवाद। यह अंक पर्यावरण को समर्पित है। पर्यावरण संरक्षण की अनिवार्यता तब हमें महसूस होती है जब हमारे दोहन के कारण घर में लगे हुए समर्सिबल का पानी कई फीट तक नीचे उतर जाता है। हालाँकि लोगों को ये नहीं मालूम होता है कि पानी जमीन का नहीं बल्कि हमारे ज़मीर का मरता है। लोग ये नहीं सोच पाते हैं कि जब वो घर के सामने खड़ी हुई अपनी कार को हजारो लीटर पानी से धोकर चमकाते हैं तो वह कहीं न कहीं अपनी छवि को ही पर्यावरण के दृष्टिकोण से मैली कर रहे होते हैं।
पर्यावरण मानव जाति का आधार, जीवन का आधार और पृथ्वी की समृद्धि का स्त्रोत है। ऐसा सोचना आज के इंसान को पिछड़ा और ‘आउट डेटेड’ लगता है। आज लोग अपने घर के आगे पेड़ इसलिए नहीं लगाना चाहते क्योंकि क्योंकि इसमें बैठने वाले पक्षियों के शोर से उनकी नीद जल्दी खुल जाने की आशंका होती है । अब उन्हें कौन बताये कि सारी कवायद तो उनकी पर्यावरण के प्रति उदासीनता वाली नींद खोलने की ही है। यह नींद जितनी जल्दी खुल जाए उतना ही अच्छा वरना एयरकंडीशन आपकी कंडीशन कब तक सही रख पायेगा यह कोई नहीं जानता है । जितना चिपको आन्दोलन आज प्रेमी जोड़े पेड़ों के पीछे छिपकर चलाते हैं उससे ज्यादा ज़रूरत उन्हें पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ से चिपको आन्दोलन चलाने की है। वरना निकट भविष्य में प्रेमियों को छिपने के लिए तो छोड़ दीजिए सांस लेने के लिए तक पेड़ नहीं मिलेंगे।
आज वायु प्रदूषण की ये स्थिति तो इतनी विकाराल है कि पड़ोस की बालकनी में भाई साहब खड़े अखबार पढ़ रहें या भाभी जी खड़ी बाल सुखा रही इसका अंदाजा तक नही लग पाता है। वायु प्रदूषण इतना हो चुका है कि पता ही नहीं चलता है कि किसी ने पूजा कर के धूप बत्ती लगाई है या पड़ोस की पूजा अपनी कार का इंजन गरम कर रही है। हालत तो ये आ चुकी है कि लोग ‘इजी इएमआई’ और ‘आसान लोन’ वाले मन्त्रों से युक्त उपभोक्तावाद के जाल में फंसकर अब नवाबी का वो दौर जीने लग गएँ हैं कि उनका बस चले तो पान खाकर थूकने तक कार और स्कूटर से जाया करें। उन्हें हर साल एक नया फ्रिज लेना है क्योंकि हर बार कोई कंपनी अपने फ्रिज के दरवाजे पर फूल-पत्त्ती की नयी डिज़ाइन बना देती है। इसके बाद भी आज हर दूसरे बन्दे की शिकायत है कि प्रदूषण कम करने के लिए सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है।
भोली जनता को यह नहीं मालूम होता है कि सरकार कदम उठाती तो हैं लेकिन रखना भूल जाती है। पर्यावरण संरक्षण के लिए जब पेड़ों की संख्या बढ़ाने की बात होती है तब सरकार कागजों में इतनी हरियाली ले आती है कि उसे जिम्मेदारों में चरने की होड़ सी लग जाती है। जब सरकार वायु प्रदूषण रोकने का अभियान चलाती है तब सुविधा शुल्क के बदले में ज़हर उगलने वाली फैक्ट्रियों से धुएं की जगह इत्र बहने लगता है। जब नदियों में शहर के गंदे नाले को गिरने से रोकने के नाम पर करोड़ों लगाए जाते हैं तब जिम्मेदारों का हाजमा इतना दुरुस्त हो जाता है कि उसे डकारने में उन्हें तनिक भी समय नहीं लगता है। जब बात ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ की होती है तब सरकारों को इतना ही याद आता है कि ये भी कोई चुनावी मुद्दा है जिसके बल पर लोग उसे वोट देंगे। बरसात का पानी भले ही बेकार में बह जाए लेकिन कुछ ऐसा गलियारा या कोरिडोर टाइप बना दो कि उसके कारण वोट ज़रूर उनके पक्ष में बहने लग जाए।
प्रकृति का हर तत्व – जल, वायु, भूमि और वनस्पति, पर्यावरण के प्रमुख घटक हैं। इनमें से प्रत्येक घटक न केवल पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाता है, बल्कि संतुलन और सौंदर्य का भी सृजन करता है। हालांकि, वर्तमान समय में पर्यावरणीय संकट एक गंभीर समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है। मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण का निरंतर दोहन और प्रदूषण ने इस समस्या को और भी गहरा बना दिया है।
आज शहरीकरण के कारण पर्यावरण का दोहन चरम पर चला रहा है। प्रकृति के पास सबके मतलब के लिए तो है लेकिन उनकी लालच के लिए नही है। शहरीकरण खेतों और जंगलों को एनाकोंडा की तरह निगलता जा रहा है। अब हर बन्दा शहर की चमक -दमक को देखकर वहां बसने के ख्वाब देख रहा है। उसे खेतों का अनाज छोड़कर राशन की लाइनों में लगना है लेकिन शहर में ही रहना है। उसे गाँव के कुंवे का ठंडा पानी छोड़कर पीने के लिए महीनो से रखे हुए मिनरल वाटर की बोतल से पानी गटकना है लेकिन शहर में ही रहना है। उसे गाँव के दस कमरों का हवादार मकान छोड़कर शहर के किसी अपार्टमेंट की दसवी मंजिल में चमगादड़ की तरह लटकाना है लेकिन उसे शहर में ही रहना है। उसे गाँव के पेड़ों की ठंडी छाँव छोड़कर शहर के जाम में घंटो फँसना है लेकिन उस शहर में ही रहना है। उसे गाँव की जीवन दायिनी गाय को छोड़कर शहर में कुत्ते पालना है लेकिन शहर में ही रहना है।
पर्यावरणीय समस्याओं का सबसे गंभीर प्रभाव जलवायु परिवर्तन के रूप में सामने आया है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन ने वैश्विक तापमान में वृद्धि कर दी है, जिससे ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और मौसम के पैटर्न में परिवर्तन हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ा रही है, बल्कि कृषि, जल संसाधनों और मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डाल रही है।
जनसंख्या नियंत्रण भी पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के साथ संसाधनों की मांग बढ़ती है और पर्यावरण पर दबाव भी बढ़ता है। अब यहाँ शर्त यह भी है कि जब तक लोग संतानों को ऊपर वाले की मेहरबानी की बजाए अपनी कारस्तानी नहीं मानेंगे तब तक बात नहीं बनेगी। शिक्षा और जागरूकता भी पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्कूली शिक्षा में पर्यावरण विज्ञान को एक अनिवार्य विषय के रूप में शामिल करना चाहिए ताकि बच्चों में प्रारंभ से ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता विकसित हो सके। इसके अलावा, विभिन्न माध्यमों से जन जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व और तरीकों के बारे में शिक्षित करना चाहिए। अगर हम आज अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाते, तो भविष्य में हमें और भी गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इसलिए, आवश्यक है कि हम सतत विकास के सिद्धांतों का पालन करें और एक स्वच्छ, स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण की दिशा में अपने प्रयासों को जारी रखें।
इस बात के लिए हमें ज्यादा जागरूक रहना होगा कि किसी राजनीतिक दल के घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कोई कार्य योजना है कि नहीं। केवल फ्री का सामान और मंदिर -मस्जिद वाले लोक लुभावने वादे करने वालों से प्रश्न पूछना होगा कि उनके लिए पर्यावरण संरक्षण प्राथमिकता में क्यों नहीं है ?
-अलंकार रस्तोगी