-डॉ अर्चना श्रीवास्तव
मै रोज की तरह कालेज से वापस आ रही थी। अभी कुछ ही दूर बढी थी ,कि मैने देखा,सामने से भारी भीड चली आ रही है ,जिसमें बहुतायत में थी खाकी वर्दी……आस पास के लोग …………गमगीन ,हैरान और बदहवास से। गाडी रोकी तो देखा हथकडियों में बुरी तरह जकडा ,एक नवयुवक ,दहाड मार मार कर रोते हुए कह रहा था ” मेरी अम्मा अरे तू कहां चली गयी ,जरा तू रुक जाती मै तो आ ही रहा था।”। बहते हुए आंसू ,उद्वेलित चेहरे को भिगोये ही जा रहे थे। पुलिस दोनों हाथ पीठ के पीछे घुमा कर जकडे हुए थी,इसीलिए उसकी कमीज़ सहेज रही थी आंसुओं की गरम नमीं को।अपराध क्या था ? मुझे नहीं पता……………..। मगर बर्बरता के शिकंजे को तोड बहे मां के बिछोही आंसुओं ने खाकी वर्दी को भी खारा कर दिया था।मैने उतर कर एक पान वाले से पूंछा तो बताने लगा ” यह लडका अंदर गली में रहता है।आज इसकी मां नहीं रही। कमिश्नर ने इसे कडी सुरक्षा में अन्तिम संस्कार के लिए भेजा है। “बहुत बडा अपराध किया है क्या? “मैने पूंछा।अब क्या बतायें बहुत सीधा लडका था यही सामने के स्कूल से इंटर फर्स्ट डिवीजन में किया था ।इसकी मां ने पूरे मुहल्ले में मिठाई बांटी थी।चार साल हुए बाप मर गये। सामने वाली परचूनी की दुकान थी उनकी ।कल शाम तक उसकी मां को मैने सौदा बेंचते देखा है। रात ही रात मे दिल का दौरा पडा और मर गयी। यह लडका मां और एक बडी बहन के साथ अच्छे से घर चला रहा था ।बडा मेहनती और मां का आज्ञा कारी था सुरेश नाम है इसका। इसकी बहन बहुत सुन्दर है,बाप के ना रहने पर मुहल्ले के उद्दंड लडके अक्सर कमेंन्टबाजी और छेडछाड किया करते थे। इसी डर से सुरेश अपनी बहन को बेवजह बाहर नही जाने देता था।
एक दिन वह पढकर कालेज से लौट रही थी। घर के नजदीक आ चुकी थी कि तभी मोटर साइकिल सवार एक अमीरजादे मनचले लडके ने उसका दुपट्टा घसीट लिया ।तेज झपट्टे के कारण उसकी बहन लडखडायी और साइकिल से औंधे मुंह गिर पडी।ये लडका दुकान से सब देख रहा था। चोट खायी अपनी बहन को गिरा देख ये सामने पडा पत्थर उठाकर मोटर साइकिल सवार के पीछे भागा और उसके सिर पर पत्थर दे मारा वह लडका वहीं का वहीं ढेर हो गया तभी से यह जेल की सजा काट रहा है।
मां ने बहुत दौड धूप की मगर जमानत नहीं करा पाई।हम सबसे कहती थी बिटिया का एक तो बाप नहीं दूसरे भाई जेल में, कैसे इसे हम ब्याहेंगे ?इसी गम में ही वह चली गयी। सारा कुछ सुनकर मै कुछ भी कह न सकी मुझे लगा सारे शब्द ,एक एक कर, गूंगे हो गये हैं । बोझिल मन से, मै कार में बैठी ही थी कि सामने से शोकाकुल लोगों के हुजूम के बीच, मुझे हथकडी पहने वह युवक, दिखा जो एक हाथ से मां को कंधा दे रहा था और दूसरे हाथ से फफक फफक रोती अपनी बहन को चिपकाये हुए था और रो रोकर कह रहा था “मै हूं ना…. .देख तेरा भाई हूं मै …….मां तो मेरी भी है ना बता क्या करूं अब ?…..तुझे खुश रखूंगा मै …… लौट के आने तो दे “।किसी ने पीछे से हाथ बढाकर उसकी बहन को थाम लिया । बडे सधे कदमों से वह साहसी बढ चला उस काफिले के साथ। वह शान्त हो गया।शायद मां ने अपने रोते बिलखते बच्चे को हमेशा की तरह चुप करा दिया था। बेटियों को लेकर उभरते प्रश्नों ने ,मुझे कटघरे में कैद कर दिया था और मै पर कटे पंक्षी की तरह ,फडफडा रही थी। न्याय,दंड और संवेदना में कौन बाजी जीतेगा ? आखिर कब होगा इसका निपटारा ??
–डॉ अर्चना श्रीवास्तव
लखनऊ