-छगन लाल व्यास
विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
वैसे सरकारी नौकरी में जिसका एक बार चयन हों जाता है वह चैन की नींद ही सोने लगता है। मानो ‘भाग्योदय’ ही हों गए हों! फिर भले ही वह कार्य करे ना करे लेकिन महीना होते ही पगार खाते में! इस पर कोई ज्यादा- तू तू, मैं मैं करे तब ‘राज-काज ‘ में बाधा की धमकी! साठ साल तक कोई हिला नहीं सकता उसके बाद बैठे बैठे पेंशन। इन सब सुविधाओं को देखते हुए ही हर कोई सरकारी नौकरी की तरफ़ आंखें फाड़ते नजर चढ जाते हैं।
चाहत तो खूब होती है कि नौकरी मिल जायँ लेकिन सफलता दूर-दूर भागती हैं और उससे कमजोर कामयाब हो जाता है तब दांत किटकिटाने के सिवाय चारा ही क्या। वह भी इस द्वारका वाली छाप पाने के लिए हाथ-पैर मारता है तब कोई उसे किसी ओर इशारा करते हुए कहता है-‘उससे मिलो।’
वह कहता – वैकेंसी आने दे। उसके साथ साथ फॉर्म भरना ताकि एक ही कमरे में। फिर आगे देखेंगे।
यह थी बीस -बाइस साल पहले की बातें। जब सरकार ने शिक्षकों द्वारा प्रदत अंकों पर विश्वास नहीं कर भर्ती आयोग को ही परीक्षा के लिए अधिकृत कर लिया। आयोग को जब इस मेल के खेल की जानकारी हुयी तब उसने फार्मों की छंटनी की। जिले भी बदले लेकिन कहते है कि चोर में छतीसों कलाएं होती हैं। उसने डमी अभ्यर्थी का खेल खेलते-खेलते पेपर की तह तक पहुंचने का तरीका ढूंढा।पैसा फैंक,तमाशा देख। पैसे के बल पर नेता,अधिकारी, कार्मिक सभी कब्जे में और कार्य सफल। करोडों-अरबों के बंगले-कोठी, कोचिंग सेंटर जहाँ ‘नकल-लीला’ में अति विश्वसनीय मित्र,रिश्तेदार, समुदाय के नवयुवकों की पौ-बारह होने लगी और होशियार खुद को ठगा सा महसूस करने लगे!
जब ठोठों के पीर भी आलीशान कुर्सी पर बैठते तब बाजार में बातें उछलती-हैं जरूर किसी न किसी की सिफारिश! लेकिन वही नयी बात नौ दिन। एक बार जो चयनित हो गया उसे कौन ‘चैलेंज’ करे!वह बड़ा अधिकारी, पुलिस अफसर, व्याख्याता, प्रधानाध्यापक या क्लर्क बन गया। फिर सामने देखने की किसकी हिम्मत?
इसी खेल में मुन्ना भाई भी आये!पेपर की तह तक भी पहुंचे और कम्प्यूटर व आ ओ एम आर शीट तक भी।पढ़ने वाले, रात भर जगने वाले निचले स्तर तक भी नहीं और आवारागर्दी करने वाले, चार-चार साल तक एक ही कक्षा में तड़फने वाले आज आगे!राज्य में खूब हो हल्ला हुआ लेकिन जब सैंया भये कोतवाल तब कैसा भय! पैसे के बदले बिक गए नेता, अधिकारी, कार्मिक और अन्य भी। पूरी की पूरी बसों में धड़ल्ले से पेपर हल होने लगे और सरकार कुंभकर्ण की ऊंघ में!
आखिर में सरकार बदली और नयी सरकार ने अपने वादे के मुताबिक पेपर लीक का भंडाफोड़ शुरू किया तब लगने लगा -इतना भ्रष्टाचार था!इतने वर्षो से! ठेठ लोक सेवा आयोग तक भी! तब भला छोटे मोटे आयोगों की क्या औकात! जगह जगह छापेमारी को देखते हैं और पन्द्रह-बीस को ट्रेनिंग के बीच दबोचा जाता हैं तब दांतों तले अंगुली स्वतः लगने लगती है। अभी तो शुरुआत हुई है देखिए आगे आगे होता है क्या! कहीं बड़ी बड़ी कुर्सियों पर पैर फैलाने वालों को भी धड़ाम न गिरा दे,यह नकल गिरोह रूपी विषेले सांप को दबोचने वाले! लग यही रहा है इनके कदमों से कि शीघ्र ही यह सरकार पिछले कई वर्षों की भर्ती के पोथे खंगाल कर दूध का दूध व पानी का पानी करते हुए दोषियों को कड़ी सजा देकर अच्छा सबक सीखायेगी। लगता लगभग यही है कि पाप का घड़ा अब पूरा भर गया बस फूटने वाला ही है। योग्य व्यक्ति प्रसन्न होकर नाचेंगे, उनके लिये भी नौकरी के द्वार खुल जाएंगे।