शिप्रा खरे
अध्यक्ष, कपिलश फाउंडेशन, मुख्य संपादक- विहंगम
डायरेक्टर– KSSS Pvt Ltd
विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
भीषण गर्मी के दिन हैं। सूरज की तरफ तो वैसे भी आंख उठाकर नहीं देख सकते थे पर अब तो आसमान की तरफ भी नहीं देखा जा रहा। दिन हो या रात, ज़मीन तवे की तरह तप रही है। नंगे पैर धूप में चार कदम चले तो कहीं छाले ही न पड़ जाएं पैरों में। मम्मी ने ही बताया था नौतपा चल रहा है इसलिए पूरा ज्येष्ठ माह इसी तरह तपते हुए बीतेगा। पसीना तो ऐसे टपकता है जैसे बरसात में नहा के आ रहे हों।
घर से बाहर न जाने की और आराम करने की हिदायत मिली थी जिसका पालन करने का पूरा प्रयास किया जा रहा था। पर चटोरी जीभ और मनचला मन मानते कहां हैं। जब घर पर थे तो फ़ोन उठाया और खटाखट ऑर्डर चालू। ऑनलाइन खर्चा करके चटर पटर खाने मंगाए और अमेजन से शॉपिंग की गई। अब इंतजार हो रहा है खाना लाने वाले डिलीवरी एजेंट का क्योंकि बाकी चीजें तो तीन चार दिन बाद आएंगी।
कुछ देर पहले दरवाज़े की घंटी बजी तो मैं खुशी से भागी क्योंकि फ़ोन ने पहले ही सूचना दे दी थी कि मुराद पूरी होने को है। आंखों के आगे लजीज़ खाने खुशबू के साथ अभी से नथुनों में प्रवेश कर चुके थे। मैंने दरवाज़ा खोला और पार्सल लेकर जैसे ही डिलिवरी एजेंट को देखा तो मुझसे मुस्कुराया न गया। एक हाथ में पार्सल थामे वह निरीह शख्स पसीने से तरबतर था। और कोई दिन होता तो मैं मेन गेट की तरफ इशारा करते हुए बोलती कि दरवाज़ा बंद करते हुए जाना लेकिन मेरे मुंह से एकाएक निकला-
“पानी पियेंगे भैया?”
मेरे इस छोटे से वाक्य ने उसके चेहरे पर स्फूर्ति ला दी और उसने हामी में सिर हिलाया। मैं दौड़ती हुई सी गई और पानी और मिठाई लेकर वापस आई। वह एक मिठाई का टुकड़ा खा कर गटागट दो ग्लास पानी पी चुका था। जाते-जाते उसकी आँखें कुछ न कहते हुए भी यह गईं –
“आपने मुझे जो दिया वह अमृत था जो किसी मरणासन्न में जान फूंक देता है।”
नोट – आपसे भी गुज़ारिश है कि इस सख़्त धूप में अगर कोई आपका दरवाज़ा खटखटाए तो उससे पानी के लिए ज़रूर पूछें। ऊपर वाले के दर पर सिर झुकाने से कहीं ज़्यादा सवाब आपको सिर्फ़ एक ग्लास पानी पिलाकर मिल जाएगा।