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निज कर्म किए जा

    -राम मोहन गुप्त ‘अमर’
     

    यदा यदा हि धर्मस्य…का देकर संदेश

    केशव ने मंत्र दिया दुनिया को विशेष

    कर्म ही है धर्म… फल की चिंता छोड़ बढ़ो

    जीवन के लक्ष्य… दिशा में निष्कंटक चलो

    जब जहां जैसी जरूरत आते हैं जगदीश्वर

    बाल, सखा, सारथी, संबंधी का स्वरूप धर

    फिर कैसी चिंता! रे मानव, मन क्यों बेचैन?

    साथ तेरे हैं ईश सदा ही, हो चाहें दिन रैन

    छोड़ छाड़ कर मोह माया, भ्रम और ईर्ष्या

    निज कर्म किए जा, तज पूर्वाग्रह फल की इच्छा

    माया सागर है जग, जीवन रंग मंच अनोखा

    पड़ भ्रम जाल विकराल, मत खा किंचित भी धोखा