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तृप्ति का आचमन

    रमेश पाण्डेय “शिखर शलभ”

    गीतकार, छोटी काशी गोला , खीरी

    विहंगम, अप्रैल-मई 2024, वर्ष-1 अंक-2

    आज क्यों अनमना गीत है—

    अनछुई भावना, अनवरत साधना,

    शब्द की अल्पना गीत है ।

    स्वप्न जागे हुए ,सत्य भोगे हुए,

    जी हुई कल्पना गीत है ।।

    सूक्ष्म उद्वैग का व्याकरण,

    व्यक्त युग-धर्म का आचरण।

    अंकुरण, प्रस्फुटन प्यार का,

    पीर पर हर्ष का आवरण।।

    हर सरल सोंच को, लाज-संकोच को,

    मर्म से बांचना गीत है–

    प्राप्ति की, देय की,मान्य की, हेय की,

    गेय प्रस्तावना गीत है—

    आज क्यों अनमना गीत है।।

    गीत लयबद्ध विश्वास है,

    धड़कनों में चुभी फांस है।

    जीत संत्रास पर आस की,

    गीत नीलाभ आकाश है ।।

    अनकही वेदना, आर्द्र संवेदना,

    आंसुओं से बना गीत है—

    एक अक्षर छुवन, तृप्ति का आचमन,

    छन्द में बांधना गीत है—

    आज क्यों अनमना गीत है।।

    ऊब से ऊबना गीत है,

    प्यास में डूबना गीत है ।

    कामना लोक कल्याण की,

    सत्य से सामना गीत है।।

    प्रेरणा प्राण की, नींव निर्माण की,

    एक आराधना गीत है—-

    सृष्टि की अस्मि को ,राग की रश्मि को,

    प्रिज्म से देखना गीत है—-

    आज क्यों अनमना गीत है।।