-विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
अंतर्मन के तहखाने में
सोए अहसास जगाने होंगें
चुन चुन के लफ़्जों के मोती
इक डोरी में पिरोने होंगे
सीधा सीधा सच सुनता
ही नहीं कोई यहां पर
पीड़ा भी, दर्द भी, अब
मुस्कानों से सजाने होंगे
-अजय प्रताप सिंह राठौर
लखीमपुर