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पापा आप तो ऐसे न थे

    -श्यामल बिहारी महतो
     

    कितनी-कितनी आशाएं जुड़ी थीं उस जमीन के टुकड़े से और आज यह चमन महतो के हाथ से निकलने वाली थी । चमन को याद नहीं आता कि कब से इसे अपनाने या खरीदने का मन बनाया था,लगभग पिताजी के देहांत के पहले से ही वह इस जमीन से जुड़ गया था । बचपन से इससे खेल कूद का रिश्ता रहा तो युवावस्था और संघर्ष के दिनों में इसकी नरम- नरम घास पर बैठ कर सुस्ताने का, खुद पिताजी ने उनसे कहा था -” अगर यह जमीन किसी तरह ले लूं, तो पूरे कुटुम्ब के रहने का ठिकाना हो जाएगा..!”

    हांलांकि अब भी गांव में उनका अपना घर था । अपनी ही जमीन पर । लेकिन तीन भाइयों के संयुक्त परिवार के तकरीबन दो दर्जन सदस्यों के लिए छः कमरों वाला मकान सूअरबाड़ के रूप में ही प्रचारित था । यह तो अच्छा हुआ कि चमन महतो के बड़े चाचा ने बाद में शहर जाकर कारोबार शुरू किया और वहीं बस भी गया ‌ । फिर भी मकान का दबाव बराबर बना रहा । इसी के साथ जमीन से भावनात्मक लगाव जो था वह तो था ही ।

    और अब जब इस जमीन को बेचने की इच्छा सेठ जी ने जतायी तो चमन को लगा जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी हो । आनन-फानन में सौदा भी तय हो गया ‌। उसके मकान से कुछ ही दूरी पर यह जमीन थी, बीच में उनके मित्र राजेश बाबू का मकान था ‌। चमन को लगा था कि इस जमीन के बहाने उनकी दोस्ती अब और प्रगाढ़ हो जायेगी, पर वह क्या जानता था कि आगे कुछ और ही घटने वाला है । लेन-देन तय हो जाने के बाद पता चला कि राजेश बाबू भी इस जमीन को खरीदना चाहते है । यहां तक पता चला कि सेठ जी ने राजेश बाबू से भी मोल-भाव कर लिया था,वह भी राजेश बाबू को अंधेरे में रखकर ।

    इधर चमन महतो की बेटी सरिता का बिहा भी तय हो गया था और अगले ही महीने बांधा जाने वाला था लगन। लेन-देन का मामला भी सुलटा लिया गया था और लड़के का तिलकोत्सव भी सम्पन्न हो चुका था और चमन महतो के घर में दोगुनी खुशी का वातावरण भी था, पर इसी बीच यह जमीन का विवाद खड़ा हो गया था, और इसका कारण बना भी तो कौन, उनके अपने ही मित्र राजेश बाबू ! वह राजेश बाबू जिनके उपकारों तले दबा था चमन , पढ़ाई में किताब-कॉपियां लेने का मामला हो या परीक्षा फीस जमा करने की बात या फिर बाद में कोलियरी में नौकरी की ही, हर जगह राजेश बाबू के एहसान लदे थे चमन पर, और-तो-और सरिता का यह रिश्ता भी राजेश बाबू के सौजन्य से ही तय हुआ था, वरना कहां मान रहा था लड़के का बाप बिना आधा लाख तिलक के ! कई दिनों की भाग-दौड़ और कदम-कदम पर लड़के वालों के समक्ष राजेश बाबू की हाथ जोड़ी और विनती । राजेश बाबू को कोई लड़की नहीं थी, सरिता के जन्म से ही इसे बेटी -सा स्नेह देते आये थे । आज वही राजेश बाबू चमन महतो के सपने पर दीवार बन कर खड़े हो गये थे । कई रात सो नहीं सका चमन महतो । इसी दरम्यान राजेश बाबू से मिलना-जुलना तो जारी था, मगर वह खुलापन और गर्मजोशी गायब हो चुकी थी, बल्कि दोनों के बीच शीतयुद्ध- सा तनाव भी पनपने लगा था । चमन महतो न जमीन का मोह त्याग कर पा रहा था,न ही राजेश बाबू से अलगाव बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में था । करे तो क्या करे,वही सनातनी धर्म का मकड़जाल और वही चमन महतो ।

      तभी एक दिन गांव में खबर फैली कि चमन महतो ने सेठ जी को बयाना पकड़ा दिया । बयाने की बात गनसू महतो के मुख से निकली । इस लेन-देन के मामले में वही गवाह भी था । फिर तो एक दूसरे के कानों से होती हुई बात राजेश बाबू के कानों तक जा पहुंची और फिर यह मामला पंचायत में चला गया । कुछ ही समय में फैसला भी हो गया । मुखिया ने मामला स्पष्ट करते हुए कहा -” सेठ जी को जमीन बेचनी है तो पहले बगल वाले को ही बेचना चाहिए। जब जमीन राजेश बाबू नहीं लेते या लेने में असमर्थता जाहिर करते तब वे दूसरे के हाथ बेच सकते है..।”

    ” पर मुखिया जी, सभी जानते हैं सेठ-साहूकारों को तो हर चीज ऊंचे दामों पर बेचने की आदत होती है..!” किसी के मुख से बात निकली थी ।

    पर पंचायत का फैसला अटल था । चमन महतो अपना- सा मुंह लेकर लौट गया था । घर में उसकी पत्नी ने सुना तो लगी अंट- शंट बकने । दोनों की दोस्ती को भी लताड़ा उसने ” यह कैसन दोस्ती हो तोहर,जे इतना सा भी देखल न सहेले..!” 

    उधर राजेश बाबू भी उनसे नज़रें मिलाने की स्थिति में नहीं थे ।

    यह जमीन दो दोस्तों के बीच कहीं दुश्मनी न पैदा कर दे । गांव में इस तरह की बातें उठनी शुरू हो गई थी ।

    चमन महतो पंचायत से भले ही खामोश लौटा था, मगर अंदर ही अंदर उसके मन में एक तुफान सा उमड़ने घुमड़ने लगा था । जमीन थी कि लाख कोशिश के बावजूद उसकी आंखों से नहीं उतरती, लगता उस जमीन पर उसे धतूरा और पुटुस के पेड़- पौधे और घास तक उसे चिढ़ा रहे थे । कमरे की खिड़की से ही दूर से जमीन को ताकते रहना, दिशा- मैदान के लिए उधर से ही वह हर दिन पोखर जाता,पर अब उस पर राजेश बाबू का मालिकाना हक होने जा रहा था ।

    दो दिन चुप- चाप बात गये । न चमन महतो ने राजेश बाबू के बारे कुछ कहा, न राजेश बाबू ने किसी से कुछ सुना, थोड़ी- बहुत बात चमन की पत्नी के मुंह से निकली भी तो राजेश बाबू ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया । तभी तीसरे दिन चमन महतो का होने वाला दामाद उनके घर पहुंच गया, एक चिट्ठी लेकर । फिर चमन महतो के दरवाजे पर ही चिठ्ठी पटकते हुए कहा था ” कोढ़ की दलदल में जन्मी बेटी को मेरे ही गले बांधने चले थे आप लोग !” और उल्टे पांव ही लौट गया था वह । पूरे गांव में आग की तरह फ़ैल गयी थी यह खबर । फिर पूरे गांव में चमन महतो के साथ सभी ने यह सीधा अर्थ लगा लिया कि जमीन के कारण पैदा हुए तनाव में आकर राजेश बाबू ने ही लड़के वालों को भरमाया और यह चिठ्ठी लिखी । लेकिन यह एक शक था- पुख्ता सबूत नहीं, सो चमन महतो के सिवा उस पर खुलकर बोलने की स्थिति में कोई नहीं था । पर चूंकि लड़की की शादी का मामला ठहरा, सहानुभूति तो चमन महतो के साथ ही जाती थी ।

    चमन महतो के घर में उनके माता-पिता को यह कोढ़ की बीमारी थी और इसी कारण वे दोनों चल बसे थे, बाद में यह बीमारी चमन महतो की बड़ी भाभी को लगी । लेकिन इलाज करवाने से वह ठीक हो गयी थी । हां, एक बात और सामने आयी कि सरिता की नानी को भी यह बीमारी थी,पर वह कब की मर चुकी थी । मगर उस पत्र में चमन महतो के घर को कुष्ठ रोगियों वाले घर कह कर अत्यधिक निन्दा की गयी थी ।

     संबंध टूटना स्वाभाविक ही था । लेकिन राजेश बाबू ने जोरदार ढंग से उसका विरोध किया -” यह सब किसी की चाल है, मुझे बदनाम करने की ..!”

    फिर भी शक की सूई उन्हीं की ओर इशारा करती रही और कुछ सप्ताह के बाद चमन महतो का धैर्य जवाब दे गया । जमीन न खरीद पाने का रोष और फिर बेटी का रिश्ता टूटना- दोनों तरफ से ऐसा हाथ और रगड़ा कि बीस-पच्चीस साल की दोस्ती का एक एक निशान धो डाले गए । वह दोस्ती जिसमें बचपन में गुल्ली-डंडा खेलने, सेठ के तालाब में घंटों तैरने और आम- जामून के पेड़ों पर गिलहरियों की तरह चढ़ने-उतरने, सबमें कितना लगाव और कितना अपनत्व होता था । आज वही दोस्ती जमीन की भेंट चढ़ती प्रतीत होती थी । 

    चमन महतो ने एक दिन रास्ते में राजेश बाबू को रोककर कहा था -” मेरी बेटी की शादी टूट गयी तो मैं तुझे भी नहीं छोड़ूंगा ..!” 

    सुनकर राजेश बाबू को बुरा तो लगा । लेकिन आश्चर्य नहीं हुआ । फकत इतना भर कहा – ” चमन दा, मैं कह नहीं सकता हूं कि आपके प्रति मेरे मन में क्या भाव है, प्रगट करने से भी आपको विश्वास नहीं होगा । सरिता की शादी टूट जाने से मुझ पर क्या बीत रही है वो भी बता नहीं सकता, मैं ही हूं जो आप लोगों का दोषारोपण बर्दाश्त कर रहा हूं , और शायद मैं इसे जीवन भर भूला नहीं पाऊंगा..!” और राजेश बाबू आगे बढ़ गये थे। हां, चलने के पूर्व चमन महतो से यह कहना नहीं भूले -” चमन दा, मैं नहीं चाहता हूं कि यह कटुता और बढ़े, अच्छा होगा, समय रहते इसकी छानबीन कर ली जाये..। “

    उधर एक वर्ग ऐसा भी था जो राजेश बाबू पर लगाया गया यह आरोप को मनगढ़ंत कहानी बता रहे थे । किसी के गले यह इल्जाम उत्तर नहीं रहा था । सब जानते थे कि राजेश बाबू समाजिक कार्यों में हमेशा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वालों में आगे रहे है । बिहा-भोज में भी काफी सक्रिय रहे है। समय-समय में मदद भी मिली है लोगों को ।  आज तक जो उनसे बन पाया लोगों के लिए किये है । कभी किसी की इन्होंने बिगाड़ी हो यह किसी को पता नहीं था ‌। व्यक्तिगत मामले को कभी आड़े आने नहीं दिये  ।

    गांव वालों को आज भी याद है, राजेश बाबू के कट्टर विरोधी और पड़ोसी बिपत महतो के बड़े बेटे की शादी थी । बारात कासी टांड़ पहुंच चुकी थी,पर वहां का जो माहौल था, उसे देख सब बाराती भौंचक रह गए थे । लड़की वाले के घर में शादी जैसी कोई चहल-पहल, कोई रश्मों रिवाज नहीं दिखा ।  गेट न पंडाल  ! हां, दो चार लोग घर के बाहर बैठे जरूर थे । लेकिन वे ऐसे बोल- बतिया रहे थे जैसे उस गांव में किसी का किसी ने बेस कीमती चीज लूट ली हो । पूरा गांव सन्नाटे में डूबा हुआ था । 

    इधर बाराती सब अपना नाच गाना छोड़ एक दूसरे से कहते फिर रहे थे -” आंय हो, हम सब कोनो दूसरे गांव में तो नहीं आ गये हैं । यहां तो शादी-बिहा जैसी कोई बात ही नजर नहीं आ रही है …!”

    सबसे बुरा हाल अगुआ का था । उसके चेहरे से अगुआई रंगत ही गायब हो चुकी थी । सुबह आकर उसने खुद अपनी आंखों से देखा था लोगों को गेट पंडाल बनाते हुए । लोडिसपीकर भी शादी घर में आ चुका था ‌। जो अब कहीं दिख नहीं रहा था । गेट पंडाल भी उखड़ चुके थे ‌। अचानक ऐसा क्या हो गया जो इस खुशी के माहौल को मलिन कर दिया था । अगुआ अकबकाया फिर रहा था । बिपत महतो बार बार अगुआ पर गरम हो रहा था -” यह सब क्या है..?”

    तभी लड़की के मामा आकर बोला -” अब हम उस घर में लड़की की शादी नहीं देंगे..!” 

    ” मगर क्यों ..?” 

    ” हमें धोखे में नहीं रखना चाहिए था आपको..!” लड़की का बाप अगुआ से बोला ” मंझिआईन लड़की के साथ बलात्कार के मामले में लड़का सात साल जेल खटकर आया है । यह बात हमें पहले बता देना चाहिए था । परन्तु आपने तो इसकी भनक तक लगने नहीं दी । “

    अगुआ भी अपनी बात रखना चाहता था । पर उसे कोई सुनने को तैयार नहीं था । बाराती पक्ष अपनी लाज बचाने के लिए थेथरपने पर उतर आए थे ।  लेकिन लड़की पक्ष किसी भी सूरत में लड़की को उस घर में भेजने को तैयार नहीं थे । कुल मिलाकर 

     मामला बेहद पेचीदा हो चुका था । तभी राजेश बाबू धूमकेतु की तरह वहां आ पहुंचे । लड़की का बाप और राजेश बाबू कभी एक ही आफिस में साथ-साथ काम किए थे । दोनों सज्जन थे और दोनों एक दूसरे को सम्मान करते थे । उन्हें सामने आया देख लड़की का बाप बोला ” राजेश बाबू,आप इन लोमड़ियों की जमात में कैसे शामिल हो गये ? यह सब के सब धोखेबाज हैं ..!”

    ” मितल बाबू, आप शायद भूल रहे है । मैं भी उसी गांव से हूं । अगर आपको लगता है हमारे गांव वाले धोखेबाज हैं तो धोखेबाज मैं भी हूं । मुझे पता चल गया है, जिस कारण आप लोग नाराज़ हैं, वो जायज है,पर वह एक भूल थी – पहली गलती । लड़का खानदानी बदमाश नहीं है यह मैं जानता हूं । अब आप चाहें तो बेटी उस घर में दे सकते है या फिर हमारे गले जूते की माला डाल सकते है…!”

    लड़की के बाप ने राजेश बाबू का हाथ पकड़ लिया” राजेश बाबू, यह सब कुछ जान सुन कर भी बेटी को उस घर में कैसे दूं …?”

    ” बेटी आप हमारे घर में तो दे सकते है ? समझिए आपकी बेटी हमारे घर जा रही है..!”

    लड़की के बाप ने अपने साले की ओर देखा । वह भी आश्वस्त नजर आ रहे थे । फिर धूमधाम से शादी सम्पन्न हुई थी ।

    वही राजेश बाबू आज अपने आप में बहुत ही असहज महसूस कर रहे थे । चिठ्ठी ने दो परिवारों के बीच वैमनस्य की एक ऐसी चिंगारी सुलगा दी थी जिसमें चमन महतो का तो तत्काल कोई नुकसान नहीं हो रहा था । परन्तु राजेश बाबू का समूचा व्यक्तित्व झुलस रहा था । उनके चरित्र पर कुछ लोग दूर से ही गोबर फेंक रहे थे ” हो न हो , शादी तोड़वाने के पीछे उसी का हाथ हो..!” 

    ” उसी ने लगवाया था, वही तोड़वा दिया..!”

    सुन सुन कर राजेश बाबू के दिमाग की नस फटी जा रही थी।

    उनके दामन पर लगा यह बहुत बड़ा दाग-धब्बा था । वहीं गांव के अधिकांश लोग चमन महतो के साथ खड़े नजर आ रहे थे ।

    ” बस, अब और सहा नहीं जाता दादा, अपना मुंह खोलिये और जो सच है वो लोगों से बोलिये । चुप रहने से लोग आपको साधू नहीं समझ रहे हैं । ” घर में राजेश बाबू का भाई उबल रहा था ” इस कलंक से हमारी भी बहुत बदनामी हो रही है । हमारा सिर झूकता जा रहा है..!”

    राजेश बाबू चुपचाप भाई की उबाल को देखने लगे थे । पर मुंह नहीं खोले । शांत प्रकृति के थे,  बात बढ़ने के पहले खामोशी ओढ़ लेने की आदत थी उनकी । चिठ्ठी चाहे जिसने लिखी हो और मकसद उसका चाहे जो रहा हो,पर इस कारण एक निर्दोष लड़की का रिश्ता तो टूट गया । यही बात उन्हें अंदर से विचलित कर रही थी । लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं था उनके पास जिससे वो खुद को बेदाग साबित कर सके  ।

    जीवन में कभी ऐसी घडी भी आएगी, कभी उसने सोचा नहीं था । जी चाहता कि खूब जोर जोर से चीखें- चिल्लाएं -” चमन दा, झूठ बोल रहा है,सब बकवास है – मनगढ़ंत बातें हैं ..!” पर जुबान साथ नहीं देता । अब राजेश बाबू काम से घर आते और सीधे अपने कमरे में समा जाते  । बार बार बुलाने पर आकर थोड़ा खा लेते, जैसे भोजन का मान रख रहे हों ! बिस्तर पर पड़ने पर सोच की गति उन्हें सोने नहीं देती  । कभी कभी खुद से बड़बड़ाने लगते ” जमीन न ले पाने की चमन दा का यह कोई साजिश तो नहीं है । सरिता क्या सिर्फ उसी की बेटी है ? बचपन से उसे हमने बेटी सा स्नेह दिया है । समय-समय पर मैंने उसकी कई जरूरतों की पूर्ति की है । क्या वह नहीं जानता है । क्या इसका भी सबूत देना होगा मुझे ..?”

    अभी तक के जीवन में राजेश बाबू का घर और बाहर,हर छोटे-बड़ों के बीच गहरी पैठ रही थी । हर जगह उनकी मान सम्मान था । अब लोगों के बीच जाने से बचते, मिलने से कतराने लगे थे । क्या पता कब कौन सी बात उछाल दे-कह दे  ।  टोका-टाकी से मन-मिजाज उनका बैचेन हो उठता था ‌। कभी कभी तो गांव छोड़ कहीं बाहर निकल जाने तक सोच डालते। पर ऐसा नहीं कर पा रहे थे ” जरूर इसी की करतूत है..!” ऐसा कहने में लोग जरा भी देर नहीं करेंगे । घर में बैठे बैठे राजेश बाबू इंतजार कर रहे थे उस घड़ी का, जब गांव वालों को असल बात मालूम हो, उन्हें सच्चाई का पता चले और लोग उनके पक्ष में बोलें कि ” सिर्फ लांछन लगा देने से कोई दोषी नहीं हो जाता- उसे सिद्ध करना पड़ता है ..!” 

    लेकिन आश्चर्य जनक बात यह थी कि अभी तक एक भी व्यक्ति उनके पक्ष में बोलने को आगे नहीं आया था ‌।

    कहा जाता है किसी चरित्रवान व्यक्ति को गिराना हो तो उस पर एक बड़ा सा तोहमत डाल दो, खुद गिर जाएगा । राजेश बाबू के साथ यही हुआ था । अब देखना दिलचस्प होगा कि राजेश बाबू अपने ऊपर लगे इस दाग को कैसे धोते है ।

    उधर चमन महतो का सुबह शाम एक ही काम रह गया था ” क्या करें हम, राजेशवा ने बेटी की शादी ही नहीं होने दी ..!”

    सुन सुन कर राजेश बाबू के कान पक गये । तभी धीर गंभीर वाले व्यक्ति को एक दिन उबलते देखा था लोगों ने । ललकारते हुए उन्होंने चमन महतो से कहा था ” चमन दा, वो चिठ्ठी कहां है ? पंचायत में रखो, मेरी ही लिखी है,यह साबित करो, मैं हर तरह की सजा भुगतने को तैयार हूं । ऐसे किसी भ्रम में मत रहो,हम चुप है तो दोषी भी  हम ही है..!”

    चमन महतो जवाब न दे सका । लेकिन राजेश बाबू यहीं नहीं रुके” आज के बाद यह बात फिर कभी हमने सुना तो हम कोर्ट जाएंगे ” मानहानि” का दावा करने ।” 

    कोर्ट की बात से चमन महतो की बोलती बंद हो गई । बोलना उसने बंद कर दिया । लेकिन भीतर भीतर मौके की तलाश में रहने लगा था ।

    इधर लांछन लग जाने से राजेश बाबू उदास रहने लगे । कहीं उनका मन नहीं लगता । काम पर जाते तो वहां भी कोई न कोई चमन महतो की बेटी की बात छेड़ देते और वह तड़प उठते थे । गांव में ही उनके लिए क्या कुछ नहीं कहा जा रहा था । हर तरफ से बदनामी के स्वर सुनाई देने लगे थे । नतीजा घर से आफिस और आफिस से घर तक सिमट कर रह गये थे । खाना-पीना तो अनियमित हो ही चुका था । कुछ ही दिनों में कब्ज की शिकायत शुरू हो गयी । मंदाग्नि और खट्टी डकारें आनी शुरू हो गयी । दवा कोई काम नहीं करने लगा । रात को नींद नहीं और दिन को लोगों की नजरें चुभने लगी थीं । अब तो रात को सपने में सरिता भी आकर कहने लगी थी ” काकू, मैं तो आप ही की बेटी थी । फिर मेरे साथ आपने ऐसा क्यों किये ..?”

    तभी उसके पीछे खड़ी उसकी मां कह उठती ” देखना,तोरा भी बड़का रोग धरतो, तोरो भी समूची देह में कोढ़ फूटतो- कोढ़..!”  राजेश बाबू हड़बड़ा कर उठ बैठते । फिर आंखों में नींद नहीं आती ।

    फिर लोगों ने देखा, धीरे-धीरे एक धीर-गंभीर व्यक्ति को टूटते हुए । एक दिन ऐसा भी आया जब राजेश बाबू बीमार पड़े और अस्पताल पहुंच गये ।

     ” अभी कहां हुआ है, एक दिन श्मशान घाट पहुंचेगा ..!” चमन महतो के घर से आवाज आती ।

    सचमुच में अस्पताल में राजेश बाबू की हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ती जा रही थी । परिवार में चिंता- परेशानी बढ़ गई थी । हां, इस बार गांव में एक बदलाव जरूर देखा गया था । अब वे लोग भी उनसे मिलने अस्पताल पहुंचने लगे थे, जो इस पूरे प्रसंग में अभी तक तटस्थ थे या फिर खामोश थे ।  बहुतों के मुंख से यह भी सुना जाने लगा था ” लगता है, इस घटना के पीछे जरूर किसी की चाल है- राजेश बाबू को बदनाम करने का ..!”

    ” मुझे तो चमन महतो पर ही शक है ! अधिक पैसे हो जाने से उसमें घमंड भी काफी बढ़ गया है..!” दूसरा बोला ।

    ” क्या पता, चिठ्ठी खुद उसने लिखवाई हो, जमीन न ले पाने की खुनस भी हो सकती है । “

    ” कोई सगा बाप ऐसा कर सकता है  ? मैं नहीं मानता..!” 

    इस तरह की चर्चाएं भी शुरू हो गई थीं ।

     अस्पताल में सप्ताह दिन बाद राजेश बाबू में कुछ सुधार दिखा । खाने में दलिया और खिचड़ी लेने लगे । घर वालों के चेहरे पर खुशी दिखी,सबने राहत की सांस ली थी ।

    उस दिन राजेश बाबू अस्पताल के बरामदे में टहलते हुए गेट तक आये । थोड़ी दूर सड़क पर बाजार की तरफ  सरपट दौड़ती गाड़ियों को हसरत भरी दृष्टि से खड़े देखते रहे और पुलकित भाव से सोचते भी रहे । भाई उनका दूध लेने खटाल गया हुआ था ‌। स्वीपर बरामदे में पोंछा मार रहा था । और अंदर नर्स और वार्ड ब्वाय सुबह का अखबार के  हेडलाइनस पढ़ने में मशगूल थे । इतने में राजेश बाबू जाने किधर निकल गये, किसी को कुछ पता नहीं चला । बाद में उन्हें बाजार में,बस पड़ाव में , सभी जगह  ढूंढा गया, परन्तु वो कहीं नहीं मिले । घर वाले परेशान । एक बार फिर सभी चिंता बढ़ गई । मोबाइल फोन उनके पास था नहीं । उनका सभी कॉल भाई एटेंड कर रहा था । ढूंढने का कोई सूत्र नहीं । हर तरफ आदमी दौड़ाया गया । रिश्ते-नातों में बात फैलाई गई । लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला ‌। घर वाले हताश-निराश ! गांव में दबी जुबान से बात बाहर आने लगी । कहीं इसमें चमन महतो का हाथ-पैर तो नहीं है । पैसे वाला है, घमंडी भी है, क्या पता किडनैप ही करवा दिया हो । कहता भी था कि ” हम तुम्हें छोडेंगे नहीं..!”

    गांव में जब ऐसी काना- फुसी होने लगी । तब चमन महतो के घर वालों में खिसियाहट बढ़ गई। सुन कर उसके छोटे भाई ने कह दिया ” हां, हमने उसे गायब करवाया है, पर क्या सबूत है ..?” यह उसी तरह की टोन थी कि ” चिठ्ठी हमने लिखी है – साबित करो ..!” 

        चमन महतो पर, राजेश बाबू का अपहरण और फिर उनकी हत्या का मामला थाने में दर्ज होते ही गांव में हवा का रूख एकदम से बदल गया था । बेटी की शादी टूटने को लेकर गांव में प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से जो जुड़ाव अभी तक चमन महतो के साथ देखा जा रहा था और जो सहानुभूति उसके साथ देखी जा रही थी एक दम से उलट गई थी ‌। सोच में भी बदलाव स्पष्ट दिखाई देने लगे थे । दबी जुबान में कहा जाने लगा था ” कहीं, सचमुच चमन महतो ने राजेश बाबू की हत्या तो नहीं करवा दी..?”

    चमन महतो ने सुना तो बुरी तरह डर गया । लोग उसे कहीं हत्यारे कहना शुरू न कर दें ‌‌। गांव में साधू बनने में भले देर लगे, लेकिन चोर की उपाधि चंद मिनटों में दे दी जाती है ।

    राजेश बाबू के घर में भी लोग चुप नहीं बैठे थे । उनका भाई लखन बार बार आग बबूला हो उठता था । वह सुबह – शाम एक ही बात कहता ” इसके पीछे चमना(चमन महतो) का ही हाथ है । अगर कल शाम तक दादा घर नहीं लौटा तो चमना को हम जमीन में गाड़ देंगे..!” 

    जवाब में चमन महतो के छोट भाई ने लाठी निकाल ली । फिर तो राजेश बाबू का पूरा बखरी(खानदान) के लोग बाहर निकल आए। जो हाजिर सो हथियार लाठी-डंडे लिए सब लखन के साथ खड़े हो गए थे । पहले खूब कहा-सुनी हुई। जब हाथा- पाई की नौबत आ गई तो लाठियां चलनी ही थी – चली भी । लखन ने एक भरपूर लाठी चमन महतो के छोट भाई खगपत की पीठ पर दे मारी और दूसरी लाठी उसके बड़े बेटे लालमनि की टेहूनी पर जड़ दी । खगपत गिरता-पड़ता घर की तरफ भागा और लालमनि वहीं जमीन पर लेट गया था ..!

    लड़ाई की गंभीरता को देख बीच-बचाव करने गांव वाले सामने आ गये । मुखिया ने आकर चमन महतो को लताड़ा ” तुम्हारे जैसा मंदबुद्धि का आदमी आज तक हमने नहीं देखा, बात संभालने की बजाय उसे हवा दे रहे हो, यह मत भूलो, मामला थाने में पहुंच चुका है । अगर राजेश बाबू नहीं मिला तो पुलिस तुम्हारी खाल उधेड़ देगी  ।” फिर आगे बढ़ कर मुखिया नंदलाल महतो ने लखन को भी डपटा था ” तुम पढ़े लिखे हो, फिर यह बेवकूफों जैसा काम क्यों ? पहले अपने भाई का पता लगाओ,वह हिम्मतगर आदमी है,इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं है..!” 

         आषाढ़ मास का आगमन हो चुका था । मौसम का मिजाज पल-पल बदल रहा था । दो दिन की लगातार बारिश के बाद आज सुबह का सूरज निकल पाया था । लोग अपने अपने कामों में लग चुके थे । कहीं हल ठीक किया जा रहा था तो कोई जूआंठ में जोती पहना रहा था । कल शाम को पुलिस चमन महतो के घर पहुंची थी । दो दिन का समय मिला था ” राजेश महतो को खोज लाओ..!”  ओ भी सुबह से ही चर्चा बनी हुई थी ।

    आज फिर सुबह चमन महतो के घर के ठीक सामने एक मारूति वैन आकर रूकी । देखने वालों की भीड़ जमा हो गई । गाड़ी से पहले उतरने वाले व्यक्ति पर जैसे ही नजर पड़ी । एक साथ सभी चौंक उठे थे । कल्पना से परे था । खाश तोर पर तब जब कुछ ही दिन पहले एक लड़का पूरे गांव को कोढ़ियों वाला गांव नामकरण कर चला गया था । फिर मोटरी- पोटली के समान के साथ अगुआ उतरा तो बहुतों के दिमाग में बहुत कुछ उत्तर गया था । यह सब कुछ हुआ कैसे ? लोगों को सवाल परेशान करने लगा था । उधर घर के बाहर मोढ़े पर बैठ दांत मांज रहा चमन महतो उल्लू की तरह कभी मारूति वैन को तो कभी एक एक कर गाड़ी से उतर रहे लोगों को देख हैरान हो रहा था ..!

    ” हमारी गलत फहमी दूर हो चुकी है समधी जी..!” अब भी भौकुआये सा मोढ़े पर बैठा चमन महतो के पास जाकर लड़के का बाप कह रहा था ” हमारी गलतफहमियों की वजह से बहुतों को तकलीफ़ हुई हैं, सभी से हम माफी चाहेंगे। चलिए उठिए, आज़ हम लगन बांधने ही आये हैं ! राजेश बाबू सचमुच के  बाबू   है । उस जैसा महान आदमी मिलना मुश्किल है..!”  उसी वक्त सबने देखा, सबसे अंत में जिस इंसान ने गाड़ी  नीचे  कदम रखा वो कोई और नहीं राजेश बाबू ही थे । लगन बांध सभी मेहमान जा चुके थे ।  शाम हो चुकी थी । लगन चुमाने गांव की औरतों का आना शुरू हो चुका था । चमन महतो के घर में ही नहीं पूरे गांव में एक खुशी का माहौल था । एक टूटा हुआ रिश्ता फिर से जुड़ने जा रहा था । राजेश बाबू ने एक बार फिर यह साबित कर दिया था कि उसके जीवन में रिश्तों का मोल क्या है ! 

    चमन महतो रात को अपनी पत्नी से कह रहा था ” इतना सब कुछ करने के बाद भी हम जमीन को नहीं ले सके । उल्टे जो बात ढंकी हुई थी, चिठ्ठी लिखकर उसे भी हमने सबको जना दिया ‌। अपने ही हाथों अपनी पीठ का दाग़ दिखा दिया…!”

    ” पापा आपने यह सब किया था  ! आप तो ऐसे न थे ? ” दोनों ने देखा उबटन माखी बेटी सरिता दरवाजे के पीछे कब से खड़ी उनकी सारी बातें सुन रही थी  !

    -श्यामल बिहारी महतो

    बोकारो, झारखंड