Skip to content

मीनाक्षी

    नन्दलाल मणि त्रिपठी पीताम्बर
     धर्म राज अपने पहले चरण की पृथ्वी यात्रा पूर्णकरने के उपरांत कैलाश भगवान शिव के सेवार्थ प्रस्तुत हुये और प्रथम चरण की पृथ्वी यात्रा एव सप्त चिरंजीवी में हनुमान जी से मुलाकात एव उनके युग समाज परिवर्तन के अनुभव बताया ।

    यमराज ने बताया औघड़ दानी भोले नाथ आपके शिव परिवार में सभी को समान सम्मान अधिकार प्राप्त है लेकिन पृथ्वी लोक पर आपके परिवार के भोले भाले आदिवासियों की जिंदगी जीते जी नर्क जैसी है वहां भोले भाले आदि मानव वंशीय लोग जो अधिकतर वनों में निवास करता है ब्रह्म की सृजना ब्रह्मांड के महत्वपूर्ण भाग पर्यावरण व वन को संरक्षित संवर्धित करता है और उसी का अधिकार बन सम्पदा एव खनिज संपदा पर नही है ।

    मैने माता मल्लिका (पार्वती) एव आपके सयुक्त निवास श्री शैलम के वन प्रदेशो के आदिवासी समाज मे आपकि इच्छाओं को जागृति कर उन्हें सर्वश्रेष्ठ शक्ति मान बनाया है आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप मेरे अथक प्रयास के परिणाम स्वरूप कुछ आदिवासी समाज मे आत्म सम्मान की चेतना का जागरण हुआ है मैं चाहूंगा कि वे आपके परिवार के अति महत्वपूर्ण भाग है अतः उनके मन समाज के जागरण की शक्ति श्रृंखला का प्रवाह सम्पूर्ण पृथ्वी पर एक चमत्कारिक क्रांति का संकल्प लेकर आदिवासी समाज मे समयानुसार आमूल चूल परिवर्तन करने में सक्षम हो एव आदि मानव का समाज युग सृष्टि में आदर्श एव योग्यतम दक्षतम समाज हो भगवान  शिव शंकर ने यमराज से कहा एवमस्तु।

    यमराज लौट कर शनि महाराज से अपनी अनुपस्थिति में यमलोक के क्रिया कलाप के संदर्भ में सम्पूर्ण जानकारी विवरण प्राप्त किया और अपने दूसरे चरण पृथ्वी यात्रा के विषय मे शनि महाराज से विचार विमर्श किया एव अपनी पृथ्वी यात्रा के दूसरे चरण के लिए प्रस्थान किया चूंकि पृथ्वी पर उनका विश्वास सिर्फ हितेंद्र पर था हितेंद्र अबोध माता पिता का सच्चा भक्त एव कत्तर्व्य परायण बालक था उसको देखने से ही लगता था वह विलक्षण बालक है ।

    यमराज पृथ्वी लोक में सीधे हितेंद्र के पास पहुंचे हितेंद्र उन्हें देखते पहचान गया बोला महाराज मैं वाणिक हूँ पिता की चाय की दुकान छोड़ कर कही जा नही सकता आप इतने दिन बाद आये मेरे लिए इससे बड़ी सौभाग्य कि बात  नही हो सकती है मैं आपकी क्या सेवा  करू ?जिससे कि आप प्रसन्न हो ।

    यमराज बोले हितेंद्र पिछली बार जब हम आये थे तो तुम्हारे ही बताने पर हम वनवासी लोंगो के पास गए थे बहुत अच्छा लगा अब तुम ही बताओ कि अब हमे कहां जाना चाहिए हितेंद्र कुछ देर शांत रहते सोच विचार करने के बाद बोला महाराज आप इस बार  किसी गांव में जाये यमराज ने कहा वाह हितेंद्र तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली और यमराज अंतर्ध्यान हो गए और सीधे

    झारखंड के गुमला जिले के एक आदिवासी बाहुल्य गांव में गए गांव में उन्हें कोई जानता पहचानता तो था नही और कोई नातेदार रिश्तेदार था हो भी कैसे सकता था यमराज का नाम सुनते पृथ्वी वासी कांप उठता है तो रिश्तेदारी का तो प्रश्न ही नही उठता ।

     यमराज जी गांव के मंदिर पर पहुंचे जहां कोई पुजारी नही रहता था भगवान शंकर का मंदिर था वही विश्राम करने लगे कुछ देर बाद आदि वासी बच्चे आपस मे खेलते हुए नित्य के भांति मंदिर पर पहुंचे वास्तव में गांव का मंदिर बच्चों के खेलने कूदने का स्थान एव गांव के लोंगो के लिए मेल मिलाप का एक स्थान था।

    जब भी कोई उत्सव गांव में होता मंदिर पर लोंगो का जमावड़ा लगता बच्चे जब मंदिर पर आए तो किसी अंजनवी को देख कर बहुत आश्चर्य चकित हुये और पूछा आप कौन यमराज ने बताया कि हम संत है और घूमते फिरते चले आये है कुछ दिन मंदिर पर बिताने के बाद चले जायेंगे तीन चार बच्चे थे यमराज ने सबका नाम पूछा एक बताया किशोर दूसरे ने चंदर तीसरे ने मोर चौथे ने चकोर।

    यमराज ने कहा वह भाई क्या बात है किशोर चंदर मोर चकोर यमराज ने बच्चों से कहा देखो भाई मैं तो अंजनवी हूँ गांव में मुझे कोई जानता नही है बच्चे भोले भाले मन के सच्चे भगवान के प्यारे क्या आप लोग मेरे  मित्र बनोगे बच्चों को यमराज का व्यवहार बहुत अच्छा लगा सभी बच्चे एक साथ बोले हा बाबा हम सभी बच्चे आपके मित्र बनना चाहेंगे बहुत अच्छे है आप लेकिन हम लोंगो की एक शर्त है रोज आप हम लोंगो को अच्छी अच्छी कहानियां सुनायेंगे और आज से मित्रता शुरू तो आज तो पहले सुनायेंगे तभी हम लोंगो को भरोसा होगा कि आप हम लोंगो के सच्चे मित्र है ।

    यमराज के सामने किशोर चंदर मोर चकोर बैठ गए यमराज ने भी एक शर्त बच्चों के सामने रखी उन्होंने कहा ठीक है एक अच्छी कहानी जब तक यहां रुका हूँ प्रतिदिन सुनाऊंगा लेकिन मेरी भी एक शर्त है कि मैं जो कहानी सुनाऊं उसे ध्यान से सुनते हुए उसकी अच्छी बातों को ध्यान रखिये और सीखिये बच्चे बोले आप तो हम लोंगो के अम्मा बाबू की तरह ही बात करते है वो लोग भी हम लोंगो से यही कहते है अच्छी बातें सीखो अच्छी आदतें सीखो फिर बच्चे बोले ठीक है आप आज की कहानी तो सुनाईये यमराज ने सोचा कि बच्चों को कौन सी कहानी सुनाऊ उन्हें ध्यान आया कि  पृथ्वी वासी तो उनकी बहुत सी कहानियां आपस सुनते सुनाते है क्यो आप बीती ही बच्चों को सुनाया जाय और यमराज ने बच्चों को कहानी सुनाना शुरू किया।

     बोले सुनो ध्यान से बच्चों – यमराज बोले एक बहुत गरीब ब्राह्मण एक गांव में रहता था उसके पास कुछ भी नही था सिर्फ एक झोपड़ी शरीर ढकने के लिए फटा पुराना कपड़ा खाने के लिए वह लोंगो के यहाँ भिक्षा मांगते जो कुछ मिल जाता उंसे स्वंय बनाते खाते एक दिन भिक्षा माँगकर लौटे और चार लिट्टी (मोटी गोल रोटी ) बनाई और भोजन के लिये ज्यो बैठे यमराज वहां पहुंचे वेश बदलकर और बोले वो पण्डित तूने जो चार रोटी बनाई है उंसे मुझे दे दे नही तो तुझे मार डालूंगा कृसकाय दृरिद्र भिक्षु ने कहा महाराज मुझे बहुत भूख लगी है आज भिक्षा भी बहुत कम मिली है मैं स्वंय खांउँगा आपको कुछ नही दे सकता तब वेश बदले यमराज अपने असली रूप मे आ गए और बोले देख दरिद्र ब्राह्मण मैं कौन हूँ मैं स्वंय यमराज हूँ काल यमराज को देखते वह दृरिद्र कृसकाय ब्राह्मण बोला ठीक है आप यमराज है फिर भी मैं आपको अपने भोजन की चार लिट्टियो में एक भी नही दे सकता।

    यमराज को बहुत क्रोध आया बोले मूर्ख तेरी मृत्यु तेरा काल हूँ समझता क्यो नही तू यदि अपनी चार लिट्टियो में से एक भी मुझे दे देगा तब मैं तुझ पर दया करूँगा जब दरिद्र ब्राह्मण ने देखा कि यमराज के क्रोध की प्राकाष्ठा है तो बोला महाराज आप व्यर्थ क्रोधित हो रहे है आपसे निवेदन है कि यदि आप मेरे प्रश्नों का उत्तर दे देंगे तब मैं चारो लिट्टी आपको दे दूंगा यमराज का क्रोध कुछ नरम हुआ बोले बोलो दरिद्र ब्राह्मण तब ब्राह्मण देवता बोले आप ये बताये मेरी आयु कितनी है?मुझे किसी व्यधि के बस बेबस लाचार तो नही होना होगा?और अंतिम प्रश्न क्या मुझे किसी आकस्मिक दुर्घटनाओं का शिकार तो नही होना पड़ेगा ?यमराज बोले दरिद्र ब्राह्मण इन प्रश्नों का उत्तर मैं नही दे सकता इसका उत्तर प्रजापति ब्रह्मा ही दे सकते है दरिद्र ब्राह्मण बोला यमराज महाराज अब आप बिना मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए मुझे मार भी नही सकते आपको मेरे प्रश्नों का उत्तर देना ही होगा ।

    यमराज बोले निश्चित लेकिन दरिद्र ब्राह्मण जब तक तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर मैं नही दे देता तब तक तुम भोजन नही कर सकते हो दरिद्र ब्राह्मण बोला जैसी आपकी इच्छा महाराज लेकिन मैं आपके उत्तर की प्रतीक्षा भी बहुत देर तक नही कर सकता यमराज बोले मैं पल भर के लिए अंतर्ध्यान होकर पुनः लौटता हूँ यमराज ब्रह्मा जी के पास गए और दरिद्र ब्राह्मण के तीनों प्रश्नों के उत्तर की जानकारी प्राप्त किया और पुनः प्रतीक्षारत दरिद्र ब्राह्मण के समक्ष खड़े हो गए और बोले सुन दरिद्र ब्राह्मण तेरी आयु एक सौ बीस वर्ष है और तुझे अभी नब्बे वर्ष निश्चित जीवित रहना है और तुझे शेष नब्बे वर्षो की आयु में कभी भी कोई व्याधि नही है और तेरे जीवन मे कभी कोई आकस्मिक दुर्घटना नही है अब तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर मिल गया है दरिद्र ब्राह्मण अब तुम चारो लिट्टियाँ जिसे अपने भोजन के लिए बनाई है उन्हें हमें दे दो दरिद्र ब्राह्मण बोला अब तो महाराज तुम्हे विल्कुल ही नही देंगे अपने भोजन का एक भी टुकड़ा यमराज पुनः बहुत क्रोधित हुए बोले नादान पृथ्वी वासी देखता नही मैं तेरे समक्ष खड़ा हूँ तू मुझे कुछ समझता ही नही है मेरा नाम सुनते ही पृथ्वी वासी कांप उठते है तू है कि मेरी बात तक नही सुनता।

    दरिद्र पण्डित बोला महाराज आप मेरी आयु से पूर्व मार नही सकते व्यधि है नही मुझे और आकस्मिक दुर्घटना होनी नही है मेरा आप मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते आपकी इज़्ज़त इसी में है कि आप चुप चाप यमलोक लौट जाय दरिद्र ब्राह्मण की बात सुनकर निरूत्तर यमराज बहुत प्रसन्न होकर बोले तुम बहुत बुद्धिमान हो आज दरिद्र हो निश्चित लक्ष्मी तुम्हे अपना आशिर्वाद देगी ।

    चारो बच्चे ध्यान से कहानी सुन रहे थे यमराज बोले बच्चों अच्छा बताओ तुम्हे कहानी से क्या शिक्षा मिली चारो बच्चे एक दूसरे का मुंह ताकते रहे तब यमराज ने स्वंय बताया बच्चों जब तक किसी विषय कि पूर्ण जानकारी ना हो तब तक किसी भी परिस्थिति परिवेश चुनौती से नही टकराना चाहिये जब भी कोई निर्णय ले निर्णय  से पूर्व सभी पक्षो के विषय मे जानकारी अवश्य प्राप्त कर आश्वस्त हो जाना चाहिये।

    बच्चे मन के सच्चे होते है और निर्विकार बच्चे जब मंदिर से अपने घर लौट कर गए तब सबने अपने अपने घर घर अपने अपने अम्मा बापू को मंदिर पर आए अंजनवी के विषय मे बताया चूंकि रात बहुत हो चुकी थी  सबके परिवार वालो ने यही कहा भोरे देखा जाएगा कौन है ? भोर हुई किशोर के बापू तरु चंदर के बापू लाखू एव मोर के बापू शीतल और चकोर  के बापू नरेश एक साथ मंदिर पर अंजनवी से मिलने पहुंच गए यमराज ने पूछा आप लोग इसी गांव के लगते है सभी एक साथ बोले हा महाराज सत्य वचन हम लोग इसी गांव के रहने वाले है कल शाम को बच्चों ने बताया कि मंदिर पर कोई अंजनवी आये है आपकी कहानी से बच्चे बहुत उत्साहित थे महाराज आप अपना परिचय बताये और यहां आने का मकसद बताये यमराज बोले आप लोग किसी व्यर्थ की चिंता में मत पड़े मैं ऐसे ही भ्रमण पर निकला हूँ मन हुआ कि आपके गांव में कुछ दिवस रुंकु मैं भी आदिवासी ही हूँ और यह मंदिर भी आदि देव भूत भंवर भोले नाथ का है  मुझे आपके गांव का मंदिर अच्छा लगा इसीलिये यहां ही कुछ दिन रुकने के बाद आगे की यात्रा शुरू करूँगा ।

    भोलेभाले आदिवासियो को जब यह जानकारी हुई कि अंजनवी भी उन्ही की संस्कृति समाज का है  उन्होंने अंजनवी यमराज से बड़ी विनमता पूर्वक निवेदन किया महाराज यदि कोई परेशानी हो तो निश्चय बताईयेगा आपके भोजन आदि की व्यवस्था में प्रति दिन सुबह शाम का भोजन  दिन गांव के घरों से आता रहेगा अंजनवी यमराज बोले महाराज आप लोग बिल्कुल चिंता मत करे हम कुछ भी ग्रहण नही करते है आप लोग अपने नियमित जीवन चर्या को जारी रँखे मैं यही भोले नाथ की नित्य जब तक हूँ सेवा करता रहूंगा आप लोंगो को कोई समस्या हो तो अवश्य बताये लाखू तरु शीतल एव नरेश ने कहा महाराज आप पूरे गांव के अतिथि है अतः हम लोंगो का नैतिक कर्तव्य है कि आपको हमारे गांव में कोई तकलीफ ना हो ।

    अंजनवी यमराज ने कहा कि यही मेरा भी दायित्व है कि आप लोंगो को कोई तकलीफ मेरे रहते हुए ना हो विशेष कर मेरी वजह से चारो लोंगो को अंजनवी यमराज ने विदा किया गांव में चारो तरफ मंदिर पर अंजनवी का आना चर्चा का विषय बन गया सभी के मन मे अंजनवी से मिलने की जिज्ञासा जागने लगी।

    गांव में जो ही एक दूसरे से मिलता सभी एक दूसरे से कहते कि हम मंदिर अंजनवी से मिलने जा रहे है बड़े सिद्ध महात्मा है और भोजन नही करते है अंजनवी यमराज को दिन में गांववासियों से मीलने में ही बीत जाता  ।

    धीरे धीरे दिन बीतने लगा गांव वाले दिन भर जब भी समय मिलता आते जाते रहते और अंजनवी यमराज  को भी गांव के विषय मे बिभन्न प्रकार की जानकारियां होती रहती अंजनवी यमराज मंदिर छोड़कर गांव में प्रवेश नही किया था ।

    एक दिन रात को पूरे गांव में शोर मचा गया पूरे गांव के लोग  लुकार जला कर  (लुकार को आम भाषा मे मशाल कहते है) लेकर एक दूसरे से पूछते हुये दौड़े जा रहे थे क्या हुआ भाई गांव में इतना शोर शराबा क्यो हो रहा है किसी को कुछ भी जानकारी नही थी यह घटना भारत की आजादी के बीस पच्चीस वर्षो बाद कि है गांवो में अभी बिजली नही पहुंची थी सभी नरेश के घर के तरफ भागे भागे जा रहे थे एका एक नरेश के घर के सामने जलती लुकरो के साथ गांव वालों का जमावड़ा लग गया।

    गांव के भूगोल से अंजनवी अनजान थे जब गांव में हो हल्ला सुनाई दिया तब यमराज के मन मे भी उत्कंठा जागी देखा जाय क्या बात सो यमराज भी नरेश के दरवाजे पर पहुंचे उनके पहुंचते ही गांव वाले एक दूसरे से बोलने लगे हटो हटो मंदिर के महाराज जी आ रहे है गांव वालों  उस असमंजस संसय के समय मे भी अंजनवी मंदिर के महाराज के सम्मान में खड़े हो गए यमराज ने पूछा क्या बात है ?क्यो इतना हो हल्ला हो रहा है ?तब तक घटना की जानकारी गांव वालों को हो चुकी थी नरेश के घर के सामने खोप था (गांव में भूसा रखने का स्थान जो बांस या अरहर के डंठल से बनाया जाता है ) खोप में नरेश की बकरी ने चार बच्चे दिया था रात को विशालकाय अजगर ने खोप के छोटे से मुहँ के तरफ मुंह किया हुआ था और बकरी के तीन बच्चों को निकल चुका था चौथे को निगलने वाला ही था  बकरी के बच्चों की में में करती चिल्लाती जा रही थी गांव वाले एकत्र तो अवश्य हुये मगर भयंकर अजगर के इस विभत्स रूप का कोई जबाब उनके पास नही था जिसके कारण सभी ने यह निर्णय लिया कि यह अजगर चारो बच्चों और माँ को निगलने के बाद दो तीन दिन बाद ही जायेगा क्योकि चार बकरियों के बच्चों एव उनकी माँ को निगलने के बाद उसे पचाने में या यूं कहें हल्का होने में कम से कम तीन दिन का समय लगेगा उसके बाद ही अजगर रेंग सकने की स्थिति में होगा ।

    अतः गांव वालों को कम से कम अजगर के दहसत में तीन दिन तक रहना होगा गौंव के कुछ लोंगो का मत था कि अजगर का चमड़ा छिल दिया जाय इसका मुंह खोप के अंदर है यह इतना विकराल शरीर लेकर चल तो सकता नही है लेकिन गांव वालों में किसी की हिम्मत नही हुई ।

    आदिवासी गाँव जो भी है अक्सर जंगलो के आस पास  ही स्थित है तब विकास भी नही हुआ था अंजनवी यमराज ने गांव वालों की चिंता और दहसत को प्रत्यक्ष देखा और अनुभव किया और बोले कि आप लोग चिंता ना करे आप लोग कहे तो मैं अपना कुंछ प्रायास करु डूबते को क्या चाहिए तिनके का सहारा सारे गांव वाले बोले जी महाराज जी आप अवश्य करे प्रयास  यदि कुछ संम्भवः हो तो। यमराज ने गांववालों से कहा आप लोग दूर हट जाए गांव वाले किनारे हट गए और यमराज अजगर के निकट पहुंचे और और कुछ बोलने लगे जो गांव वालों की समझ मे नही आ रहा था वार्ता कुछ देर चलती रही एका एक यमराज  ने अजगर को कुछ आदेशात्मक स्वर में कहा अजगर ने निगले तीनो बच्चों को उगल दिया बच्चे अभी मरे नही थे  उसके बाद अजगर धीरे धीरे पीछे हटने लगा और खोप से अपना मुहँ बाहर निकाला और बहुत धीरे धीरे रेंगते हुये जंगल की तरफ जाने लगा।

    पूरे गांव में अंजनवी के इस करिश्मे पर बहुत आश्चर्य हुआ क्योकि गाँव मे इससे पहले बहुत सी घटनाएं हो चूंकि थी और गांव वालों को बहुत हानि उठानी पड़ी थी गांव वालों ने अंजनवी के सम्मान में कृथ्यता से नतमस्तक हो गए ।

    सुबह हो चुकी थी सभी देख रहे थे कि अजगर धीरे धीरे जंगल की तरफ बढ़ रहा था अंजनवी का आदेश था कि कोई भी उसका ना तो रास्ता रोकेगा ना ही कोई मारने की कोशिश करेगा वैसे भी देखने मे इतना भयंकर अजगर था कि वैसे भी कोई साहस नही करता।

    अनेको घटनाएं  जंगलो में होती रहती है कभी कोई शेर से टकरा जाता कोई विषधर की चपेट में आ जाता चार पैरों वाले हिंसक पशुओं से तो निपटना आसान होता है किंतु अजगर की आयु यदि सात वर्ष पार कर चुकी हैं तो उससे टकराकर वापस आना असम्भव है अजगर में विष नही होता है वह बहुत आलसी एव ताकतवर जीव है शेर आदि को तो झटके में निगल जाता है शेर सदैव अपना शिकार वही तलाशते है जहां अजगर नही होते अमूमन जिस जगह भयंकर अजगर अकेला रहता है वहा शेष कोई खूंखार जानवर रहने की हिम्मत नही जुटा पाता खैर अंजनवी की गांव में जय जय कार होने लगी।

    यमराज जिनको गांव वाले अंजनवी कहते थे लौट कर भगवान शंकर के मंदिर लौट गए।

    अंजनवी यमराज के मंदिर लौटते ही गांव के लोंगो का तांता लग गया लोग अंजनवी के चमत्कार से बहुत प्रभावित थे चारो तरफ यह बात फैल गयी कि बिहटा गांव के शंकर मंदिर पर एक अंजनवी चमत्कारी महाराज आये है जिन्होंने असम्भव करिश्मा कर दिया जो पृथ्वी पर किसी के लिए संम्भवः नही है ।

    यमराज ने गांव वासियों को बहुत समझने का प्रायास किया किन्तु कोई भी महाराज को सुनने को तैयार ही नही था अब गांव की तो बात छोड़िए आस पास के लोग अंजनवी बाबा यमराज के पास अपनी अपनी समस्याओं को लेकर आते और समाधान लेकर जाते जिसको जो श्रद्धा होती मंदिर पर चढ़ावा चढ़ा देता यमराज को तो रुपये पैसे से कोई लेना देना नही था अतः जो भी चढ़ावा आता यमराज सारा चढ़ावा एकत्र करते जाते।

    एक दिन उन्होने गांव वालों को बुलाया और सारा चढ़ावा गांव वालों को सौंप कर बोले आप लोग भगवान शिव शंकर के इस पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार करे और ऐसा करे कि इतना भव्य मंदिर कही अन्यत्र दुलर्भ हो।

     गांव वालों ने अंजनवी महाराज की बात को सर माथे स्वीकार कर शिवशंकर के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गांव का पुराना खंडहर सा छोटा मंदिर विशाल भव्य मंदिर बन चुका था ।

    अब दूर दूर से लोग  वहां आने लगे यमराज को विहटा गांव में आये एक वर्ष का समय हो चुका था उनके यमलोक के अनुसार पांच पल अब यमराज को भगवान शिव शंकर वह आदेश स्मरण हो आया जिसमे उन्होंने कहा था कि पृथ्वी लोक प्रवास के दौरान उन्हें सातों चिरंजीवी से मिलना होगा उनकी अवधारण पृथ्वी लोक के विषय मे जाननी होगी लेकिन कैसे ?यही प्रश्न उन्हें परेशान किये जा रहा था वह प्रतीक्षा रत भी थे कि भोले नाथ ने कहा है तो अवश्य किसी चिरंजीवी से मुलाकात होगी जिसका प्रारब्ध एव रास्ता भोले शंकर ही निकालेंगे।

    शिवरात्रि का दिन था गांव के मंदिर पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था इसी बीच एक संत आये और यमराज जी से बोले महाराज आप टांगी जाए जहां भगवान परशुराम का फरसा रखा हुआ है आप उस दिव्य फरसे का दर्शन करे दूर दूर से लोग आते है यमराज को तो लगा जैसे शिव शंकर का प्रतिनिधि बनकर ही महात्मा आये हुये है।

    शिव रात्रि कि भीड़ भाड़ समाप्त हुई गांव वालों को बुलाकर यमराज ने कहा मैं एक दिन के लिए टांगी जांऊँगा और वहां भगवान परशुराम जी के फरसे का दर्शन करूँगा लेकिन मेरे साथ कोई नही जाएगा गांव वालों के लाख मना करने के बाद भी यमराज जिद्द पर अड़े रहे गए हार कर गांव वाले महाराज यम की बात को स्वीकार किया ।

    अक्षय तृतीया के दिन जिस दिन भगवान परशुराम जी का जन्म तिथि दिवस है यमराज टँगी रात्रि के प्रथम प्रहर पहुंचे वहां ज्यो ही परशुराम जी के फरसे के दर्शन के लिए सर झुकाया ठीक उसी समय फरसे के स्थान पर भगवान परशुरामजी जी मृगछाला धारण किये उपस्थित हुए और बोले धर्म देव यमराज भगवान शंकर के आदेशानुसार पृथ्वी पर आपकी दूसरी यात्रा और मेरी मुलाकात है।

    जब आपकी मुलाकात हनुमान जी से हुई थी तब आप वन में आदिवासी समाज के साथ रह रहे थे क्योकि हनुमान जी की उत्पत्ति सुंदर मनोरम प्राकृतिक वातावरण में वनप्रदेश के राजा अंजनी के पुत्र के रूप में हुई थी।

    मेरी मुलाक़ात यहां हुयी अवश्य है किंतु आप आदिवासी गांव बिहटा के भगवान शिव के मंदिर पर निवास कर रहे है मैं भगवान शिव का अन्यंय भक्त हूँ आपने भगवान शिव के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया अब आप बताये क्या जिज्ञासा है आपकी जो मुझसे जानना चाहेंगे ?यमराज बोले महाराज एक प्रश्न मैं आपके अवतारी कार्यकाल के सम्बंध में पूछना चाहूंगा एव दूसरा चिरंजीवी होकर युगों युगों तक भ्रमण के संबंध में भगवान परशुराम बोले क्या प्रश्न है? धर्म देवता यमराज बोले  महाराज लोग कहते है कि आपने छत्रियों का विनाश किया भगवान परशुराम बोले धर्मराज भगवान विष्णु का अवतार उद्देश्यों के लिए होता है किसी जाति विशेष के लिए नही मैंने छत्रियों से तो कभी युद्ध किया ही नही मैं लड़ा उन अत्याचारी अन्यायी क्रूर राजाओं से जिनके शासन आतंक से प्रजा त्रस्त थी यही भ्रम युगों युगों से चला आ रहा है इसीलिए बाद के किसी भी छत्रिय राजा ने मेरा कोई मंदिर निर्माण नही कराया मेरे माता पिता बांधवों समेत सबकी हत्या कर दी गयी सहस्त्र बहु द्वारा सिर्फ गाय के लिए जबकि रामा वतार में रावण की बहन सूपनखा के विवाह प्रस्ताव के हठ पर सूपनखा के नाक कान काट लिया तब रावण ने माता सीता का बल पूर्वक अपहरण किया राम ने रावण का वध किया कोई ब्राह्मण नही कहता कि राम ने गलत किया बल्कि ब्राह्मण भगवान राम के मंदिर का पुजारी उनके गुण गान करने के लिए ग्रंथो का निर्माण आदि कार्य करता है गोस्वामी तुलसी दास हो या ब्रह्मर्षि वाल्मीकि सब आप जानते है और जब मुझे यह ज्ञात हो गया कि विष्णु जी के अवतार भगवान राम का अवतरण हो चुका है तो मैंने स्वय उनका स्वागत कर विष्णु जी का धनुष सौंप महेंद्र पर्वत पर  तपस्या करने इसलिये चला आया क्योंकि मैंने ही भगवान श्री राम से विष्णु जी के धनुष पर प्रत्यंचा चढांने को कहा था और उसे मेरे पूर्व में सभी संचित पुण्यों को समाप्त करने के लिये छोड़ने का निवेदन किया था यमराज दसरथ जी भगवान राम के पिता ने तीन विवाह किए यदि सूपनखा के विवाह प्रस्ताव को भगवान राम मान लेते तो कोई अनीति नही करते लेकिन उनका अवतार ही मर्यादाओं की स्थापना के लिए ही हुआ था यमराज छुद्र संकुचित कलुषित मानव आज भी मुझे मन से स्वीकार करना तो अलग की बात सम्मान तक नही देता सिर्फ यह कह कर की मैं सिर्फ ब्राह्मणों का देवता हूँ राम के बाद भगवान कृष्ण सभी तो है कलयुग में ।

    यमराज बोले भार्गव मैं समझ गया अब मुझे कोई संसय नही रहा।

    यमराज ने कहा भार्गव अब आप यह बताये कि चिरंजीवी होने के बाद आपको कैसा अनुभव हो रहा है भगवान परशुराम जी बोले यमराज युगों युगों से मैं महेंद्र पर्वत पर तप कर रहा हूँ मैंने जो देखा है वही बता रहा हूँ प्राणियो के आचरण आचार व्यवहार में गिरावट विशेष कर मानव में जिसे सोचने समझने अन्वेषण की शक्ति प्राप्त है ।

    सृष्टि के सभी सिद्धांतो को ताख पर रख दिया है मानवीय समाज मे रिश्ते नातो का भाव है समाजिक पतन इस कदर हो चुका है जिसका वर्णन नही किया जा सकता है  मानव जाति ने आपनी समझ से इतनी प्रगति कर ली है कि उसके आचरण पशुओं से भी बदतर हो चुके है जिसका वर्णन कर पाना सम्भव नही है आप दूसरी बार पृथ्वी पर आए है आपको भी सच्चाई का अनुमान अनुभव हो चुका होगा ।

    यमराज बोले भगवन मैं जो प्रत्यक्ष देख रहा हूँ कभी कल्पना भी नही की थी कि यह क्या हो रहा है?

    भगवान परशुराम बोले यमराज युग मे इतना पतन देखकर लगता है कि चिरंजीवी होकर यही देखना शेष था तो इससे बेहतर तो चिरंजीवी ना होना ही था चिरंजीवी में एक विष्णु का अवतार जो मैं स्वंय हूँ और अन्यंय शिव भक्त हूं दूसरा विष्णु भक्त एव शिव अंश रुद्रांश है हनुमान जी दोनों से तुम्हारी मुलाकात पृथ्वी पर हो चुकी है

    दोनों का एक ही अनुभव है दोनों ने ही  लगभग एक ही बात दोहराई यमराज बोले भगवन आपके दर्शन हुए मैं कृतार्थ हुआ।

    यमराज विहटा के शिव मंदिर लौट आये गांव वाले आस पास के लोंगो का नियमित आना जाना शुरू था ही अब यमराज को लग रहा था कि पृथ्वी भ्रमण के दूसरे दौर का कार्य समाप्त हो चुका था और उन्हें अब चलना चाहिये लेकिन भोले भाले आदिवासियों के स्नेह प्रेम सम्मान के वशीभूत यमराज जी का देवत्व इतना बसीभूत हो चुका था कि वह जाने की इच्छा तक नही प्रगट कर पा रहे थे दिन बीतते जा रहे थे यमराज की चिंता बढ़ती जा रही थी यमलोक में भी यमराज की प्रतीक्षा जोरो पर चल रही थी यमराज को कोई ऐसा अवसर नही मिल पा रहा था कि वह विहटा गांव छोड़ सके ।

    एक दिन दिन भर व्यतता के बाद यमराज मध्य रात्रि को भगवान शंकर के ज्योतिलिंग के समक्ष बैठे थे कि कही से आवाजे आती सुनाई दी यमराज बिना ध्यान दिये शंकर जी के शिवलिंग के पास बैठे रहे तभी बहुत तेज आवाजे आने लगीं विहटा के बगल गांव के लोग हाथ मे लुकार लेकर मारो मारो करते मंदिर के ही तरफ भागे चले आ रहे थे

    दोनों गांव के लोग आमने सामने टीकम के लोग एक ही बात कहते जा रहे थे मारो किशोर की बेटी ने मीनाक्षी ने टीकम के ठाकुर शमशेर के बेटे निकान्त को अपने प्रेम जाल में फंसा लिया है और वह बावरा होकर इतनी रात को घर छोड़कर उससे मिलने आया है टीकम और विहटा गांव के लोग आमने सामने खड़े एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए और लगा कि पल भर में कितने शव एक दूसरे गांव के गिर जाएंगे ।

    तभी अंजनवी यमराज महाराज वहाँ दोनों गांवो के भीड़ के मध्य पहुँच गए और उन्होंने शमशेर सिंह को सम्बोधित करते कहा ठाकुर साहब क्यो आप बच्चों के प्रेम को युद्ध मे बदल कर द्वेष घृणा की शुरुआत करना चाहते है शमशेर सिंह ने कहा महाराज पता नही कहा से बहुरूपिया चले आये हो बहुत ज्ञान मत दो मीनाक्षी आदिवासी है और हम ठहरे सम्मानित ठाकुर यह प्रेम हम स्वीकार नही कर सकते है।
    यमराज बोले ठाकुर साहब मीनाक्षी कन्या है विशुद्ध रूप से माता पार्वती की बेटी की तरह उसका क्या दोष सिर्फ उसने प्रेम ही तो किया है ठाकुर शमशेर सिंह जी बच्चों के इस अबोध प्रेम को ईश्वर का आशीर्वाद वरदान मानकर स्वीकार करे इसी में दोनों गांव का कल्याण है किशोर बेचारा ठगा ठगा कुछ भी बोलने का साहस नही कर पा रहा था उंसे विश्वास था कि अंजनवी महाराज कोई न कोई रास्ता विवाद का अवश्य निकाल देंगे।

    यमराज शमशेर सिंह को समझा ही रहे थे कि शमशेर का भाई जो शमशेर से अंदर अंदर जलता था और सदैव अवसर की तलाश में रहता  उंसे इससे अच्छा अवसर शमशेर के इकलौते बेटे निकान्त को रास्ते से हटाने का नही मिलने वाला अतः जब यमराज शमशेर को समझा रहे थे उसने चुपके से यमराज के पीछे मंदिर की दीवार की आड़ में खड़े मीनाक्षी का गला अपने तलवार से अलग कर दिया।

    अब यमराज के समझाने का कोई मतलब नही था दोनों गांव के लोंगो में रक्त रंजित युद्ध छिड़ गया यमराज अपने वास्तविक स्वरूप में भैंसे पर सवार न्याय दंड के साथ आपस मे लड़ते भिड़ते गांव वालों के मध्य जा कर खड़े हो गए जब अंजनवी को दोनों गांव वालों ने उनके वास्तविक स्वरूप में देखा तो भय से सहम गए और मार काट बन्द हो गया तब यमराज बोले शमशेर तेरा भाई अंतर सिंह कुटिल है वह तुम्हारे यश बैभव को देख तुम्हे समाप्त करने के अवसर तलाश रहा था आज उसने तुम्हे तुम्हारे व्यतित्व से तुम्हे अलग कर दिया और हा तुम पृथ्वी वासियों के लिए यमराज की क्या आवश्यकता तुम तो स्वंय एक दूसरे के लिए यमराज बने हुए हो तुम लोग स्वयं एक दूसरे के लिए यमराज का कार्य कर रहे हो।

    शमशेर सिंह यमराज के पैरों पर गिर गया और बोला महाराज आप सत्य कह रहे है लेकिन मीनाक्षी को तो अंतर सिंह ने मार दिया है अब मेरे बच्चे निकान्त का क्या होगा बहुत विलाप करते हुए शमशेर सिंह सर पटक पटक कर यमराज के चरणों मे गिड़गिड़ाने लगा किशोर पुत्री की मृत्यु के बाद पत्थर की तरह खड़ा था उंसे समझ ही नही आ रहा था कि वह करे तो क्या करे? दोनों गांव वाले निःशब्द खड़े यमराज की तरफ किसी हनहोंनी चमत्कार की आस लगाए थे यमराज का हृदय शमशेर के विलाप से द्रवित हुआ बोले अब मैं इस गांव और मंदिर पर नही रहूँगा इसी समय चला जाऊंगा लेकिन सूर्योदय से पूर्व मीनाक्षी पुनः जीवित हो जाएगी तुम सभी सूर्योदय तक यही मीनाक्षी के जीवित होने तक प्रतीक्षा करना और सूर्योदय के साथ ही आदिवासी कन्या जो सूर्योदय के साथ ही मेरी कन्या होगी का विवाह निकान्त के साथ दोनों गांव वालों की उपस्थिति में भगवान शिव के मंदिर में सम्पन्न हो जाना चाहिये।

    मैं आपने साथ अंतर सिंह की कुटिल आत्मा यमलोक ले जा रहा हूँ इसे वही उचित दण्ड मिलेगा यमराज के इतना कहते ही अंतर सिंह पृथ्वी पर धड़ाम से गिरा और एक प्रकाश उससे निकल कर यमराज के काल दंड के चारो तरफ घूमने लगा यमराज अंतर्ध्यान हो गए।

    सूर्योदय के साथ मीनाक्षी जीवित हो गयी और विहटा और टीकम गांव वालों के समक्ष मीनाक्षी निकान्त का विवाह भगवान शिव शंकर के मंदिर में सम्पन्न हुआ दोनों गांव के लोग आपसी मार पीट में जो भी घायल हुए थे सूर्योदय के साथ स्वस्थ हो गए।

    यह चर्चा चारो तरफ होने लगी अंजनवी महाराज स्वंय यमराज थे और टीकम में इटने दिनों रहे।

    नन्दलाल मणि त्रिपठी पीताम्बर

    गोरखपुर, उतर प्रदेश।