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समयकाल के चलते लोकोक्तियाँ / कहावतें / मुहावरोंमें शब्दों के बदलते स्वरूप

    गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’

    जैसा हम सभी जानते हैं कि विशेष अर्थ प्रकट करने वाले वाक्यांश को ही हम सभी ‘मुहावरा’ कहते हैं। हालाँकि ‘मुहावरा’ शब्द अरबी भाषा से लिया गया है लेकिन ‘मुहावरे’ का पूर्ण पर्यायवाची प्रचलन में है ही नहीं । यह सर्वविदित है की भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाने में मुहावरा एक सशक्त माध्यम है। लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि ‘मुहावरा’ अपने आप में  पूर्ण वाक्य नहीं होता, इसीलिए हम इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं कर पाते हैं ।जबकि मुहावरे का ठीक अर्थ समझ, सही प्रयोग रचना को न केवल सजीव बल्कि प्रवाहपूर्ण एवं आकर्षक बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    किसी घटना विशेष के सारांश को एक वाक्य में इस तरह प्रकट कर देना जिससे सुनने वाले को या पढ़ने वाले को उस वाक्यांश से अर्थ समझ में आ जाय यही मुहावरे की विशेषता होती है। लेकिन  मुहावरे के शब्दों में परिवर्तन या उलटफेर अनुभव-तत्व को नष्ट कर देता है । इसी तथ्य पर आपका ध्यान आकर्षित कर यह बताना चाहता हूँ कि हम आज जो मुहावरे प्रयोग में पाते हैं उनमें से कुछ मुहावरे अपने असली रूप में नहीं हैं बल्कि समयकाल के चलते ये अपभ्रंश यानी बिगड़ते बिगड़ते बिगड़े रूप में ही प्रचलन में हैं । इसी तथ्य को स्पष्ट करने हेतु यहाँ कुछ उदाहरण आपके समक्ष रख रहा हूँ —

    एक मुहावरा सुनने में आता  है – “अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान”।  अब सवाल उठता है कि पहलवानी से गधा  का क्या वास्ता । खोजने पर पता चला कि दरअसल,  मूल मुहावरे में  गधा नहीं गदा शब्द था। चूँकि फारसी में गदा का अर्थ  होता है भिखारी जबकि हिन्दी में हम गदा एक अस्त्र के लिये प्रयोग करते हैं। चूँकि आमलोग फारसी के गदा शब्द से परिचित नहीं थे इसलिये कालांतर में गदा शब्द के बदले गधा शब्द प्रचलन में आ गया । मूल मुहवारे का अर्थानुसार अल्लाह की मेहरबानी हो तो  भिखारी भी ताकतवर हो जाता है ।

    इसी तरह आपने यह भी सुना  होगा – ‘किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान’ । यहाँ भी फारसी के गदा शब्द से परिचित नहीं होने  के चलते कालांतर में गदा शब्द के बदले गधा शब्द प्रचलन में आया । यहाँ भी मूल मुहवारे का अर्थानुसार किस्मत मेहरबान हो तो  भिखारी भी पहलवान हो जाता है ।

    इसी क्रम में एक दूसरा मुहावरा लेते है – “अक्ल बड़ी या भैंस”। अब यहाँ भी यही सवाल उठता है कि अक्ल से भैंस का क्या रिश्ता। खोजने पर पता चला कि दरअसल, मूल मुहावरे में भैंस नहीं वयस शब्द था अर्थात मूल  मुहावरा था “अक्ल बड़ी या वयस”। चूँकि वयस का अर्थ होता है उम्र इसलिये  मुहावरे का अर्थ था अक्ल बड़ी या उम्र। लेकिन यहाँ उच्चारण दोष के कारण वयस शब्द  पहले पहले वैस बना फिर कालान्तर  में बदल कर भैंस बन प्रचलन में आ गया । आपके ध्याननार्थ बता दूँ कि इसी वयस शब्द से बना है वयस्क।

    इसी क्रम में एक अन्य मुहावरा लेते है – “धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का” । अब जब हम विचार करते  है तब पाते हैं कि यदि किसी धोबी ने कोई कुत्ता पाला है तो बेचारा  कुत्ता धोबी के साथ घर में भी रहता है और घाट पर भी जाता है। तब शोध करने पर पता चला कि मूल मुहावरे में कुत्ता नहीं कुतका शब्द है।लकड़ी की खूँटी जिस पर कपड़े लटकाए जाते हैं को संक्षेप में कुतका कह कर पुकारते हैं । चूँकि वह लकड़ी की खूँटी घर के बाहर लगी होती है इसलिये गंदे कपड़े उस पर लटका देते थे और धोबी उस कुतके से गंदे कपड़े उठाकर घाट पर ले जाता और धोने के बाद धुले कपड़े उसी कुतके पर टाँगकर चला जाता। इसलिये ही ‘धोबी का कुतका ना घर का ना घाट का’ मुहावरा बना । लेकिन यहाँ भी कालांतर में कुतका  शब्द के बदले कुत्ता  शब्द प्रचलन में आ गया ।

    अन्त में यही बताना चाहता हूँ कि एक रचनाकार को संक्षेप में प्रभावशाली तरीके से भाव प्रगट करने में मुहावरे बहुत ही सहायक होते हैं और सही मुहावरे का चयन तो रचनाकार की लेखनी में चार चाँद लगा देता है ।

    गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’

    बीकानेर / मुम्बई

    वार्तालाप – 7976870397

    वाट्स ऐप नंबर – 9829129011