–प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
विधु की मृदुल रश्मियों के सँग अगम समंदर नहा गया है,
अँधियारे कोने में संचित तिमिर हृदय का बहा गया है !
भूली बिसरी स्मृतियों सँग
आत्मीय पल सुधी लगे हैं,
जीने के मिल गये बहाने,
प्रीति-पगे अनुबंध सगे हैं।
सबकी मंदाकिनी हर्ष की, सबकी पलकों में हैं मोती ,
रुदन,गान सबकुछ है इसमें, जिसको जीवन कहा गया है !
जब दिखती है कहीं विवशता,
भावुक मन लगता अकुलाने,
रह रह उठती टीस हृदय में
जब आते दिन याद पुराने।
भीगे नयन पोंछ देते हैं हँसते-गाते पल सुधियों के ,
पीर नासमझ,घाव हठीला, दर्द अपरिमित सहा गया है !
चन्दन की डोली में आये ,
अधर चूम,बाहों में ले भर ,
हाथ पकड़ चंद्रिका सलोनी
संग लिए जाने को तत्पर ।
बड़े दिनों के बाद बटोही ठहरा है आकर बस्ती में ,
एक शुष्क आँगन फिर कोई पुष्पों से लहलहा गया है !