-डॉ. सुषमा सेंगर
विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
संस्मरण
छोटी काशी गोला गोकर्णनाथ में होने वाले कपिलश इंटरनेशनल के डेढ़ सौ घंटे चलने वाले काव्य समारोह में जाने वाले प्रतिभागी शेफालिका झा ने फेसबुक पर अपना निमंत्रण कार्ड पोस्ट किया था । आदतन उसको अग्रिम शुभकामनाएं लिखकर प्रोत्साहन दे दिया । उस टिप्पणी के जवाब में राजेश बाजपेयी जी ने कहा ,” दीदी आप भी आइये न ” जैसे ही लिखा “देखते हैं ” उन्होंने मैसेंजर पर सारी डिटेल भेज दी और मैंने फॉर्म भर दी।
उसके बाद जायेंगे , नहीं जायेंगे में उलझी रही । कानपुर से जो लोग जा रहे थे वो भी एक-एक करके किसी न किसी कारण से जाने की असमर्थता बता गए।
फिर हमने भी एकदम से जाने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया । 27-9-24 की सुबह अनीता मौर्या जी का फोन आया कि चलो ट्रेन से चलते हैं ! बाहर से कई लोग आ रहे है , उन्ही के साथ चलेंगे आज रात पौने चार की ट्रेन है कल प्रोग्राम अटेंड करेंगे , रात में वापस लौटेंगे तो रविवार की सुबह घर में। उनसे हामी भर ली और शाम के छह बजे बैग लगाने लगे तो बहू को बताया कि गोला के प्रोग्राम में जा रहे हैं उसने मेरे हाथ से कपड़े ले लिए और प्रेस करके बैग लगाया और नाश्ता-पानी आदि भी बैग में रख दिया। बेटे को पता चला तो वो कहने लगा कि ढाई सौ किलोमीटर ही तो है हम साथ चल लेंगे। हमने उसको ये कहते हुए मना कर दिया कि अभी पितृ पक्ष चल रहे हैं, दोबारा चलेंगे अभी हम सबके साथ चले जायेंगे।
स्टेशन पर सिटी साइड की तरफ मेट्रो कंट्रक्शन के कारण हुई अव्यवस्था को देखकर एक बार फिर बेटे ने कहा, चलो गाड़ी से चल लेते हैं, हमने उससे एक नंबर पर चलने को कहा और उसको प्लेटफॉर्म पर छोड़ कर स्टेशन पर गए तो ट्रेन सही समय पर आ गयी ।
पंकज अंगार जी उतर कर नीचे आये और हम लोग सबके साथ बैठ गए। ट्रेन के लखनऊ पहुंचने का समय पौने छह बजे का था और वहाँ से गोला जाने वाली ट्रेन सवा छह बजे छूटनी थी। इधर की ट्रेन बड़ी लाइन पर रुकनी थी और उधर की ट्रेन छोटी लाइन से चलनी थी । प्लेटफॉर्म पार करने में लेट न हो इस लिए छोटी बहन विभा सिंह जो कि छोटी लाइन रेलवे स्टेशन पर कार्यरत है , उसे पद्रह टिकट लेने को बोल दिया। लखनऊ में बड़ी लाइन से दौड़ते हुए गए और भागते हुए छोटी लाइन की ट्रेन पकड़ी।
विभा सिंह ने ट्रेन में लेते हुए लोगों को बैठाया और हम लोगों को जगह दिलाई व एक स्टेशन तक साथ भी आयी । गोला पहुंचने पर स्टेशन के बाहर खड़े ई-रिक्शा वाले बड़ी इज्जत से बुलाने लगे की हमको पता है कि आप लोगों को कहाँ जाना है हम छोड़ देंगे दस दस रूपये में। हम पांच-पांच की संख्या में चार रिक्शों में बैठकर पहुंचे तो आयोजक शिप्रा श्रीवास्तव और भगवती, बेधड़क जी गेट पर ही मिले और स्वागत के साथ ही नाश्ता करने का अनुरोध किया।
वहां पर हमने देखा कि सुबह 7 बजे से लेकर रात एक बजे तक राम रसोई चलती ही रहती थी! कोई एक बार खाये या दस बार कोई बंधन नहीं था! पहुंचते ही भोजन सेवा में लगे भाई ने कहा कि आप लोग भटूरा खाएंगे या कचौरी वही गरम-गरम निकलवा देते हैं! हमने किसी को देखे बगैर कचौरी बोल दिया और दस मिनट में गरमा-गरम कचौरी बनकर आ गयीं! तब तक हमने हलवा और चाय का आनंद लिया।
नाश्ते के समय ही बेधड़क जी को बता दिया कि हम कानपुर से आये हैं और मेरा नाम पता नहीं लिस्ट में है कि नहीं! उन्होंने हमसे डिटेल मांगी और साथ लेकर गए और बोले कि अभी आप को पढ़वा दिया जायेगा तब हमने उन्हें बताया कि हम अभी नहीं रात आठ बजे के बाद पढ़ेंगे तो उन्होंने कहा कि जैसी मर्ज़ी । एक घंटे तक काव्य-पाठ सुनने के बाद गेस्ट रूम में जाकर थोड़ा आराम करने चले गए । वहीँ पर गोविन्द गजब, पंकज जोशी आदि से मुलाकात हुई फिर गोकर्णनाथ जी के दर्शन के लिए चले गए!
दर्शन के बाद कार्यक्रम स्थल पर जाकर लंच किया और ओमपाल सिंह निडर जी का आशीर्वाद लिया। शाम छह बजे तैयार होकर गेस्ट रूम से कार्यक्रम स्थल पहुंच गए! पंकज अंगार जी के संयोजन और नितेश नैश जी के संचालन में कार्यक्रम चालू हुआ ।उसमे करीब बीस लोगों को काव्य-पाठ करना था उसी में हम भी शामिल कर लिए गए ।वहीँ पर पहली बार राजेश बाजपेयी जी , शेफालिका झा जी और सरोज परिहार दीदी व अभय सिंह अभय आदि कई लोगों से मुलाकात हुई।
फेसबुक पर तो इन सभी को काफी दिनों से देखती-पढ़ती, लाइक-कमेंट का आदान प्रदान चलता रहता था, इसलिए सभी पूर्व परिचित थे आभासी इसलिए नहीं कहूँगी कि भले ही सब फेसबुक से मिले पर पर हम लोगों का फेसबुकिया वार्तालाप इतना घनिष्ट था कि कभी आभासी लगे ही नहीं।काफी लोग व्हाट्सएप पर भी जुड़े हुए हैं।
प्रदेश के सबसे बुजुर्ग कवि सम्मानियर मुरलीधर तिवारी जी के उद्घाटन , रमेश पांडेय शिखर शलभ के पहले संचालन और सी जी एस पी महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो0विश्वम्भर शुक्ल के प्रथम काव्यपाठ से शुरू हुए कार्यक्रम में अट्ठाइस तारीख की शाम आठ बजे पंकज अंगार के संयोजन व कुमार नितेश नैश के संचालन में काव्य पाठ करने का हमें अवसर प्राप्त हुआ।
हमारे साथ डॉ सुफलता त्रिपाठी, अनिल मिश्रा, रंजना गौतम, शानू राज, शीतल देवयानी, श्रुति शारदाश्री, प्रमिला किरण, लीना परिहार, सुनीता पटेल, शेफालिका झा, शैलजा दुबे, चांदनी केसरवानी, मंजू कटारे, अनीता मौर्या, प्रतिभा पटेल, आनंद पगारे, मनीष तारण और पंकज जोशी जी ने मंच साझा किया। आठ बजे से लगभग दो बजे तक चलने वाले कार्यक्रम में सभी साहित्यकारों की अभिव्यक्ति गजब की रही। हर रचनाकार ने दिए हुए बीस मिनट के समय का पूरा-पूरा सदुपयोग किया। जब तक समय समापन की घंटी नहीं बजी किसी ने भी माइक नहीं छोड़ा । एक दो को तो घंटी बजने के बाद भी श्रोताओं के आग्रह पर एक्स्ट्रा समय दिया गया। सभी को काव्यपाठ के तुरंत बाद सहभागिता सम्मान पत्र से सम्मानित प्रसाद आदि से सम्मानित किया गया। थोड़ा विश्राम के बाद सुबह छह बजे की ट्रेन पकड़ कर लखनऊ आये और वहां से बस द्वारा कानपुर। पहले जिन लोगों से बात हुई थी उन्होंने यही बताया था कि केवल एक बार ही पढ़ने का अवसर दिया जायेगा , पर वहां पहुंचकर पता चला कि चौबीस घंटे बाद दोबारा काव्य पाठ किया जा सकता है। सुबह पहुंचे दिन में भटकते रहे रात में कार्यक्रम में सम्मिलित हुए और सुबह चले आये। किसी से ढंग से न मिल पाए न समझ पाए! वहां पर शिप्रा खरे जी को देखा सबका स्वागत सबका सम्मान हर जगह उपस्थित रहना देखकर तो यही लगा कि शायद वो पूरे एक सौ पचपन घंटे सोई ही नहीं बराबर कार्यक्रम स्थल पर ही बनी रही और हम लोग गए पढ़े सम्मान करवाया और चले आये।
अब आगे इस तरह के किसी भी कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला तो समय लेकर जायेंगे ताकि कुछ सीखने और समझने को मिल सके । ये पहला कार्यक्रम था जिसमे पुरुष और महिलाओं की संख्या लगभग बराबर थी, नहीं तो जितने भी साहित्यिक कार्यक्रम होते हैं महिला साहित्यकारों की संख्या हमेशां दस से तीस प्रतिशत ही होती है। शिप्रा खरे और उनकी पूरी टीम की मेहनत को प्रणाम करती हूँ और ये शुभकामना देती हूँ कि सबकी ऊर्जा बनी रहे ताकि आगे भी ऐसे कार्यक्रम होते रहें धन्यवाद।
डॉ. सुषमा सेंगर
कानपुर