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मनहरण घनाक्षरी

    अभय कुमार आनंद

    पूर्व सेना अधिकारी, साहित्यकार, लखनऊ

    विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2

    पीले-पीले पुष्प-पट,तन सरसों लिपट,
    लेता दिखे करवट, हँसता बसंत है।
    कली हँसे डाल-डाल,अलि करता बवाल,
    फँसे ज्यों ही प्रेम-जाल,सजता बसंत है।
    तरु-लता झूम-झूम, नये पात चूम-चूम,
    नाचे गाए घूम-घूम, नवता बसंत है।
    कुहू-कुहू गान बीच, कोयल की तान बीच,
    हरे परिधान बीच, बसता बसंत है।।

    झरती बौछार जब,नीले-नीले नभ तले,
    उमड़-घुमड़ कर,तृप्त करे धरती।
    धरती श्रृंगार करे,लाल-पीले फूलों संग,
    झूम-झूम तरु-लता,देख आहें भरती।
    भरती है झील नील,दूर तक मीलों मील,
    शीतल फुहार ज्यों ही,जोर शोर करती।
    करती कमाल घटा,कजरारी छायी रहे,
    शीत-शीत नीर संग,नेह बूँद झरती।।