सन्त कुमार वाजपेयी ‘सन्त’
वरिष्ठ साहित्यकार, गोला गोकर्णनाथ, खीरी
लू ने हाहाकार मचाया।
है अपना आतंक जमाया।।
दूभर हुआ निकलना घर से।
अन्दर बैठे इसके डर से।।
इससे बचने की तैयारी।
करें आजकल सब नरनारी।।
पना, शिकंजी पीता कोई।
पिये बेल का शर्बत कोई।।
प्याज जेब में रखकर कोई।
चलता तन को ढक कर कोई।।
हुई सभी की हालत खस्ता।
सूख रहा जीवन गुलदस्ता।।
जिसने खाया एक थपेड़ा।
झुलसा उसके तन का बेड़ा।।
वृद्ध जनों का कहना मानें।
भला इसी में अपना जानें।।
नंगे सिर मत बाहर जाएँ।
टोपी पहनें खुशी मनाएँ।।
या फिर गमछा तन पर डालें।
नहीं किसी भी भ्रम को पालें।।
सूरज से आँखें न मिलाएँ।
खुद अपने रक्षक बन जाएँ।।