-रवींद्र श्रीवास्तव ‘रवि’
तक़दीर के लिक्खे को मिटाता नहीं कोई।
हालात बुरे हों तो बचाता नहीं कोई।। १
माना कि बुराई भी भले लाख थी मुझमे।
अपनों से युँ ही रूठ के जाता नहीं कोई।। २
जो शख्स गिरा आप हो अपनी ही नज़र से।
ये सोच के नज़रों से गिराता नहीं कोई।। ३
इस इश्क़ के जंजाल में मैं कब से फँसा हूँ।
दो प्यार भरे बोल जताता नहीं कोई।। ४
है दूर समुंदर न बुझी दिल की लगी ‘रवि’।
पास आ के मेरी आग बुझाता नहीं कोई।। ५
– रवींद्र श्रीवास्तव ‘रवि’