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गंगा- कैसे रहे अविरल और निर्मल

    शिप्रा खरे

    अध्यक्ष, कपिलश फाउंडेशन

    मुख्य संपादक- विहंगम, डायरेक्टर– KSSS Pvt Ltd

    विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2

    गंगा, भारत की पवित्रतम नदियों में से एक, केवल जलधारा मात्र नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास की जीवंत धरोहर है। हिमालय की पवित्र गोद से निकलकर, गंगा उत्तर भारत के विशाल मैदानों से गुजरती है और अंततः बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है। ऋषियों और मुनियों की तपोभूमि रही यह नदी सदियों से हमारी सभ्यता की साक्षी रही है। किन्तु, आज यह पावन नदी गहरे संकट में है। प्रदूषण के काले साये ने इसकी निर्मल धारा को दूषित कर दिया है, और इसके जल में विष की मात्रा बढ़ती जा रही है।

    प्रदूषण के प्रमुख कारण

    औद्योगिक अपशिष्ट और रासायनिक प्रदूषण

    गंगा के तट पर बसे अनेक औद्योगिक प्रतिष्ठान प्रतिदिन लाखों लीटर रासायनिक अपशिष्ट नदी में छोड़ते हैं। कानपुर, वाराणसी, पटना जैसे प्रमुख नगरों में चमड़े के कारखानों, रसायन संयंत्रों और अन्य उद्योगों से निकलने वाले विषाक्त पदार्थ गंगा के जल को दूषित करते हैं। इन रासायनिक अपशिष्टों में हानिकारक धातुएं और विषैले रसायन होते हैं जो जल जीवों के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करते हैं।

    नगरपालिकीय कचरा और सीवेज

    भारत के अधिकांश नगरों का सीवेज तंत्र अभी भी अत्यंत अविकसित है। नगरपालिकीय अपशिष्ट और असंस्कृत सीवेज का एक बड़ा भाग सीधे गंगा में प्रवाहित होता है। रोजमर्रा की गतिविधियों से उत्पन्न कचरा, प्लास्टिक, घरेलू अपशिष्ट और मल-मूत्र का उचित निस्तारण न होने के कारण यह सब गंगा में ही समा जाता है, जिससे जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट आती है।

    धार्मिक और सामाजिक गतिविधियाँ

    गंगा के तट पर हर वर्ष करोड़ों श्रद्धालु स्नान करने, पूजा-अर्चना करने और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करने आते हैं। इस दौरान बड़ी मात्रा में फूल, धूप, अगरबत्ती, पूजा सामग्री और मूर्तियों का विसर्जन गंगा में किया जाता है। यह सभी चीजें गंगा के जल को दूषित करती हैं। इसके अलावा, कुंभ और अन्य धार्मिक मेलों के समय नदी पर प्रदूषण का भार और बढ़ जाता है।

    कृषि अपशिष्ट और रासायनिक उर्वरक

    गंगा के जलग्रहण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कृषि होती है। किसानों द्वारा अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जो बारिश के साथ बहकर गंगा में मिल जाते हैं। यह रसायन नदी के जल को प्रदूषित करते हैं और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुंचाते हैं।

    प्रदूषण का पर्यावरणीय और स्वास्थ्य पर प्रभाव

    जलीय जीवों पर प्रभाव

    गंगा का जल प्रदूषित होने से इसमें निवास करने वाले मछली, कछुआ और अन्य जलीय जीव गंभीर संकट में हैं। विषाक्त रसायनों और भारी धातुओं के कारण जलीय जीवों की जनसंख्या में भारी कमी आई है। इसके अलावा, इन जीवों के प्रजनन चक्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

    मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

    गंगा के प्रदूषित जल का सेवन करने वाले लोग विभिन्न जलजनित रोगों से पीड़ित हो रहे हैं। इनमें पेट संबंधी रोग, त्वचा रोग, हैजा, टाइफाइड और डायरिया प्रमुख हैं। गंगा का जल अनेक स्थानों पर पेयजल के रूप में भी उपयोग होता है, जिससे इन बीमारियों का प्रकोप और बढ़ जाता है।

    पारिस्थितिक संतुलन पर असर

    गंगा का प्रदूषण इसके सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर रहा है। जलीय पौधों और जीवों की विविधता में कमी आ रही है। नदी के किनारे बसे जीव-जंतु और वनस्पतियाँ भी प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं। जल की गुणवत्ता में गिरावट से सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

    सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास

    सरकार की योजनाएँ और परियोजनाएँ

    सरकार ने गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए अनेक योजनाएँ और परियोजनाएँ शुरू की हैं। ‘नमामि गंगे योजना’ इनमें प्रमुख है। इस योजना के अंतर्गत गंगा के किनारे बसे नगरों में सीवेज उपचार संयंत्र लगाए जा रहे हैं, औद्योगिक अपशिष्ट के प्रबंधन के उपाय किए जा रहे हैं और जन जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।

    गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के प्रयास

    गंगा की सफाई में गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों का योगदान भी महत्वपूर्ण है। कई संगठनों ने जनभागीदारी से गंगा के तट पर सफाई अभियान चलाए हैं और स्थानीय लोगों को जागरूक किया है। सामुदायिक भागीदारी से किए गए ये प्रयास गंगा की स्वच्छता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

    संरक्षण और निवारण के उपाय

    औद्योगिक और नगरपालिकीय कचरे के प्रबंधन के उपाय

    औद्योगिक अपशिष्ट और नगरपालिकीय कचरे के उचित प्रबंधन के लिए कठोर नियम और उनका सख्ती से पालन आवश्यक है। औद्योगिक इकाइयों को अपशिष्ट जल को संसाधित करने के बाद ही नदी में छोड़ने की अनुमति होनी चाहिए। नगरपालिकाओं को सीवेज उपचार संयंत्र स्थापित करने और कचरे के उचित निस्तारण के उपाय करने चाहिए।

    जागरूकता और शिक्षा की भूमिका

    गंगा को स्वच्छ रखने के लिए जनसाधारण में जागरूकता और शिक्षा का प्रसार अत्यंत महत्वपूर्ण है। विद्यालयों, महाविद्यालयों और सामुदायिक केंद्रों में गंगा की स्वच्छता पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से भी लोगों को गंगा की पवित्रता और उसकी स्वच्छता के महत्व को समझाया जाना चाहिए।

    सतत विकास और स्वच्छता की आदतें

    गंगा के संरक्षण के लिए सतत विकास और स्वच्छता की आदतों को अपनाना आवश्यक है। किसानों को जैविक खेती और कम रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के लिए प्रेरित करना चाहिए। नगरवासियों को कचरे के सही निस्तारण की आदत डालनी चाहिए और गंगा के तट पर किसी भी प्रकार के कचरे को न फेंकने की शपथ लेनी चाहिए।

    सामुदायिक भागीदारी और स्थानीय प्रयास

    गंगा की सफाई और संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। स्थानीय समुदायों को गंगा की सफाई में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और अपने आसपास के क्षेत्रों को स्वच्छ रखने के लिए नियमित अभियान चलाने चाहिए। इसके साथ ही, स्थानीय प्रशासन और संगठनों को भी सहयोग करना चाहिए।

    गंगा की पावन धारा को स्वच्छ और अविरल बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है। इसके लिए हमें सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है। केवल तब ही हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ और स्वस्थ गंगा का उपहार दे सकेंगे।

                                                               – शिप्रा खरे