ज्योतिष गुरु ओझा अरविंद
लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश
मो. न.- 9919399723
विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य के शरीर में जो चेतना (आत्मा) विद्यमान है वह सूर्य है। सूर्य का यह तत्व यदि शरीर से निकल जाये तो मनुष्य मृत हो जाएगा या आरंभिक विन्दु से देखें तो मनुष्य उत्पन्न ही नहीं हो पाएगा। अतः सूर्य को मनुष्य के दृष्टिकोण से, जीवन के दृष्टिकोण से ज्योतिष शास्त्र में सर्वाधिक महत्व दिया गया एवं उसे नव ग्रहों का राजा माना गया।
सूर्य को रोशनी का कारक माना जाता है। आत्मा का यह प्रकाश आंख की पुतली फाड़कर बाहर निकलता है तो बच्चे को संसार दिखलाई पड़ने लगता है। यदि सूर्य कुण्डली में कमजोर या अत्यधिक पीडित हो तो बालक के पास चमड़े की आँख तो होगी मगर उसमें रोशनी नहीं होगी अर्थात वह अंधा या नेत्र रोगी होगा।
ज्योतिष की सत्यता की जाँच हेतु मैने देखा कि सूर्य ग्रहण में जन्मे बच्चों को नेत्र रोग पाया गया।
सूर्य जब काले तमस ग्रह शनि की राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति कहलाती है। सूर्य आत्मा है इसे तमस में प्रवेश होने के कारण अशुद्ध मान लिया जाता है और इसकी शुद्धि हेतु आत्मा के आवरण शरीर को गंगाजल से स्नान करवाना पड़ता है। जिसके लिए लाखो श्रद्धालु पूरी पृथ्वी से कुभ मेला प्रयागराज में जाते है। पृथ्वी का सबसे बड़ा मेला है – कुंभ – जो कि शनि की ही अगली राशि का नाम है।
सूर्य की पूजा भगवान श्रीराम ने की थी रावण पर विजय पाने हेतु । श्रीराम द्वारा की गई वन्दना का नाम है- आदित्य हृदय स्त्रोत्र ।
सूर्य को ही श्री हरि विष्णु भी माना गया है जिनके चरण दबाती हैं माया की देवी लक्ष्मी जी ।
इस चित्र का दार्शनिक मतलब मेरे अनुसार ये निकलता है कि यदि मनुष्य जो स्वयं को आत्म निष्ठ कर ले अर्थात आत्मा में स्थिर कर ले तो माया उनके चरणो की दासी हो जाएगी और वह माया के बन्धन से मुक्त होकर श्री हरि विष्णु के समान अनाहत में विश्राम करने लगेगा।