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कुछ मुक्तक

    -शिप्रा श्रीजा
    गोला गोकर्णनाथ

    विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2

    बहुत धूल है फांकी तुमने बहुत शूल हैं झेले

    जीवन सरस बनाने खातिर पाले बहुत झमेले

    किया बहुत है सब्र, दिन उड़ने के अब हैं आए

    उड़ ले चिड़िया पंख खोल अपना आकाश तू ले ले। 1

    आप हमको मिले चांद तारे मिले

    प्रेम धन से जड़ित रत्न सारे मिले

    प्रेम की यह परिक्षा कठिन है बहुत

    थोड़े जीते मिले थोड़े हारे मिले । 2

    बनके अपना वो बात करते हैं

    दिन में करते हैं रात करते हैं

    घोपते हैं फिर इस तरह खंजर

    मुस्कुरा कर के घात करते हैं । 3

    उड़ती बातों की नहीं बात कोई

    उनके शब्दों की नहीं जात कोई

    कब पलट जाएं अपनी बातों से

    बिन मिले शह की नहीं मात कोई