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क्यों उन्मन है पृथ्वी का मौसम

    कंचन पाठक, कवियित्री-लेखिका, नई दिल्ली.
    विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2

    ”अश्र्च्त्थमेकं पिचुमिन्दमेकं न्यग्रोधमेकं दश पुष्पजाति द्वे द्वे, तथा दाड़िम मातुलुंगे पञ्चाम्ररोपी नरकं न याति”

    भावार्थ – ”एक पीपल, एक नीम, एक बरगद, दस फूलों के पौधे, दो दो अनार के वृक्ष तथा पाँच आम और नारंगी के वृक्ष लगाने वाला मनुष्य नरक नहीं जाता..”
    हजारों वर्ष पुराना यह श्लोक कितनी दूर दृष्टि के साथ लिखा गया होगा यह विचारने योग्य बात है. आज के प्रदुषण पीड़ित माहौल में यह श्लोक कितना प्रासंगिक बैठता है यह हम सभी भलीभांति जानते हैं. श्लोक में वर्णित नरक या स्वर्ग तो खैर कहने भर की बात है, मुख्य बात यह है कि नए वनस्पतिवैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि पीपल, नीम, बरगद आदि ऐसे वृक्ष हैं जो वातावरण में बहुतायत में ऑक्सीजन की मात्रा छोड़ते हैं.. तो क्या हमारे पूर्वजों को इस बात का एहसास था कि आने वाली पीढ़ी पेड़ पौधों को काट काट कर धरती को इस प्रकार नग्न कर देगी कि प्रदूषण की मार झेलते झेलते ओजोन की परत में छेद हो जाएगा ? ऑक्सीजन छोड़ने वाले दरख्तों की संख्या इस कदर विरल हो जाएगी कि स्वर्ग की सी सुन्दर यह धरती प्रदूषण की मार से जर्जर होकर नर्क के समान हो जाएगी ? आइए विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर हम प्रदूषण और पर्यावर्णीय चेतना से सम्बन्धित कुछ बातें करते हैं.
    ”छोटे होते जाड़े और बड़ी हो रही गर्मियाँ,

    क्यों उन्मन है पृथ्वी का मौसम’’-

    कहाँ गया वह मौसम जब हर घर के बगीचों में किस्म किस्म के फूल खिला करते थे, ठण्डी हवा चलती थी, मौसम जी भरकर अपनी रौनकें बिखेरता था. अब जलती हुई धरती पर कंक्रीट के जंगल और उन जंगलों में कई कई फ्लोर पर टंगे हुए बित्ते भर के फ्लैट में कहाँ बगीचे और कहाँ फूल ? मैदानों में तीन महीने भी ठीक से नहीं पड़ती ठण्ड और गर्मियों के मौसम बड़े होते चले जा रहे हैं. गैर मौसमी बारिश, ओले और बरसात के मौसम का देर से आना सब प्रदुषण के हीं दुष्परिणाम हैं. आँकड़े बताते हैं कि हर साल मौसम का तापमान कई डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता चला जा रहा है.
    निःसंदेह हमारे पास एक हीं पृथ्वी है और यदि हमने अपनी पृथ्वी को नहीं बचाया तो मानव जीवन समाप्त हो जाएगा.  इस असीम ब्रह्माण्ड में करोड़ों ग्रह नक्षत्र हैं परन्तु एकमात्र पृथ्वी हीं एक ऐसा ग्रह है जिसके ऊपर जीवन का अस्तित्व संभव है और अगर हमने प्रदूषण फैलाना बंद नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर से भी जीवन समाप्त हो जाएगा.
    क्यों मनाया जाता है ?
    पर्यावरण के प्रति चेतना, जागरूकता और सम्वेदना जागृत करने के लिए दुनिया भर में हर साल 5 जून को ‘’पर्यावरण दिवस’’ मनाया जाता है.

    5 जून का दिन हीं क्यों ?

    आप सभी में मन में यह विचार पैदा हो सकता है कि इस दिवस को मनाने के लिए 5 जून का दिन हीं क्यों चुना गया. तो दोस्तों मैं आपको इसके पीछे का कारण बताती हूँ. दरअसल वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र में (स्वीडन के स्टॉकहोम में) 5 से 16 जून तक मानव पर्यावरण पर एक सम्मलेन शुरू हुआ जिसमें कुछ प्रभावकारी अभियानों को चलाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का सुझाव दिया गया. इस सम्मलेन में दुनिया भर के 119 देशों ने भाग लिया था, और इसी के बाद से संयुक्त राष्ट्र के द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना की गयी और हर साल 5 जून की तिथि को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मना कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का निश्चय किया गया. तभी से पूरी दुनिया में हर साल 5 जून की तिथि को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है.

    ख़ास क्यों है भारत के लिए –

    इस सम्मलेन में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी ने भाग किया था तथा ‘’पर्यावरण के बिगड़ते हालात और भविष्य में इसके प्रभाव’’ विषय के ऊपर अपना व्याख्यान दिया था. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए यह भारत का पहला कदम माना जाता है. इस लिहाज़ से भारत के लिए भी यह दिन अपना एक ख़ास महत्त्व रखता है. 1974 में पहली बार इसे कुछ खास थीम और कांसेप्ट्स के साथ मनाया गया था. इसमें विश्व पर्यावरण दिवस का थीम था ”केवल एक दुनिया”.
    उसके बाद से हर साल पेड़ों और वनों की कटाई, ग्लोबल वार्मिंग, नदियों के प्रदूषण आदि विभिन्न विषयों और भविष्य में होने वाली पर्यावरणीय परेशानियों से आगाह करने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस को मनाया जाने लगा.

    इस साल विश्व पर्यावरण दिवस की थीम –
    इस साल विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है ‘’भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता’’ कार्यक्रम का नारा है ”हमारी भूमि हमारा भविष्य”.

    तबाह न हो जाए पूरी दुनिया –
    अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा में मनुष्य ने जंगल के जंगल काट कर वन्यजीवों को बेघर कर दिया, नदियों और समन्दर को प्रदूषित कर निर्दोष मछलियों और जल जीवों को सताया, वातावरण में डरावनी ध्वनियाँ फैला कर साउंड पॉल्यूशन पैदा किया, हवा में जहर घोला. एक देश दूसरे देश से लड़ने में, नीचा दिखाने में, एक दूसरे को बर्बाद करने में, तोड़ फोड़, जुलूस, आतंकी हमले, लडाई झगड़े करने में जितनी मानव शक्ति और पैसे फूंक रहा है उतने पैसों और शक्ति में तो यह पृथ्वी स्वर्ग से भी सुन्दर हो सकती थी.. पर नहीं आज का मनुष्य खुद को उन्नतिशील समझता है वह परमाणु बम बना कर खुद को सुरक्षित करता है.. उसे ये कौन बताएगा कि जब परमाणु बम से ये पूरी दुनिया हीं तबाह हो जाएगी तो यहाँ बचाने के लिए रह हीं क्या जाएगा ? आखिर वह किसकी सुरक्षा की सोच रहा है ?

    वैसे दुनिया के कई देश अब प्रदूषण कम करने लिए प्रयास भी कर रहे हैं. इस क्रम में विलुप्त हुए विभिन्न पेड़ पौधों, पशु पक्षियों आदि को बचाने की कोशिश भी की जा रही है. परन्तु यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस दिशा में केवल सरकार के भरोसे न रहकर हम सभी को अपना दायित्व खुद समझना होगा वर्ना विलुप्त पेड़ पौधों, जीवों को तो हम बचा लेंगे पर जब मानव हीं इस पृथ्वी पर से विलुप्त हो जाएगा तो उसे कौन बचाएगा ?                                                      

                           – कंचन पाठक.